भारत ने गंवा दिए 18,200 हेक्टेयर वन
वन क्षेत्र बढ़ने के सरकारी दावों की पोल खुली
ग्लोबल रिपोर्ट से सामने आई जमीनी असलियत
उत्तर प्रदेश के जंगलों की हालत अत्यंत दयनीय
नई दिल्ली, 22 मई (एजेंसियां)। भारत सरकार हो या देश की अन्य राज्य सरकारें, सब यह दावा करती हैं कि वन क्षेत्र में वृद्धि हो रही है और लाखों करोड़ों पौधे लगा कर वनाच्छादन बढ़ाया जा रहा है। लेकिन ये सब सरकारी दावे फर्जी साबित हुए हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ कर यूपी का वनक्षेत्र बढ़ने का दावा करते रहते हैं। योगी का यह दावा विकास ने नाम पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के तथ्य पर पर्दा डालने की कोशिश है। जमीनी असलियत यही है कि भारत ने 2024 में 18,200 हेक्टेयर प्राथमिक वन गंवाए हैं। 2001 से अब तक कुल 23.1 लाख हेक्टेयर हरियाली खत्म हो गई, जिससे 1.29 गीगाटन सीओटू का उत्सर्जन हुआ। यह संकट देश की पारिस्थितिकी और जलवायु दोनों के लिए भीषण खतरा है।
भारत ने 2024 में 18,200 हेक्टेयर बेशकीमती प्राथमिक वनों को खो दिया। साल 2023 के 17,700 हेक्टेयर के मुकाबले थोड़ा अधिक है। यह आंकड़ा 100 से अधिक संगठनों की वैश्विक साझेदारी से प्राप्त हुआ है। इसे ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच और मैरीलैंड विश्वविद्यालय ने जारी किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने 2001 से अब तक कुल 23.1 लाख हेक्टेयर वृक्षों की हरियाली खो दी है। यह नुकसान कुल वृक्षावरण का लगभग 7.1 फीसदी है। इससे लगभग 1.29 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर उत्सर्जन हुआ है।
इस वृक्षावरण हानि में एक बड़ा हिस्सा आर्द्र प्राथमिक वनों का है। इन वनों को चिरकालीन वन भी कहा जाता है। यह ऐसे वन हैं जो बहुत पुराने हैं और इनमें मानवीय दखल से बहुत कम या बिल्कुल भी बदलाव नहीं हुआ है। ये वन मूलतः एक ऐसे क्षेत्र को कवर करते थे जो इंसान के किए गए पर्यावरण में बदलावों से पहले का था। प्राथमिक वन अक्षुण्ण पारिस्थितिक तंत्र के उदाहरण हैं। ये वन जंगल में आग, तूफान, या भूस्खलन जैसे प्राकृतिक विक्षोभों से गुजर सकते हैं और मानवीय गतिविधियों से प्रभावित नहीं होते हैं।
यह वन जैव विविधता के संरक्षण में अहम भूमिका निभाते हैं। भारत ने 2002 से 2024 के बीच कुल 3,48,000 हेक्टेयर आर्द्र प्राथमिक वन खो दिए। यह लगभग 5.4 फीसदी हानि के बराबर है और देश की कुल वृक्षावरण हानि का लगभग 15 फीसदी हिस्सा है। आंकड़ों से पता चलता है कि देश को 2022 में 16,900 हेक्टेयर , 2021 में 18,300 हेक्टेयर, 2020 में 17,000 हेक्टेयर और 2019 में 14,500 हेक्टेयर आर्द्र प्राथमिक वनों का नुकसान हुआ। यह सभी आंकड़े लैंडसैट उपग्रह चित्रों के विश्लेषण पर आधारित हैं। इन्हें हर क्षेत्र के लिए खास एल्गोरिद्म से जांचा गया है। भारत में परिपक्व वन पारिस्थितिकी तंत्रों का लगातार होता नुकसान, वन संरक्षण की नीतियों को और मजबूत करने और भूमि उपयोग की टिकाऊ योजनाओं की जरूरत की तरफ इशारा करता है।
उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा वन क्षेत्र वाले जिलों में जंगल तेजी से घटे हैं। पिछले चार वर्षों में कुल 137 वर्ग किमी वन क्षेत्र कम हुआ है। सबसे ज्यादा कमी सामान्य और खुले वन में आई है। सामान्य सघन वन का दायरा 967 वर्ग किमी था, जो भारतीय वन सर्वे की ताजा रिपोर्ट में घटकर 927 वर्ग किमी ही रह गया है। खुले वन में भी भारी गिरावट आई है। इसकी अपेक्षा झाड़ियों का दायरा बढ़ा है। 2019 में 28 प्रतिशत झाड़ियां थीं, जो अब बढ़कर 42 प्रतिशत तक पहुंच गई।
उत्तर प्रदेश के 10 जिलों में वन क्षेत्र घटा है। इनमें मीरजापुर सोनभद्र आजमगढ़ बिजनौर चंदौली लखीमपुर खीरी महाराजगंज मुजफ्फरनगर पीलीभीत और सुल्तानपुर जिले हैं। भारतीय वन सर्वेक्षण की 2021 की जिलेवार रिपोर्ट से यह उजागर होता है। वन क्षेत्र में सर्वाधिक कमी सोनभद्र और मिर्जापुर जिले में आई है।
प्रदेश के 10 जिलों में हरियाली कम होने का कारण जंगलों की अंधाधुंध कटाई और नए पौधों के रखरखाव में अभाव है। सोनभद्र में 103.54 वर्ग किलोमीटर के वन क्षेत्र में कमी आई है। इसी तरह मिर्जापुर में 57.62 वर्ग किलोमीटर, चंदौली में 11.78 वर्ग किलोमीटर, बिजनौर में 4.71 वर्ग किलोमीटर, सुलतानपुर में 1.90 वर्ग किलोमीटर, पीलीभीत में 1.38 वर्ग किलोमीटर, महाराजगंज में 1.31 वर्ग किलोमीटर, आजमगढ़ में 0.69 वर्ग किलोमीटर, लखीमपुर खीरी में 0.50 वर्ग किलोमीटर और मुजफ्फरनगर में 0.08 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र कम हो गया है। वन क्षेत्रों की कमी इसी तेज रफ्तार से जारी है।
210 करोड़ पौधे लगा कर वन-क्षेत्र बढ़ने का बेमानी दावा
लखनऊ, 22 मई (एजेंसियां)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दावा किया है कि पिछले आठ साल में 210 करोड़ पौधे लगा कर वन क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि की गई। योगी ने यह नहीं बताया कि आठ साल में लगाए गए 210 करोड़ पौधों में से कितने बचे और पेड़ बने। सीएम योगी कहते हैं कि लगभग 70-75 प्रतिशत पौधे बच गए। जबकि वन विशेषज्ञों का कहना है कि पौधों के जीवित बचने की दर महज 50 से 60 प्रतिशत रहती है।
केवल एक जिले सोनभद्र का उदाहरण सामने रखें तो असलियत सामने दिखेगी। योगी सरकार ने जिले में 1.55 करोड़ पौधे लगवाए थे। पौधे लगाकर लोग उसे भूल गए। देखभाल न होने के कारण उन पौधों की जगह सिर्फ ठूंठ बची है। कई जगह तो ठूंठ भी नदारद है।
मध्यम और खुले वन की सुरक्षा को लेकर प्रदेश में भीषण लापरवाही है। संरक्षित क्षेत्रों में तो लगातार निगरानी और सख्ती के चलते वन सुरक्षित रह रहे हैं, लेकिन खुले क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई धड़ल्ले से चल रही है। रेणुकूट वन प्रभाग के अंतर्गत म्योरपुर, बीजपुर और बभनी थाना क्षेत्रों में पिछले एक साल में खैर, साखू, शीशम जैसे इमारती लकड़ियों की अंधाधुंध कटाई के अनगिनत मामले सामने आ चुके हैं। ज्यादातर मामलों में वन माफिया कटान के बाद लकड़ी को सुरक्षित निकालने में कामयाब रहते हैं। इसी तरह ओबरा और सोनभद्र वन प्रभाग में भी अवैध कटान के मामले लगातार आ रहे हैं। इसके अलावा नई सड़कों, परियोजनाओं के कारण भी पेड़ों की कटाई बड़ी संख्या में हुई है। इसके बदले नए पौधे भी लगाए गए हैं, लेकिन ज्यादातर जगहों पर देखरेख के अभाव में पेड़ बनने से पहले ही पौधे सूख गए।