ईरान के ध्वस्त होने का खतरा, तेहरान छोड़ रहे लोग

भयावह शक्ल लेने लगा इजराइल और ईरान का संघर्ष

ईरान के ध्वस्त होने का खतरा, तेहरान छोड़ रहे लोग

भारत ने भी अपने नागरिकों के लिए जारी की नई एडवाइजरी

ईरान में फंसे 10 हजार छात्रों को सुरक्षित निकालने पर ध्यान

भारतीय छात्रों को सड़क मार्ग से निकालने की अनुमति मिली

 तेल संकट के आसार, भारत ने 50 लाख टन का रखा रिजर्व

नई दिल्ली, 17 जून (एजेंसियां)। ईरान और इजराइल के बीच जारी संघर्ष के और बढ़ने की आशंका पर भारत ने अपने नागरिकों के लिए नई एडवाइजरी जारी की है। भारत ने अपने लोगों से तुरंत तेहरान छोड़ने को कहा है। उनसे भारतीय दूतावास के सम्पर्क में रहने और तेहरान से बाहर आने के लिए उचित व्यवस्था न हो पाने तक सुरक्षित स्थान पर रहने को कहा गया है। ईरान में भारतीय दूतावास ने कहा कि सभी भारतीय नागरिक और पर्सन ऑफ इंडियन ओरिजिन (भारतीय मूल के व्यक्ति) जो अपने संसाधनों का उपयोग करके तेहरान से बाहर जा सकते हैंउन्हें शहर के बाहर सुरक्षित स्थान पर जाने की सलाह दी जाती है।

भारतीय विदेश मंत्रालय का कहना है कि सुरक्षा कारणों से ईरान की राजधानी तेहरान से भारतीय छात्रों को शहर से बाहर ले जाया जा रहा है और अन्य भारतीयों को भी शहर से बाहर जाने की सलाह दी गई है। इजराइल लगातार ईरान को उसके परमाणु कार्यक्रम को लेकर निशाना बना रहा है। इसके जवाब में ईरान भी इजराइल पर मिसाइल हमले कर रहा है। विदेश मंत्रालय और ईरान का भारतीय दूतावास लगातार स्थिति पर अपडेट जारी कर रहे हैं। इस संबंध में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने अपील जारी की है। उन्होंने कहा कि स्थिति को देखते हुए भारतीयों को शहर से बाहर जाने की सलाह दी गई है। जो अपने वाहन से जाने में सक्षम हैंवे तेहरान से निकलें। कुछ भारतीयों को आर्मेनिया की सीमा के माध्यम से ईरान छोड़ने में मदद की गई है। दूतावास सभी संभव सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से समुदाय के साथ लगातार सम्पर्क में है। मंत्रालय का कहना है कि स्थिति अभी भी अस्थिर और नाजुक हैइसे देखते हुए आगे भी परामर्श जारी किए जा सकते हैं। सरकार ने स्पष्ट किया है कि भारतीय नागरिकों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है।

इजराइल और ईरान में तेजी से बिगड़ती स्थिति को देखते हुए भारत सरकार भारतीय नागरिकों की सुरक्षा के लिए व्यापक कदम उठा रही है। इजराइल की राजधानी तेल अवीव स्थित भारतीय दूतावास वहां मौजूद कामगारछात्रपर्यटकव्यवसायी और देखभाल कर्मियों के सम्पर्क में है और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक उपाय कर रहा है। भारतीय नागरिकों को सतर्क रहनेअनावश्यक आवाजाही से बचने और स्थानीय सुरक्षा निर्देशों का पालन करने की सख्त सलाह दी गई है। इसके अतिरिक्तविदेश मंत्रालय ने दिल्ली में नियंत्रण कक्ष स्थापित किया हैजिससे सहायता प्राप्त की जा सकती है।

पश्चिम एशिया में ईरान और इजराइल के बीच बढ़ते सैन्य तनाव ने न केवल क्षेत्रीय स्थिरता को चुनौती दी हैबल्कि वहां रह रहे विदेशी नागरिकोंविशेषकर छात्रों के लिए गंभीर सुरक्षा संकट पैदा कर दिया है। इस संदर्भ में भारत सरकार द्वारा ईरान में फंसे लगभग 10,000 भारतीय छात्रों की सुरक्षित निकासी की पहल एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक और मानवीय कदम है। भारत सरकार ने ईरान सरकार से राजनयिक स्तर पर अपने छात्रों की सुरक्षित निकासी के लिए मार्ग देने का अनुरोध किया था जिसे तेहरान ने स्वीकार करके सड़क मार्ग से उन्हें निकालने की अनुमति दी है। ईरान में भय का माहौल हैइजराइल की ओर से बरसती मिसाइलों के बीच अफरातफरी में नागरिक दबेछुपे बैठे हैं। बहुत से लोग तो टनलों में जाकरइजराइल के हमलों को समर्थन दे रहे हैं। ईरान और इजराइल के बीच करीब पांच दिन से जारी संघर्ष में दोनों देशों के बीच सैन्य हमले और जवाबी कार्रवाइयां तेज हो गई हैं। इस संघर्ष का प्रभाव केवल इन दो देशों तक सीमित नहीं रहा हैबल्कि वहां रह रहे अन्य देशों के नागरिकोंविशेषकर छात्रोंपर भी पड़ा है। ईरान के कई शहरों में बम धमाकों और मिसाइल हमलों की खबरें लगातार आ रही हैंजिससे स्थानीय और विदेशी नागरिकों में भय का माहौल है।

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एक आकलन के अनुसारईरान में लगभग 10,000 भारतीय नागरिक रह रहे हैंजिनमें से बड़ी संख्या में भारतीय छात्र वहां के मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई कर रहे हैं। उनमें भी अधिकांश छात्र जम्मू-कश्मीर से हैं। रिपोर्ट है कि तेहरान यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज के हॉस्टल के पास हुए हमले में दो कश्मीरी छात्र घायल भी हुए हैं। इस वातावरण से भयभीत छात्रों ने भारतीय दूतावास से अपील की कि उन्हें जल्द से जल्द सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जाएक्योंकि वे लगातार बम धमाकों की आवाज़ों के बीच बेसमेंट में छिपे हुए हैं।

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भारत सरकार ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए त्वरित कार्रवाई की है। विदेश मंत्रालय और तेहरान स्थित भारतीय दूतावास ने मिलकर छात्रों को ईरान के भीतर ही सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करना शुरू कर दिया है। इसके अतिरिक्तभारत ने ईरान सरकार से औपचारिक रूप से छात्रों की सुरक्षित निकासी की अनुमति मांगी थीजिसे ईरान ने स्वीकार कर लिया है। ईरान ने अपने हवाई क्षेत्र को बंद किया हुआ हैजिससे हवाई मार्ग से छात्रों की निकासी संभव नहीं है। इसके चलते भारत सरकार अब सड़क मार्ग से निकासी की योजना बना रही है। ईरान ने अफगानिस्तानअजरबैजान और तुर्कमेनिस्तान की सीमाओं को भारतीय नागरिकों के लिए खोल दिया हैजिससे छात्रों को इन देशों के जरिए सुरक्षित बाहर निकाला जा सकेगा।

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ईरान-इजराइल की लड़ाई ने कच्चे तेल की सप्लाई पर चिंता बढ़ा दी है। लेकिन भारत ने 50 लाख टन से अधिक कच्चे तेल का रिजर्व तैयार कर रखा है। एथेनॉल को भी वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में तेजी से विकसित किया जा रहा है। संभावना है कि ईरान और इजराइल के बीच संघर्ष पैदा होने से कच्चे तेल की कीमतें भी बढ़ेंगी और किल्लत भी बढ़ेगी। भारत सहित दुनिया में कई देश हैं जो कच्चे तेल के आयात के लिए दूसरे देशों पर निर्भर हैं। हालांकिभारत इससे निपटने के लिए पहले से तैयार है। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले इंडियन स्ट्रैटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व लिमिटेड (आईएसपीआरएल) की कुल क्षमता 5.33 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) कच्चे तेल की है। इनका भंडारण विशाखापत्तनममंगलुरु और पादुर में स्थित है। कच्चे तेल के अधिकतम भंडार के मामले में पादुर 2.5 मिलियन मीट्रिक टनमंगलुरू 1.5 और विशाखापत्तनम 1.3 मिलियन मीट्रिक टन का भंडारण करता है। इन भंडारों के निर्माण का मुख्य उद्देश्य वैश्विक स्तर पर होने वाले राजनीतिक उथल-पुथल के समय ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करना है। इनका प्रयोग आपूर्ति में व्यवधान या बाजार में कीमतों के उछाल की स्थिति में कच्चे तेल की मांग को पूरा करने के लिए किया जा सकता है। ये भंडार-गृह आमतौर पर जमीन के अन्दर गुफाओं में बनाए जाते हैं। इन्हें हाइड्रोकार्बन के भंडारण के लिए सबसे सुरक्षित तरीकों में से एक माना जाता है। इसके माध्यम से भारत में कच्चे तेल की आपूर्ति को लेकर गहराए संकट से निजात दिलाने में काफी मदद मिलेगी।

मोदी सरकार के आने के बाद स्ट्रैटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व (एसपीआर) के विस्तार पर जोर दिया गया। केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा जुलाई 2021 में दो और एसपीआर के निर्माण को मंजूरी दी गई थी ताकि भंडार में 6.5 एमएमटी की वृद्धि हो सके। इसका उद्देश्य बाहरी झटकों का सामना करने के लिए भारत की क्षमता को बढ़ाना है। इतना ही नहीं सरकार भविष्य के भंडारों के लिए नई जगहों की पहचान करने में लगी है। मोदी सरकार ने आयात स्रोतों को बढ़ाने का भी कार्य किया है। किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भरता के जोखिम के खतरे को कम करने के लिए सरकार ने आयात स्रोतों को भी बढ़ाया है। भारत ने ऑस्ट्रेलियाअमेरिका और यूएई में लिक्विफाइड नैचुरल गैस (एलएनजी) के आयात पर हस्ताक्षर किए हैं।

कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए भारत ने जैव ईंधन और गैस आधारित ऊर्जा के विकास पर भी काफी जोर दिया है। इससे इथेनॉल उत्पादन में काफी वृद्धि हुई। इथेनॉल उद्योग के निर्माण से कार्बन उत्सर्जन में 1 करोड़ (10 मिलियन) टन की कमी आएगी और कच्चे तेल के आयात पर सालाना 40,000 करोड़ रुपए तक की बचत होगी। सरकार बायो गैसबायोडीजलग्रीन हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिक वाहनों को भी बढ़ावा दे रही है। यह कहना गलत नहीं होगा कि संकट की स्थिति में भी भारत के पास अपने एसपीआर को हफ्तों या महीनों तक इस्तेमाल करने की क्षमता है। मोदी सरकार के नेतृत्व में भारत ने ऊर्जा और खनिज के क्षेत्र में इतना सशक्त बना लिया है कि उसे वैश्विक संकट के इस दौर में भी किसी की तरफ देखने की कोई जरूरत नहीं है।

उधर, ईरान के खिलाफ लड़ाई में जी-7 के देशों ने इजराइल को अपना पूर्ण समर्थन दिया है। जी-7 देशों का कहना है कि इजराइल को आत्मरक्षा का पूरा अधिकार है। जी-7 बैठक में शामिल होने के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी पहुंचे और जल्दी ही वापस लौट गए। दरअसलइजराइल और ईरान के बीच संघर्ष तेज होने की वजह से ट्रंप ने यह कदम उठाया। यह पहले से ही तय था। रवाना होने से पहले उन्होंने यह भी कहा कि तेहरान को तुरंत खाली कर दिया जाना चाहिए। जी-7 देशों ने ईरान के खिलाफ लड़ाई में इजराइल का खुलकर समर्थन कर दिया है। सोमवार को देर रात जारी एक बयान में जी-7 देशों ने इजराइल के प्रति समर्थन व्यक्त किया और उसके प्रतिद्वंद्वी ईरान को पश्चिम एशिया में अस्थिरता का मूल कारण बताया। इस बयान में इलाके में शांति और स्थिरता का आह्वान किया गया। ईरान और इजराइल के बीच हवाई युद्ध बीते शुक्रवार को शुरू हुआ थाजब इजराइल ने ईरान पर हवाई हमले किए थे। जवाब में ईरान ने भी इजराइल पर ड्रोन और मिसाइलों से हमले किए थे। इससे इलाके में तनाव और चिंता बढ़ गई है। यहां अक्टूबर 2023 में गाजा पर इजराइल के सैन्य हमले की शुरुआत के बाद से ही तनाव था। जी-7 देशों के नेता वैश्विक दबाव से जुड़े कई मामलों पर चर्चा करने और उनका समाधान निकालने के लिए कनाडा में एकत्र हुए थे। हालांकि,  ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर टकराव की वजह से कार्यक्रम पूरी तरह से बाधित हो गया। इजराइल और ईरान के बीच जारी संघर्ष अब और भी खतरनाक और अनियंत्रित होता दिखाई दे रहा है। दोनों देश चार दिन से एक-दूसरे पर बम बरसा रहे हैं।

जी-7 के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने शिखर सम्मेलन में चेतावनी दी कि तेहरान को अपने परमाणु कार्यक्रम को रोकने की जरूरत हैइससे पहले कि बहुत देर हो जाए। उन्होंने कहा कि ईरानी नेता बातचीत करना चाहेंगेलेकिन उनके पास अपनी परमाणु महत्वाकांक्षाओं पर एक समझौते पर पहुंचने के लिए पहले से ही 60 दिन थे। इजराइली हवाई हमले शुरू होने से पहले वे ऐसा करने में विफल रहे। उन्हें समझौता करना होगा।

यह पूछे जाने पर कि अमेरिका को सैन्य रूप से संघर्ष में शामिल होने के लिए क्या करना होगाट्रंप ने कहामैं इसके बारे में बात नहीं करना चाहता। साथ ही ट्रंप ने यह चेतावनी भी दी कि सभी को फौरन तेहरान खाली कर देना चाहिए। ट्रंप ने जी-7 नेताओं के साथ समूह तस्वीर के लिए शामिल हुए और कहा, मुझे वापस जाना बहुत जरूरी है। मेजबान कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने कहामैं राष्ट्रपति की उपस्थिति के लिए बहुत आभारी हूं और मैं उनकी बात को पूरी तरह समझता हूं।

अब तक इजराइल ने कई ईरानी परमाणु कार्यक्रम स्थलों को निशाना बनाया हैलेकिन वह ईरान की फोर्डो यूरेनियम संवर्धन सुविधा को नष्ट नहीं कर पाया है। यह सुविधा बहुत गहराई में स्थित है। इसे नष्ट करने के लिए इजराइल को 30,000 पाउंड (14,000 किलोग्राम) के जीबीयू-57 मैसिव ऑर्डनेंस पेनिट्रेटर की आवश्यकता पड़ सकती है। यह अमेरिकी बंकर-बस्टिंग बम हैजो अपने वजन और गतिज बल का उपयोग करके गहरे दबे हुए लक्ष्यों तक पहुंचता है। इजराइल के पास इसे पहुंचाने के लिए आवश्यक गोला-बारूद या बमवर्षक नहीं है। पेनिट्रेटर को वर्तमान में बी-2 स्टील्थ बॉम्बर द्वारा पहुंचाया जाता है।

भारत जी-7 देशों का हिस्सा नहीं हैलेकिन कनाडा के पीएम मार्क कोनी के निमंत्रण पर वह सम्मेलन में आउटरीच पार्टनर के तौर पर हिस्सा ले रहे हैं। इस दौरान पीएम मोदी सम्मेलन में आने वाले देशों के नेताओं से मुलाकात और कुछ बैठकों का हिस्सा बने। कनानास्किस में हो रहे जी-7 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कनाडा के कैलगरी पहुंचने पर उनका जोरदार स्वागत किया गया। यह लगातार छठा साल है जब प्रधानमंत्री मोदी जी-7 शिखर सम्मेलन में प्रतिभाग कर रहे हैं। भारत जी-7 देशों का हिस्सा नहीं हैलेकिन कनाडा के पीएम मार्क कार्नी के निमंत्रण पर वह सम्मेलन में आउटरीच पार्टनर के तौर पर हिस्सा ले रहे हैं। भारत के साथ मेक्सिको और यूक्रेन भी इस फेहरिस्त में शामिल है। इस दौरान पीएम मोदी सम्मेलन में आने वाले देशों के नेताओं से मुलाकात की कुछ द्विपक्षीय बैठकों में हिस्सा लिया।

जी-7 दुनिया की 7 उन्नत अर्थव्यवस्थाओं और यूरोपीय संघ का एक अनौपचारिक समूह है। इसमें संयुक्त राज्य अमेरिकाकनाडाफ्रांसजर्मनीइटलीजापान और यूनाइटेड किंगडम शामिल हैं। रूस भी पहले इस समूह का हिस्सा थालेकिन क्रीमिया देश पर कब्जा करने के बाद समूह से उसे निष्कासित कर दिया गया। गौरतलब है कि ईरान और इजराइल के बीच लगातार युद्ध की स्थिति बदतर होती जा रही है तो वहीं पश्चिम एशिया के देशों में भी तनाव बढ़ रहा है। वहीं पश्चिम एशिया के देशों में भी तनाव बढ़ रहा है। इसके अलावा जी-7 के इस समय होने के पीछे एक कारण अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ नीतियां भी हैं। भारत और कनाडा के रिश्तों में पिछले साल तब तल्खी आई थीजब खालिस्तानी समर्थक अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में अक्टूबर 2024 में ओटावा ने भारत के पांच डिप्लोमेट को जोड़ने का प्रयास किया था। इस कड़ी में भारत ने देश से कनाडा के राजनयिकों को निष्कासित कर कनाडा से भी अपने उच्चायुक्त और अन्य डिप्लोमेट को वापस बुला लिया था।

मार्च में कनाडा के नए प्रधानमंत्री बने कार्नी ने एक बार फिर भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के लिहाज से पीएम मोदी को इस सम्मेलन के लिए निमंत्रित किया है। भारत के लिए कनाडा पोटाशलकड़ीकागज और अन्य खनन उत्पादों को आयात करता है। इसी तरह भारत की ओर से कनाडा को कपड़ेमशीनरीफार्मास्यूटिकल्स और रत्न निर्यात किया जाता है। इसके अलावा कनाडा में भारतीय छात्रों की भी एक बड़ी संख्या रहती है।

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