निर्वाचित सदस्य तय करेंगे संविधान कैसा हो
सुप्रीम कोर्ट के असंवैधानिक आचरण पर उपराष्ट्रपति ने फिर उठाए सवाल
राष्ट्रपति और संसद सर्वोपरि है, इसके ऊपर कोई नहीं
कुछ मीडिया संस्थान उपराष्ट्रपति को दे रहे गंदी गाली
नई दिल्ली, 22 अप्रैल (एजेंसियां)। सुप्रीम कोर्ट के अमर्यादित, असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक आचरण पर देश के उपराष्ट्रपति डॉ. जगदीप धनखड़ लगातार सवाल उठा रहे हैं। उपराष्ट्रपति का कहना है कि लोकतंत्र की हिफाजत के लिए देश के सर्वोच्च संवैधानिक आसनों और प्रतिष्ठानों का सम्मान जरूरी है। सर्वोच्च संवैधानिक आसन पर बैठने वाले राष्ट्रपति और देश की सर्वोच्च संसद पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां नाजायज और अवांछित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के प्रसंग में राष्ट्रपति के सर्वोच्च आसन को घसीटा और उसके बाद वक्फ कानून जो संसद के दोनों सदनों से पारित होकर कानून बन गया उस पर भी सुनवाई करने लगे। इसका क्या मतलब है? क्या सुप्रीम कोर्ट खुद को राष्ट्रपति या संसद से भी ऊपर समझता है? लोकतंत्र और संविधान की हिफाजत के लिए जरूरी मुद्दे पर कुछ मीडिया प्रतिष्ठान विपक्षी नेताओं से बड़े विपक्षी नेता बने मैदान में कूद पड़े हैं और उपराष्ट्रपति के खिलाफ गंदे शब्दों का भी इस्तेमाल करने से हिचक नहीं रहे हैं। यह किस तरह की मर्यादा है? संदेहास्पद धन पर पलने वाले मीडिया संस्थान आखिर बौखलाहट में क्यों हैं? सुप्रीम कोर्ट के बेजा आचरण पर उठ रहे सवालों के साथ-साथ मीडिया की भूमिका पर भी गंभीर सवाल चस्पा हैं।
सुप्रीम कोर्ट के अराजक फैसलों और विवादास्पद टिप्पणियों को लेकर देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ लगातार सवाल उठा रहे हैं। अब दिल्ली विश्वविद्यालय में उन्होंने कहा कि संविधान कैसा होगा, ये वही तय करेंगे जो चुनकर आए हैं। इसके ऊपर कोई नहीं होगा। संसद सर्वोपरि है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की दो टिप्पणियों का भी हवाला दिया। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका पर हो रही बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर सवाल उठाए और कहा कि सुप्रीम कोर्ट संविधान सम्मत तरीके से यह क्यों नहीं मान रही है कि संसद ही सर्वोपरि है। हर संवैधानिक पदाधिकारी द्वारा बोला गया प्रत्येक शब्द सर्वोच्च राष्ट्रीय हित से जुड़ा होता है। उन्होंने कहा कि संविधान कैसा होगा, ये वही तय करेंगे जो चुनकर आए हैं। इसके ऊपर कोई नहीं होगा। संसद सर्वोपरि है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की दो टिप्प्णियों का हवाला दिया। इसमें गोरखनाथ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है। जबकि दूसरे केशवानंद भारती मामले में कोर्ट ने कहा था कि यह संविधान का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि किसी भी संवैधानिक पदाधिकारी द्वारा बोला गया प्रत्येक शब्द राष्ट्र के सर्वोच्च हित से निर्देशित होता है। मुझे यह बात काफी दिलचस्प लगती है कि कुछ लोगों ने हाल ही में यह विचार व्यक्त किया है कि संवैधानिक पद औपचारिक और सजावटी हो सकते हैं। इस देश में प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका चाहे वह संवैधानिक पदाधिकारी हो या नागरिक के बारे में गलत समझ से कोई भी चीज दूर नहीं हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और टिप्पणियों को लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ लगातार सवाल उठा रहे हैं। हाल ही में उपराष्ट्रपति धनखड़ ने न्यायपालिका की तरफ से राष्ट्रपति के लिए निर्णय लेने और सुपर संसद के रूप में कार्य करने के लिए समय सीमा निर्धारित करने पर सवाल उठाते हुए कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय लोकतांत्रिक ताकतों पर परमाणु मिसाइल नहीं दाग सकता। उन्होंने न्यायपालिका के लिए ये कड़े शब्द राज्यसभा के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए कहे, कुछ दिनों पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति और राज्यपाल की तरफ से विचार के लिए रखे गए विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समय सीमा तय करने की मांग की थी। इस पर उपराष्ट्रपति ने कहा, इसलिए, हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे, जो कार्यकारी कार्य करेंगे, जो सुपर संसद के रूप में कार्य करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता।
उपराष्ट्रपति धनखड़ और भाजपा नेताओं के बयान के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की याचिका पर सुनवाई के दौरान कटाक्ष किया था। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा था, आप चाहते हैं कि हम राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए राष्ट्रपति को आदेश जारी करें? वैसे ही, हम पर कार्यपालिका (क्षेत्र) में अतिक्रमण करने का आरोप लग रहा है।
उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक बार फिर न्यायिक अतिक्रमण के मुद्दे पर अपनी बात दोहराई है। उन्होंने कहा है कि संसद ही सर्वोच्च है और जनता के चुने हुए प्रतिनिधि ही संविधान के असली मालिक हैं। संसद से ऊपर कोई नहीं है। उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि संविधान लोगों के लिए है और संसद ही इसे बनाती है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों पर भी टिप्पणी की और कहा कि हर संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति राष्ट्रीय हित में ही बोलता है। उप-राष्ट्रपति ने कहा कि 1977 में आपातकाल लगाने वाले प्रधानमंत्री को भी जनता ने जवाबदेह बनाया था, इसलिए संसद से ऊपर कोई नहीं है। उन्होंने ये बातें न्यायिक अतिक्रमण के मुद्दे पर दोहराईं।उल्लेखनीय है कि भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं संविधान के गहरे जानकारी प्रणब मुखर्जी भी मानते थे कि न्यायिक एक्टिविज्म पर रोक लगनी चाहिए। उन्होंने चेताया था कि न्यायपालिका को अपनी सीमाएं लांघकर कार्यपालिका और विधायिका का काम नहीं करना चाहिए।
विडंबना यह है कि देश के कुछ दोगले मीडिया संस्थान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ आग उगलने में लगे हैं, यहां तक कि उन्हें गंदी गालियां भी दे रहे हैं। ये वही मीडिया संस्थान हैं जिन्हें राष्ट्रद्रोही उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी पसंद था और देशभक्त धनखड़ नापसंद। इसरो के वैज्ञानिक नंबी नारायणन का करियर बर्बाद किए जाने की साजिश में हामिद अंसारी शामिल थे। विधायक सुशील सिंह ने आरोप लगाया था कि मुख्तार अंसारी के कहने पर हामिद अंसारी ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार से उनके पूरे परिवार पर मकोका लगवा दिया था। हामिद अंसारी माफिया मुख्तार अंसारी के रिश्तेदार थे और रिश्तेदारी निभाते थे। पाकिस्तान के पत्रकार नुसरत मिर्जा ने खुद एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि 2005 से 2011 के बीच हामिद अंसारी ने उसे निमंत्रण देकर भारत बुलाया और कई सारी खुफिया जानकारियां उसके साथ साझा की। तब वो जामा मस्जिद के इमाम से भी मिला था। कभी तिरंगे को सलामी नहीं दी, कभी पहले योग दिवस कार्यक्रम से नदारद रहे तो कभी रॉ के नेटवर्क को उजागर करने के आरोप लगे लेकिन, दोगला मीडिया गैंग और उसके पत्रकारों ने हमेशा हामिद अंसारी का बचाव किया। प्रधानमंत्री के विशेष सलाहकार दीपक वोहरा हामिद अंसारी को विश्वासघाती कह चुके हैं।
ये वही मीडिया संस्थान हैं जो हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर पर भारी तादाद में कैश बरामदगी पर चुप्पी साध लेता है और जगदीप धनखड़ या निशिकांत दुबे पर ढोल बजाता है। यशवंत वर्मा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट कोई कार्रवाई नहीं करता और राष्ट्रपति के शीर्ष आसन पर उंगली उठाता है। इस पर दोगले मीडिया संस्थान चुप्पी साधे रहते हैं। अगर नोटों का जखीरा किसी समान्य व्यक्ति के घर मिलता तो वही न्यायपालिका क्या करती? इस सवाल का जवाब पूरा देश जानता है। लेकिन भ्रष्ट जज को सुप्रीम कोर्ट ने क्यों बचाया? इस बारे में कोई सवाल पूछे तो भ्रष्ट मीडिया गलियों के कुत्ते की तरह भौंकने लगता है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सिर्फ इतना ही तो पूछा था कि किसी सामान्य व्यक्ति के घर में ऐसा हुआ होता तो सुप्रीम कोर्ट क्या यही करती जो जज यशवंत वर्मा के साथ किया?
देश के सबसे पुराने अखबारों में से एक टाइम्स ऑफ इंडिया ने जगदीप धनखड़ के बयान की आलोचना करते हुए एक संपादकीय छापा। इसमें इस बयान को रेखा लांघने के समान बताया गया। साथ ही ज्ञान दिया कि औपचारिक पदों पर बैठे व्यक्तियों से जिस शिष्टाचार की अपेक्षा की जाती है, ये बयान उससे बहुत आगे निकल गया। इसे बेहद की खेदजनक करार दिया गया। इसमें उप-राष्ट्रपति पद की महत्ता को कम करते हुए बताया गया कि नीति-निर्माण में उनकी कोई भूमिका नहीं होती। साथ ही पाठकों को कहा गया कि उप-राष्ट्रपति के बयानों से कोई असर नहीं पड़ने वाला है, इन्हें नजरअंदाज किया जा सकता है।
आप देखिए विदेशी धन से चलने वाला अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया किस तरह की मूर्खतापूर्ण बातें छाप रहा है। देश के उपराष्ट्रपति के लिए इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल कितना सीमा रेखा के अंदर है, इसे आप समझ सकते हैं। इसी तरह अमेरिका के भारत विरोधी धनपशुओं से विराट पुरुष बने वामपंथी सिद्धार्थ वरदराजन और उनकी मीडिया संस्था द वायर ने उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के लिए गाली में इस्तेमाल किए जाने वाले पशु के नाम का प्रयोग किया। द वायर ने उपराष्ट्रपति को लोकतंत्र को लहूलुहान करने वाला हमलावर कुत्ता बताया। ऐसा लिखने वाले मीडिया संस्थान और उसके मालिक के खिलाफ संगीन अपराध का मामला दर्ज क्यों नहीं हुआ? क्या संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के लिए इस तरह की शब्दावली का इस्तेमाल किया जाना अपराध नहीं है? जब 2018 में सुप्रीम कोर्ट के 4 बड़े जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सरकार पर खुलेआम हमला बोला था, उस समय क्या द वायर ने उनके लिए इस तरह की शब्दावली का इस्तेमाल किया था?