साइबर ठगी पर सख्ती, अब मोबाइल की भी होगी जांच
केंद्र सरकार ने जारी किया धोखाधड़ी जोखिम संकेतक
नई दिल्ली, 22 मई (एजेंसियां)। साइबर ठगी पर लगाम कसते हुए दूरसंचार विभाग ने वित्तीय धोखाधड़ी जोखिम संकेतक (एफआरआई) लॉन्च किया है। यह टूल संदिग्ध मोबाइल नंबरों की पहचान कर बैंकों व यूपीआई सेवाओं को अतिरिक्त सुरक्षा जांच के लिए अलर्ट करेगा। यह संकेतक बैंकों, यूपीआई सेवा प्रदाताओं और वित्तीय संस्थानों को खुफिया जानकारी साझा कर उन्हें कार्रवाई करने में सक्षम बनाएगा। फोन-पे इसे अपनाने वाला पहला प्लेटफॉर्म बना।
बुधवार को जारी आधिकारिक बयान के मुताबिक, अगर कोई मोबाइल नंबर धोखाधड़ी में शामिल होने के लिहाज से संदिग्ध पाया जाता है, तो एफआरआई टूल उसकी पहचान कर लेगा। इसके बाद जब भी उस मोबाइल नंबर पर डिजिटल भुगतान करने का प्रयास किया जाएगा, तो प्रणाली अतिरिक्त सुरक्षा जांच और सत्यापन करेगी। बयान में कहा गया है कि एफआरआई दूरसंचार और वित्तीय दोनों क्षेत्रों में संदिग्ध धोखाधड़ी के खिलाफ त्वरित, लक्षित एवं सहयोगात्मक कार्रवाई की अनुमति देता है।
डिजिटल इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म (डीआईपी) के हिस्से के रूप में विकसित एक बहु-आयामी विश्लेषणात्मक उपकरण से मिले नतीजों के तौर पर एफआरआई को विकसित किया गया है। दूरसंचार विभाग ने कहा, साइबर धोखाधड़ी में शामिल मोबाइल नंबर का इस्तेमाल आमतौर पर कुछ दिन के लिए ही होता है। ऐसे नंबरों के पूर्ण सत्यापन में कई दिन लग सकते हैं। ऐसे नंबरों से जुड़े जोखिम पर अग्रिम संकेतक बहुत उपयोगी होते हैं। डिजिटल भुगतान मंच फोनपे इस संकेतक को अपनाने वाले शुरुआती संस्थानों में से एक है।
दूरसंचार विभाग ने एफआरआई को हितधारकों के साथ साझा करने की घोषणा करते हुए कहा, यह किसी मोबाइल नंबर को वित्तीय धोखाधड़ी के लिहाज से मध्यम, उच्च या अत्यधिक जोखिम के रूप में वर्गीकृत करता है। यह वर्गीकरण भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र के राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल, दूरसंचार विभाग के चक्षु पोर्टल और बैंकों-वित्तीय संस्थानों की ओर से साझा खुफिया जानकारी सहित विभिन्न हितधारकों से मिली सूचनाओं पर आधारित है। दूरसंचार विभाग की डिजिटल इंटेलिजेंस यूनिट (डीआईयू) नियमित रूप से उन मोबाइल नंबरों की सूची हितधारकों से साझा करती है, जिन्हें मोबाइल नंबर रिवोकेशन सूची से डिस्कनेक्ट कर दिया गया है। बैंकों, यूपीआई सेवा प्रदाताओं और वित्तीय संस्थानों को ऐसे नंबरों के साइबर अपराध में शामिल होने, पुनः सत्यापन में विफल होने, निर्धारित सीमा से अधिक उपयोग करने जैसे डिस्कनेक्ट होने के कारण भी बताए जाते हैं। इन नंबरों का इस्तेमाल वित्तीय धोखाधड़ी के लिए भी किया जाता है।