भाजपा को हमसे इस्तीफा मांगने का क्या नैतिक अधिकार
मुख्यमंत्री ने भाजपा शासित राज्यों में हुई मौतों के बाद इस्तीफा देने वाले नेताओं की सूची मांगी
बेंगलूरु/शुभ लाभ ब्यूरो| कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरामैया ने विपक्षी भाजपा को चुनौती दी कि वह भाजपा शासित राज्यों में हुई भगदड़ के बाद इस्तीफा देने वाले नेताओं की सूची जारी करे और फिर उनसे और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार से इस्तीफा देने की मांग करे| २००२ में गुजरात दंगों, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले जिसमें २६ लोगों की जान चली गई थी, मणिपुर में हिंसा, गुजरात में मोरबी पुल ढहने की घटना जिसमें १४० लोगों की जान चली गई थी और जनवरी २०२५ में उत्तर प्रदेश में महाकुंभ मेले के दौरान ३० तीर्थयात्रियों की मौत का हवाला देते हुए सिद्धरामैया ने भाजपा के विरोध और उनके तथा शिवकुमार के इस्तीफे की मांग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया| मुख्यमंत्री ने कहा कि उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश ४ जून को बेंगलूरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम में हुई भगदड़ की जांच कर रहे हैं जिसमें ११ लोगों की जान चली गई थी|
उन्होंने कहा कि आयोग की रिपोर्ट के आधार पर दोषियों के खिलाफ बिना किसी हिचकिचाहट के सख्त कार्रवाई की जाएगी| प्रेस को जारी एक बयान में, सिद्धरामैया ने कहा ४ जून को चिन्नास्वामी स्टेडियम के पास जो हुआ, वह एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना है| एक जिम्मेदार सरकार के रूप में, हमने इस घटना की जवाबदेही ली है| हमने बेंगलूरु शहर के पुलिस आयुक्त सहित वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को निलंबित कर दिया है और राज्य खुफिया विभाग के प्रमुख का तबादला कर दिया है| मेरे राजनीतिक सचिव (गोविंदराजू, एमएलसी) को भी उनके कर्तव्यों से मुक्त कर दिया गया है| इसके अतिरिक्त, हमने मामले की गहन जांच करने के लिए न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) जॉन माइकल डी’कुन्हा के नेतृत्व में एक सदस्यीय आयोग का गठन किया है| भाजपा की राज्य इकाई ने मंगलवार को मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया| सिद्धरामैया ने कहा ऐसी निर्णायक कार्रवाई करने के बावजूद कर्नाटक में भाजपा नेता लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं|
इससे यह स्पष्ट होता है कि उनके इरादे लोगों के प्रति वास्तविक चिंता से प्रेरित होने के बजाय राजनीतिक हैं| त्रासदियों का राजनीतिकरण करना भाजपा के लिए कोई नई बात नहीं है| हम हर त्रासदी से प्रभावित परिवारों के दुख और पीड़ा के साथ सहानुभूति रखते हैं| यही कारण है कि हम राजनीतिक लाभ के लिए ऐसी घटनाओं का फायदा नहीं उठाते हैं| हालांकि, भाजपा नेताओं द्वारा इन घटनाओं को उछालकर जनता को भड़काने के बार-बार प्रयासों को देखते हुए, हम उनके शासन के दौरान हुई कुछ घटनाओं को लोगों के ध्यान में लाकर उनके पाखंड को उजागर करने के लिए बाध्य महसूस करते हैं| सिद्धरामैया ने गुजरात, उत्तर प्रदेश, मणिपुर में हुई मौतों को लेकर भाजपा से सवाल किए| उन्होंने पिछली घटनाओं को याद करते हुए कहा २००२ में गुजरात दंगों के दौरान विभिन्न समुदायों के लगभग २,००० निर्दोष लोगों ने अपनी जान गंवाई थी| तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा जिम्मेदारी लेने और इस्तीफा देने के सुझाव के बावजूद, तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने न तो पद छोड़ा और न ही आज तक कोई खेद व्यक्त किया| इस वर्ष अप्रैल में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के दौरान २६ लोगों की जान चली गई थी| हमारी पार्टी ने इस घटना पर प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग नहीं की थी| हमने केवल हमले पर चर्चा के लिए एक विशेष संसद सत्र का अनुरोध किया था, जिसे प्रधानमंत्री ने अस्वीकार कर दिया था|
अभी भी, इस हमले के अपराधियों की पहचान नहीं हो पाई है| क्या यह केंद्र सरकार की विफलता नहीं है? इस विफलता के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या पंडित जवाहरलाल नेहरू, राहुल गांधी या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी? सिद्धरामैया ने कहा पिछले दो सालों से मणिपुर हिंसा की आग में झुलस रहा है| सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है, फिर भी मुख्यमंत्री बीरेन सिंह २० महीने तक सत्ता में बने रहे| उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ही इस्तीफा दिया, लेकिन राज्य में हिंसा जारी है| क्या केंद्रीय गृह मंत्री को इसकी जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए?
गुजरात में मोरबी पुल ढहने से १४० लोगों की जान चली गई| इस साल जनवरी में उत्तर प्रदेश में महाकुंभ मेले के दौरान ३० तीर्थयात्रियों की जान चली गई| क्या उन राज्यों के मुख्यमंत्री भाजपा से नहीं थे? उन्होंने न केवल इस्तीफा नहीं दिया, बल्कि उन सरकारों ने इन घटनाओं की उचित जांच भी नहीं की| ऐसे में भाजपा को हमसे इस्तीफा मांगने का क्या नैतिक अधिकार है? सिद्धरामैया ने कर्नाटक के भाजपा नेताओं से आग्रह किया कि वे ‘सड़क पर नाटक करना बंद करें और अपनी अंतरात्मा की आवाज पर काम करें|

