ठग लाइफ फिल्म का प्रदर्शन रोकने से सुप्रीम कोर्ट नाराज
कर्नाटक से मांगा 24 घंटे में जवाब
नई दिल्ली, 17 जून ( एजेंसी)। मशहूर कलाकार कमल हासन की मुख्य भूमिका वाली फिल्म 'ठग लाइफ' को आवश्यक कानूनी प्रावधानों के पालन किए बगैर कर्नाटक के सिनेमाघरों में दिखाये जाने से रोके जाने पर कड़ी आपत्ति व्यक्त करते हुए राज्य सरकार को 24 घंटे में जवाब देने का मंगलवार को निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति उज्जवल भुइयां और न्यायमूर्ति मनमोहन की अंशकालीन कार्य दिवस पीठ ने फिल्म के प्रदर्शन को रोके जाने को चुनौती देने वाली महेश रेड्डी की जनहित याचिका पर राज्य सरकार को ये निर्देश देते हुए कहा कि वह इस मामले में अगली सुनवाई गुरुवार को करेगी।
कन्नड़ भाषा पर हासन की कथित आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद एक समूह की ओर से (सिनेमा घर मालिकों को) दी गई धमकियों के बाद कर्नाटक में यह फिल्म प्रदर्शित नहीं की गई है, जबकि अन्य कई राज्यों में पांच जून से ही प्रदर्शित की जा रही है। कथित तौर पर धमकी दी गई थी कि फिल्म कर्नाटक में दिखाई गई तो संबंधित सिनेमाघरों में आग लगा दी जाएगी और फिल्म चलने नहीं दी जाएगी।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने आरोप लगाते हुए कहा कि भले ही राज्य ने उस फिल्म के प्रदर्शन पर प्रतिबंध नहीं लगाया, लेकिन धमकी देने वालों के खिलाफ भी सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। इतना ही नहीं, धमकियों के मद्देनजर सरकार ने सुरक्षा संबंधी आवश्यक उपाय नहीं किया कि फिल्म प्रदर्शित की जा सके। इस प्रकार बिना आवश्यक कानूनी प्रावधान के पालन किए फिल्म के प्रदर्शन पर एक तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया।
राज्य सरकार की ओर से यह दलील दिए जाने के बाद कि इस विवाद के मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय में एक याचिका लंबित है, पीठ ने उसे (उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित मामले को) शीर्ष अदालत के समक्ष स्थानांतरित कर दिया। पीठ ने राज्य के अधिवक्ता की उन दलीलों को खारिज करते हुए से कहा, "कल तक आप जवाब दाखिल करें। राज्य (सरकार) इस तरह से काम नहीं कर सकता। आपको बयान का जवाब बयान से और लिखकर देना चाहिए। हम ऐसा नहीं होने दे सकते।"
अदालत ने निर्देश देते हुए कहा कि एक बार जब फिल्म सीबीएफसी द्वारा प्रमाणित हो जाती है तो कोई भीड़ सिनेमा घर मालिकों को डरा धमका कर फिल्म प्रदर्शित करने पर प्रतिबंध लगाने पर मजबूर नहीं कर सकती। पीठ ने कहा, "हम भीड़ और कथित निगरानी समूहों को सड़कों पर कब्जा करने की अनुमति नहीं दे सकते। कानून का शासन कायम रहना चाहिए। हम ऐसा नहीं होने दे सकते। अगर किसी ने कोई बयान दिया है, तो उसका जवाब बयान से दें। अगर किसी ने कुछ लिखा है, तो उसका जवाब कुछ लिखकर दें। यह ढोंग (प्रतिबंध) है..." शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि सह-निर्माता द्वारा दायर रिट याचिका 20 जून से पहले विचार के लिए आ रही है, जिसमें कुछ समाधान हो सकता है।
पीठ ने कहा कि कानून कहता है कि सीबीएफसी द्वारा प्रमाणित किसी भी फिल्म को रिलीज किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा, "कानून के शासन की मांग है कि सीबीएफसी प्रमाणपत्र वाली कोई भी फिल्म रिलीज होनी चाहिए। राज्य को यह सुनिश्चित करनी चाहिए कि उसे प्रदर्शित करने में कोई बाहरी हस्तक्षेप न हो। ऐसा नहीं हो सकता कि सिनेमाघरों के जलने के डर से फिल्म न दिखाई जाए। लोग फिल्म न देखें। यह अलग मामला है। हम ऐसा कोई आदेश नहीं दे रहे हैं कि लोगों को फिल्म देखनी चाहिए, लेकिन फिल्म रिलीज होनी चाहिए।"
न्यायालय ने जोर दिया कि कानून का शासन महत्वपूर्ण है और राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जो कोई भी फिल्म दिखाना चाहता है, उसे सीबीएफसी प्रमाणपत्र मिलने के बाद ही फिल्म प्रदर्शित करनी चाहिए। पीठ ने कहा, "यह केवल एक फिल्म के बारे में नहीं है, बल्कि यह कानून के शासन और मौलिक अधिकारों से संबंधित है। इसलिए, यह न्यायालय हस्तक्षेप कर रहा है। शीर्ष अदालत का उद्देश्य कानून के शासन और मौलिक अधिकारों का संरक्षक होना है।"
इससे पहले 13 जून को उच्चतम न्यायालय की न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति मनमोहन की अंशकालीन पीठ ने 'ठग लाइफ' पर प्रतिबंध के खिलाफ श्री रेड्डी की याचिका पर कर्नाटक सरकार को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया था। तब अदालत ने कहा था कि वह इस मामले में अगली सुनवाई 17 जून को करेगी।
इस बीच, इस मामले में हस्तक्षेप की गुहार लगाते हुए कन्नड़ साहित्य परिषद ने शीर्ष अदालत के समक्ष आवेदन किया है। वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद संजय एम नूली द्वारा किए गए हस्तक्षेप आवेदन में आरोप लगाया गया है याचिकाकर्ता एम महेश रेड्डी का इस विषय से कोई लेना-देना नहीं है। उनकी रिट याचिका पूरी तरह गलत और एक "प्रचार हित याचिका" है।