महंत सुरेंद्र दास का शव आश्रम में ले जाने से रोका, भारी बवाल
आश्रम के निर्माता से दुर्व्यवहार पर श्रद्धालुओं में आक्रोश
मैनपुरी, 07 जून (एजेंसियां)। रामजानकी मंदिर के महंत सुरेंद्र दास के अंतिम संस्कार को लेकर दो पक्ष आमने-सामने आ गए। इस दौरान पथराव से भगदड़ मच गई। पुलिस ने किसी तरह स्थिति नियंत्रित की। मैनपुरी के किशनी क्षेत्र के जटपुरा चौराहे के पास स्थित रामजानकी आश्रम के महंत 80 वर्षीय सुरेंद्र दास का बृहस्पतिवार रात निधन हो गया। उनके शव को आश्रम लाया गया। शव यात्रा को आश्रम में प्रवेश नहीं दिया गया, जिसके बाद अनुयायी आश्रम के गेट पर बैठ गए। 16 घंटे बाद अंतिम संस्कार को लेकर आश्रम के गेट पर बवाल मच गया।
रामजानकी मंदिर के महंत की अंत्येष्टि से पहले दो पक्ष भिड़ गए। दोनों ओर से जमकर लाठी-डंडे चले। इसके बाद पथराव हो गया। पथराव में तीन लोग घायल हुए हैं। सूचना पर पहुंची पुलिस ने लाठियां फटकारते हुए बवालियों को खदेड़ दिया। सीओ और एसडीएम सहित तमाम अधिकारी मौके पर जुटे हुए हैं। अनुयायी महंत के शव को आश्रम में ले जाने पहुंचे, तो आश्रम में ताला लगा मिला और अंदर मौजूद लोगों ने शव को भीतर लाने से मना कर दिया। इस घटना के बाद, पोस्टमार्टम कराकर लौटे अनुयायी आश्रम के बाहर ही धरने पर बैठ गए।
महंत सुरेंद्र दास का निधन बृहस्पतिवार रात को एक भागवत कथा कार्यक्रम में हुआ था। शुक्रवार सुबह जब उनके अनुयायी शव लेकर रामजानकी मंदिर पहुंचे, तो गेट पर ताला लगा था और अंदर मौजूद लोगों ने शव को प्रवेश नहीं करने दिया। शिष्यों ने तुरंत पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद तहसीलदार मौके पर पहुंचे। महंत के शिष्यों ने आरोप लगाया कि आश्रम और उससे लगी 18 बीघा भूमि पर कब्जे की साजिश के चलते ही महंत ने प्राण त्यागे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि बाबा के भेष में औरैया जनपद के अछल्दा थाना क्षेत्र का एक हिस्ट्रीशीटर भी आश्रम में मौजूद है, जिसके खिलाफ कई शिकायतें होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। इन आरोपों के बाद, महंत के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया था। पोस्टमार्टम के बाद अनुयायी शव को लेकर फिर से आश्रम पर पहुंचे और उसे बाहर ही रख दिया। सूचना मिलने पर एसडीएम गोपाल शर्मा और सीओ भोगांव सत्यप्रकाश शर्मा भी मौके पर पहुंच गए।
रामजानकी मंदिर के अध्यक्ष तहसीलदार घासीराम ने विवादित जमीन का हवाला देते हुए अंतिम संस्कार आश्रम के अंदर करने से मना कर दिया। एसडीएम ने एक फर्द में मृतक सुरेंद्र दास का नाम होने के कारण उन्हें मंदिर से बाहर, जमीन पर अंत्येष्टि करने की अनुमति दी, लेकिन शिष्य इस पर राजी नहीं हुए। उनकी मांग थी कि आश्रम के अंदर रह रहे अन्य साधु को पहले बाहर निकाला जाए। इस पर एसडीएम ने तीन दिन का समय मांगा है, लेकिन अनुयायी अपनी मांग पर अड़े रहे और आश्रम के बाहर धरने पर बैठे रहे।
दिवंगत महंत सुरेंद्र दास के अनुयायियों के अनुसार, महंत ने वर्ष 1960 में तपस्वी जीवन अपनाकर इस जर्जर प्राचीन आश्रम में प्रवेश किया था। तभी से उन्होंने इसका संरक्षण शुरू किया और आश्रम का नवनिर्माण कराया था। आश्रम की करीब 18 बीघा भूमि पर लगातार कुछ अराजक तत्वों द्वारा कब्जे की कोशिश की जा रही है।
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