स्तर लोकसभा अध्यक्ष बराबर, हेंकड़ी राष्ट्रपति से ऊपर!

अनुच्छेद 142 की सुविधाजनक व्याख्या कर धौंस दिखा रहा सुप्रीम कोर्ट

 स्तर लोकसभा अध्यक्ष बराबर, हेंकड़ी राष्ट्रपति से ऊपर!

वरीयता क्रम में छठे नंबर पर आते हैं मुख्य न्यायाधीश

फिर दूसरे दो जजों ने राष्ट्रपति को कैसे दे दिया आदेश

 राष्ट्रपति के शीर्ष आसन की अवमानना की सजा तय हो

संसद के दोनों सदनों से पास बिल की सुनवाई भी गलत

संवैधानिक दृष्टि से सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश लोकसभा अध्यक्ष के समतुल्य होता है। फिर वह राष्ट्रपति के शीर्ष आसन पर रौब कैसे गांठ सकता हैभारत के उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की तीखी प्रतिक्रिया आने के बाद यह संवैधानिक सवाल सुप्रीम कोर्ट के समक्ष खड़ा हो गया है। तमिलनाडु के प्रसंग में फैसला सुनाते हुए अति उत्साह में आए सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों जेबी पारदीवाला और आर महादेवन ने राष्ट्रपति को अपने आदेश में समेटा और उन्हें भी निर्देश दे डाला। दोनों न्यायाधीश अपना फैसला सुनाते समय यह भूल गए कि वे संवैधानिक वरिष्ठता के क्रम में कहीं नहीं आते। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी लोकसभा अध्यक्ष के बराबर ही आते हैं। अब प्रश्न सामने है कि न्यायाधीश के आसन की मर्यादा का पालन नहीं करने और सर्वोच्च संवैधानिक आसन पर उंगली उठाने का अपराध करने के मामले में दोनों न्यायाधीशों के खिलाफ क्या कार्रवाई होताकि देश के आम लोगों के मन से कानून के पालन का विरोधाभास दूर हो। दूसरा सवाल यह भी खड़ा हो गया है कि जो कानून संसद के दोनों सदनों से पारित हो, उसकी सुनवाई करने की न्यायिक सक्रियता (ज्यूडिशियल एक्टिविज्म) के सार्वजनिक फूहड़ प्रदर्शन की क्या जरूरत थी? और इस अपराध की क्या सजा तय हो?

सुप्रीम कोर्ट जिस तरह पिछले कुछ वर्षों से संविदान के अनुच्छेद 142 की अपनी सुविधाजनक व्याख्या के बल पर अतिरंजित रौब गांठ रहा था, उपराष्ट्रपति ने उसकी असलियत पूरे देश के समक्ष ला दी है। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गंभीर आपत्ति जताते हुए कहा है कि संविधान का अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। राष्ट्रपति के शीर्ष आसन तक को निर्देश देने की धृष्टता की जा रही है। देश कहां जा रहा हैदेश में यह क्या हो रहा हैहमने लोकतंत्र के लिए इस दिन की कभी उम्मीद नहीं की थी। हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगेकार्यकारी कार्य करेंगेसुपर-संसद के रूप में कार्य करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगीक्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है?

संविधान के अनुच्छेद 142 में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और डिक्री देने के अधिकार और उसे लागू करने आदि से संबंधित है। अनुच्छेद 142 का उपबंध-1 सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि उसके पास आए किसी भी मामले में वह न्याय के लिए डिक्री या आदेश पारित कर सकेगा। इसके उपबंध-2 में कहा गया है कि इस संबंध में संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के अधीन रहते हुए सुप्रीम कोर्ट पूरे भारत के किसी भी क्षेत्र के किसी व्यक्ति को हाजिर होनेदस्तावेज प्रस्तुत करनेअवमानना की जांच करने या दंड देने का समस्त अधिकार उसके पास होगा। इस तरह अनुच्छेद 142 में स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट को संसद द्वारा पारित कानून के दायरे में ही काम करना है।

उपराष्ट्रपति ने कहाहम ऐसी स्थिति नहीं बना सकतेजहां सुप्रीम कोर्ट भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दे। वह भी किसी संवैधानिक आधार और अधिकार के बगैर? संविधान के तहत सुप्रीम कोर्ट के पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145 (3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है।  अनुच्छेद 145 (3) के अनुसार किसी महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दे पर कम-से-कम 5 न्यायाधीशों वाली पीठ द्वारा निर्णय लिया जाना चाहिए। फिर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने राष्ट्रपति को आदेश देने वाले दो न्यायाधीशों को न्यायिक मर्यादा का उल्लंघन करने की क्या सजा दीयहां यह रेखांकित किया जाना आवश्यक है कि पांच न्यायाधीशी की संवैधानिक पीठ तब गठित हुई थी जब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की संख्या आठ थी। अब सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या बढ़कर 31 हो गई है। अब संवैधानिक पीठ सुप्रीम कोर्ट के जजों की मौजूदा संख्या के मुताबिक गठित होनी चाहिए। उपराष्ट्रपति ने कहा भी कि संविधान पीठ में न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या बढ़ाने के लिए अनुच्छेद 145 (3) में संशोधन करने की आवश्यकता है।

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जहां तक वरीयता क्रम का सवाल है तो राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च पद होता है। राष्ट्रपति को भारत का पहला नागरिक कहा जाता है। इतना ही नहींराष्ट्रपति और संसद को मिलाकर ही भारत बनता है और वह संघ के प्रशासन का प्रमुख होता है। इसी प्रशासन का एक अंग न्यायपालिका भी है। भारत में राष्ट्रपति और राज्यपाल ही ऐसे दो पद हैंजिनके खिलाफ अदालती कार्रवाई नहीं की जा सकती है। भारत के संविधान ने अनुच्छेद 361 के तहत इसका प्रावधान किया है। यह अनुच्छेद राष्ट्रपति और राज्यपालों के खिलाफ अदालती कार्यवाही से सुरक्षा प्रदान करता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट न ही इन दोनों को किसी मामले में नोटिस जारी कर सकता है और न ही निर्देश दे सकता है।

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राष्ट्रपति के बाद देश में दूसरा सर्वोच्च पद उपराष्ट्रपति का होता है। इसके बाद तीसरे नंबर पर प्रधानमंत्री आते हैं। देश का चौथा सर्वोच्च पद राज्यपाल का होता हैजो उनके कार्य वाले राज्यों में होता है। इसके बाद वरीयता क्रम में पांचवें स्थान पर पूर्व राष्ट्रपति आते हैं। इसके बाद भारत के उपप्रधानमंत्री का पद वरीयता क्रम में 5-ए स्थान पर आता है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार,  सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा स्पीकर का पद एक समान होता है। दोनों वरीयता क्रम में छठे नंबर पर आते हैं। इसके बाद सातवें नंबर पर केंद्रीय कैबिनेट मंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्री अपने राज्यों में होते हैं। योजना आयोग के उपाध्यक्षपूर्व प्रधानमंत्रीराज्यसभा और लोकसभा में विपक्ष के नेता भी सातवें क्रम पर ही आते हैं।

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भारत रत्न से सम्मानित व्यक्ति का क्रम 7-ए होता है। आठवें क्रम में राजदूतभारत द्वारा मान्यता प्राप्त राष्ट्रमंडल देशों के आयुक्तअपने राज्य के बाहर मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल होते हैं। नौंवें क्रम पर सुप्रीम कोर्ट के आते हैं। इसके बाद 9-ए पर संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्षमुख्य चुनाव आयुक्त और भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैगआते हैं। वरीयता क्रम में 10वें स्थान पर राज्यसभा के उपसभापतिराज्यों के उपमुख्यमंत्रीलोकसभा के उपसभापतियोजना आयोग (वर्तमान में नीति आयोग) के सदस्य और केंद्र सरकार के राज्यमंत्री आते हैं। वहीं11वें स्थान पर भारत के अटॉर्नी जनरलकैबिनेट सचिव और अपने-अपने केंद्र शासित प्रदेशों के भीतर लेफ्टिनेंट गवर्नर (उपराज्यपाल) तक शामिल हैं। वरीयता क्रम में 12वें स्थान पर पूर्ण जनरल या समकक्ष रैंक के पद पर कार्यरत चीफ ऑफ स्टाफ आते हैं।

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