भर्ती परीक्षाओं में उर्दू की अनिवार्यता खत्म करने की मांग

अब जम्मू कश्मीर में उर्दू भाषा को लेकर छिड़ा सियासी बवाल

भर्ती परीक्षाओं में उर्दू की अनिवार्यता खत्म करने की मांग

जम्मू, 16 जून (एजेंसियां)। जम्मू और कश्मीर में राजनीतिक दलों के बीच एक नया विवाद शुरू हो गया है। मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने केंद्र शासित प्रदेश में आगामी नायब तहसीलदार (राजस्व अधिकारी) भर्ती परीक्षा में उर्दू के ज्ञान की अनिवार्य परीक्षा खत्म करने की मांग की है। सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी सहित पार्टियों ने भाजपा की मांग का कड़ा विरोध किया है और उस पर जम्मू-कश्मीर की सांस्कृतिक विरासत को मिटाने का प्रयास करने का आरोप लगाया है।

गुरुवार को वरिष्ठ भाजपा नेता और जम्मू-कश्मीर विधानसभा में विपक्ष के नेता सुनील शर्मा ने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से मुलाकात की और नायब तहसीलदार के पद के लिए पात्रता मानदंड के रूप में उर्दू के कामकाजी ज्ञान की अनिवार्यता को हटाने के लिए उनके हस्तक्षेप की मांग की। शर्मा का तर्क था कि नायब तहसीलदार उम्मीदवारों के लिए जम्मू-कश्मीर की पांच आधिकारिक भाषाओं में से एक का कामकाजी ज्ञान अनिवार्य करना संवैधानिक सिद्धांतों और प्रशासनिक निष्पक्षता का उल्लंघन करता है और एक अनुचित बाधा उत्पन्न करता है। उन्होंने यह भी दावा किया कि इससे जम्मू के उम्मीदवार नुकसान में रहेंगे।

हालांकिएनसी और पीडीपी ने तुरंत ही भाजपा के रुख का विरोध किया और पार्टी की आलोचना की। एनसी के मुख्य प्रवक्ता तनवीर सादिक ने कहाउर्दू किसी वर्गक्षेत्र या धर्म से जुड़ी नहीं हैबल्कि यह जम्मू-कश्मीर में 130 से अधिक साल से इस्तेमाल की जाने वाली एक ऐतिहासिक और प्रशासनिक भाषा है। महाराजा के शासनकाल के दौरानसभी प्रशासनिक कार्य फ़ारसी में किए जाते थे लेकिन बाद में उर्दू को एक एकीकृत भाषा के रूप में अपनाया गया। सादिक ने कहाहर मुद्दे को धार्मिक चश्मे से देखना गलत है। शजरा (या पैतृक भूमि अभिलेख) लंबे समय से उर्दू में लिखे जाते रहे हैं और अब उन सभी दस्तावेजों को बदलना संभव नहीं है। न्यायपालिका और राजस्व सहित प्रशासन में उर्दू की ऐतिहासिक भूमिका को स्वीकार करने की आवश्यकता है।

उल्लेखनीय है कि 9 जून को दो सरकारी भर्ती एजेंसियों में से एकजम्मू और कश्मीर सेवा चयन बोर्ड (जेकेएसएसबीने राज्य के राजस्व विभाग में नायब तहसीलदार के 75 पदों के लिए लिखित परीक्षा के लिए अधिसूचना जारी की। हमेशा की तरहजेकेएसएसबी ने निर्दिष्ट किया कि पदों के लिए लिखित परीक्षा का दूसरा पेपर उम्मीदवार के उर्दू के कामकाजी ज्ञान का परीक्षण करेगा। विभाजन से पहले के समय से ही उर्दू जम्मू-कश्मीर की आधिकारिक प्रशासनिक भाषा रही है। शुरुआती डोगरा काल में फारसी जम्मू-कश्मीर की आधिकारिक भाषा थीलेकिन एक सदी से भी पहले महाराजा प्रताप सिंह ने उर्दू को एकमात्र आधिकारिक भाषा बना दिया था। जम्मू-कश्मीर राजस्व विभाग में भर्ती के लिए उर्दू का व्यावहारिक ज्ञान हमेशा से एक शर्त रही हैक्योंकि केंद्र शासित प्रदेश में सभी भूमि रिकॉर्ड इसी भाषा में हैं।

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अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद सितंबर 2020 में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने संसद में जम्मू-कश्मीर आधिकारिक भाषा विधेयक 2020 पारित कियाजिसमें चार और भाषाओं कश्मीरीडोगरीहिंदी और अंग्रेजी को जम्मू-कश्मीर की आधिकारिक भाषाओं के रूप में पहले से मौजूद उर्दू के साथ जोड़ा गया। विधेयक में कहा गया है कि इन पांच भाषाओं का उपयोग केंद्र शासित प्रदेश में सभी आधिकारिक उद्देश्यों के लिए किया जाएगा।

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