कलबुर्गी में वचन मंडप का निर्माण जल्द ही शुरू होगा: मंत्री शरण प्रकाश पाटिल
-बसव जयंती समारोह मनाया
कलबुर्गी/शुभ लाभ ब्यूरो| कर्नाटक सरकार १२वीं सदी के समाज सुधारक बसवन्ना और वचन आंदोलन के सार्वभौमिक संदेश को फैलाने के लिए कलबुर्गी में ‘वचन मंडप’ का निर्माण करेगी| चिकित्सा शिक्षा, कौशल विकास और उद्यमिता मंत्री डॉ. शरण प्रकाश पाटिल ने कलबुर्गी में बसव जयंती समारोह के दौरान इसकी घोषणा की|
इस कार्यक्रम का आयोजन जिला प्रशासन, कलबुर्गी सिटी कॉरपोरेशन, कन्नड़ और संस्कृति विभाग और बसव जयंती समारोह समिति द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था| उन्होंने कहा, इस परियोजना को २०२४-२५ के राज्य बजट में शामिल किया गया है| मुख्यमंत्री सिद्धरामैया ने हमें तुरंत निर्माण कार्य शुरू करने का निर्देश दिया है|
जिला प्रशासन खाका तैयार कर रहा है| १२वीं शताब्दी के बसवन्ना और अन्य शरणों के जातिविहीन और समतामूलक समाज के निर्माण के आजीवन प्रयासों पर प्रकाश डालते हुए, मंत्री ने कहा कि शरण आंदोलन का सार, सभी प्राणियों के लिए करुणा और समानता और वचनों की परिवर्तनकारी शक्ति में निहित है, जिसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाया जाना चाहिए|
उन्होंने कहा हमें इष्ट लिंग पूजा की प्रथा और बसव दर्शन की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित और पोषित करना चाहिए| बसव की विचारधारा की समावेशिता पर बोलते हुए, कर्नाटक राज्य नीति और योजना आयोग के उपाध्यक्ष बी.आर. पाटिल ने टिप्पणी की कि जो लोग इष्ट लिंग नहीं पहनते हैं, वे भी बसवन्ना के अनुयायी हो सकते हैं| उन्होंने कहा बसवन्ना के अनुयायी होने के लिए लिंग पहनना कोई शर्त नहीं है| यहां तक कि जो लोग इसे नहीं पहनते हैं, वे भी उनकी शिक्षाओं का पालन कर सकते हैं| हमारी लिंगायत पहचान उस समय से शुरू हुई जब हाशिए पर पड़े समुदायों के लोगों ने आध्यात्मिक समानता के प्रतीक के रूप में लिंग को अपनाया|
कर्नाटक में बुद्ध-बसव-अंबेडकर दर्शन को बढ़ावा देने के प्रयासों के लिए दलित संघर्ष समिति की सराहना करते हुए उन्होंने व्यक्तियों को आदर्श बनाने की तुलना में विचारों को बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया| उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा बसवन्ना की सामाजिक क्रांति अंतरजातीय विवाह और श्रम की गरिमा को अपनाने से शुरू हुई| हमें विचारों का महिमामंडन करना चाहिए, व्यक्तियों का नहीं - चाहे वह बसवन्ना हो या अंबेडकर| अगर हम केवल व्यक्तियों का महिमामंडन करेंगे, तो विचार फीके पड़ जाएंगे|
विधायक और जयंती समिति के अध्यक्ष एम.वाई. पाटिल ने उन कयाक शरणों को अपनाने का आह्वान किया जो अलग हो गए हैं, उन्होंने अंतरजातीय सद्भाव की वकालत करने और एक समतावादी समाज की स्थापना में बसवन्ना की क्रांतिकारी भूमिका को दोहराया| उन्होंने यह भी कहा कि वचन साहित्य की पुनः खोज के बाद से बसव जयंती महज जुलूस से बढ़कर वैचारिक रूप से समृद्ध उत्सव बन गई है|
सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. दुर्गादास ने व्याख्यान देते हुए कल्याण कर्नाटक को बसवन्ना की कर्मभूमि बताया और वचनों की सुगमता और आध्यात्मिक गहराई की प्रशंसा की| उन्होंने बसवन्ना को एक मानवतावादी के रूप में चित्रित किया, जिन्होंने रूढ़िवादिता को पार किया और कम उम्र से ही तर्कसंगत विचारों का समर्थन किया|