हाईकोर्ट के सभी जजों को पूर्ण पेंशन का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट का स्वार्थसिद्ध फैसला
फौजियों को पेंशन भले न मिले, नेताओं और जजों को मिलनी चाहिए
नई दिल्ली, 19 मई (एजेंसियां)। देश में सेना को पेंशन के अधिकार से वंचित किया जा सकता है। राज्य और केंद्र के कर्मचारियों और अधिकारियों की पेंशन छीनी जा सकती है। लेकिन इस देश में नेताओं और जजों को पेंशन जरूर मिलनी चाहिए। सत्ता और न्याय जिन लोगों के पास है, वे अपनी पेंशन और अपनी सुविधाएं क्यों न लें? सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला इसी स्वार्थसिद्धि से जुड़ा है। इसके पहले संसद ने सभी सांसदों की सैलरी और पेंशन बढ़ाने का फैसला लिया था। देश की सीमा पर लड़ने वाले अग्निवीर भले ही चार साल की दिहाड़ी पर काम करके अपनी जान दे दें।
हाईकोर्ट के जजों को पेंशन मिलने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश के किसी भी हाईकोर्ट से सेवानिवृत्त जज पूर्ण पेंशन पाने के हकदार हैं, फिर चाहे वो किसी भी तारीख को सेवा में आए हों इसके अलावा हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश भी पूर्ण पेंशन के हकदार हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बीआर गवई और एजी मसीह की पीठ ने यह नायाब और मानवतावादी फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस ने संविधान के अनुच्छेद 14 का हवाला देते हुए कहा कि न्यायाधीशों के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ऐसा करना अनुच्छेद-14 के अंतर्गत कानून के समक्ष समानता के अधिकार का उल्लंघन है। मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि हम इस बात को मानते हैं कि जजों के साथ किसी भी तरह का भेदभाव हिंसा को बढ़ावा देगा।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर कोई भी न्यायाधीश जो स्थायी है, वो समान वेतन और पेंशन का अधिकारी है। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वो उच्च न्यायालयों के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों को प्रतिवर्ष 15 लाख रुपए की पूरी पेंशन का भुगतान करे। साथ ही अतिरिक्त जजों और हाईकोर्ट के जजों को प्रतिवर्ष 13.6 लाख रुपए का भुगतान करे।