भारत जैसा विशाल बाजार छूटा, सारा रिश्ता टूटा
शैतान पाकिस्तान का साथ देने वाला तुर्की हो रहा हलकान
तुर्की से रोबोटिक लाइफबॉय मशीनें खरीदने का करार भी रद्द
मुंबई, 07 जून (एजेंसियां)। शैतान पाकिस्तान का साथ देने वाला तुर्की अब आर्थिक राजनीतिक और कूटनीतिक रूप से हलकान हो रहा है। पाकिस्तान का साथ देने के कारण भारत जैसे विशाल बाजार का ग्राहक तुर्की से अत्यंत नाराज हो गया और उसने तुर्की से सारे व्यापारिक रिश्ते खत्म कर दिए। अब तो तुर्की से रोबोटिक लाइफबॉय उपकरण खरीदने का करार भी रद्द कर दिया गया है। यह तुर्की के लिए भारी आर्थिक झटका है।
पहलगाम जैसी घृणास्पद घटना के बावजूद पाकिस्तान का साथ देने वाले देश तुर्की को अपनी इस शैतानी का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद तुर्की के साथ तमाम व्यापारिक लेन-देन, समझौते, ऑर्डर, पर्यटन-बूकिंग वगैरह खत्म करने के बाद बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने तुर्की से रोबोटिक लाइफबॉय खरीदने का करार भी रद्द कर दिया है। महाराष्ट्र के लोगों के दबाव के बाद बीएमसी ने तुर्की से हुआ करार रद्द कर दिया।
बीएमसी के आयुक्त भूषण गगरानी ने इस योजना को रद्द करने की आधिकारिक पुष्टि करते हुए कहा, हम जल्द ही रोबोटिक वॉटर रेस्क्यू डिवाइस के लिए किसी दूसरे देश के साथ करार के लिए एक नया टेंडर आमंत्रित करेंगे। दरअसल, मानसून के दौरान समुद्र तटीय इलाकों में कई लोगों को डूबने की घटनाएं सामने आती हैं। इन्हीं से निपटने के लिए बीएमसी ने तुर्की में बने रोबोटिक लाइफबॉय उपकरणों को छह समुद्र किनारों पर लगाने की योजना बनाई थी, जिनमें गिरगांव, दादर, जुहू, वर्सोवा,
तुर्की के साथ हुए इस करार का विरोध तब शुरू हुआ जब तुर्की ने भारत और पाकिस्तान के बीच हाल की सैन्य तनातनी में पाकिस्तान का समर्थन किया। इसके बाद भाजपा और शिवसेना समेत कई राजनीतिक दलों ने विदेशी उपकरणों की खरीद पर सवाल उठाए और मेक इन इंडिया का समर्थन करने की मांग की। भारत के दुश्मन पाकिस्तान से दोस्ती तुर्की को बहुत महंगी पड़ी है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीयों ने तुर्की के उत्पादों का पूर्ण बहिष्कार कर दिया है। देश की एक दर्जन से अधिक बड़ी मंडियों ने तुर्की के सेब सहित सभी फलों का पूर्ण बहिष्कार कर दिया जिससे तुर्की को भारी आर्थिक चोट पहुंची है।
पिछले वर्ष तुर्की में करीब 3000 करोड़ खर्च करने वाले भारतीयों में आधे से ज्यादा पर्यटकों ने तुर्की की यात्रा का अपना प्लान कैंसिल कर दिया, जिससे तुर्की को हजारों करोड़ का नुकसान हुआ। इसके अलावा देश की बड़ी शिक्षण संस्थाओं आईआईटी बांबे, जामिया, चंडीगढ़ विश्वविद्यालय और जेएनयू ने तुर्की से अपने अनुबंध तोड़ लिए हैं जिससे वहां के छात्रों का बड़ा नुकसान हुआ है। तुर्की और अजरबैजान जैसे देशों की इकोनॉमी में टूरिज्म का बहुत बड़ा रोल है। इन दोनों के देश की कुल जीडीपी का 10 फीसदी हिस्सा टूरिज्म से ही आता है। अजरबैजान जाने वाले पर्यटकों में 70 प्रतिशत पर्यटक भारत के ही रहते है। भारत-पाक तनाव के बाद भारत के लोगों ने तुर्की और अजरबैजान के बहिष्कार का अभियान छेड़ दिया, जिसका असर तुर्की में दिखना शुरू हो गया है। अब भारत के लोग तुर्की और अजरबैजान न जाकर बैंकाक या अन्य पर्यटन स्थलों पर जाने लगे हैं। देश भर के अलग-अलग हिस्सों से लोगों ने इन देशों में जाने का अपना प्लान कैसिंल कर दिया है। अकेले पूर्वांचल से 15000 पर्यटकों ने इन दोनों देशों का प्लान कैंसिल किया है। ऑल इंडिया टूरिस्ट फेडरेशन के मुताबिक सिर्फ पूर्वांचल से 15000 से ज्यादा पर्यटकों ने अपना प्लान और टिकट कैंसिल करा लिया है। पिछले साल 37500 लोगों ने इन दोनों देशों की यात्रा की थी। बूकिंग कैंसिलेशन की संख्या 25 हजार से 30 हजार के बीच जा सकती है। टैवल कंपनियां भी इसमें लोगों का साथ दे रही है। कॉक्स एन्ड किंग, एसओटीसी और ईज माई ट्रिप जैसी ट्रैवेल कम्पनियां और एयर इंडिया सहित कई एयरलाइन्स कम्पनी लोगों से कोई कैंसिलेशन चार्ज भी नही ले रही हैं। वित्त वर्ष 2023-24 में तुर्की के साथ भारत का व्यापार कुल 10.43 अरब डॉलर था, जिसमें निर्यात कुल 6.65 अरब डॉलर और आयात 3.78 अरब डॉलर रहा है। तुर्की को भारत द्वारा किए जाने वाले निर्यात में मशीनरी, पत्थर, प्लास्टर, लोहे और स्टील, तिलहन, अकार्बनिक रसायन, कीमती पत्थर, ताज़े सेब आदि शामिल थे।
इंफोइंडिया के आकड़ों के मुताबिक साल 2024 में भारत से करीब 2.50 लाख टूरिस्ट ने अजरबैजान की यात्रा की। वहीं तुर्की की बात करें तो करीब 3 लाख टूरिस्ट भारत से तुर्की गए थे। यात्रा के दौरान हर यात्री औसतन करीब 1000 अमेरिकी डॉलर यानी 85,000 रुपए खर्चा किया। इस तरह पाकिस्तान को समर्थन देने वाले इन दो देशों को पिछले साल करीब 469 करोड़ रुपए की आय हुई थी जो इस साल शून्य पर चली गई।
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