इस बार बांग्लादेश की तरफ से होगा पहलगाम जैसा कांड
बांग्लादेश पर कब्जा कर 1971 का बदला लेने की तैयारी में पाकिस्तान
पाकिस्तान के वफादार पिट्ठू का काम कर रहे बांग्लादेश के बिहारी मुसलमान
पाकिस्तान में ट्रेंड 50 हजार बिहारी मुसलमान भारत आकर विलीन हो गए
एचआईवी संक्रमित महिलाओं के जरिए हिंदुओं को विकृत करने की साजिश
बांग्लादेश को अस्थिर करने के बाद पाकिस्तान ने बनाया भारत को टारगेट
दीनबंधु कबीर
1971 के मुक्ति संग्राम में अपनी हार के पांच दशक से ज्यादा समय बाद भी पाकिस्तान की सैन्य व्यवस्था बंगाली लोगों द्वारा दिए गए तीखे अपमान को स्वीकार नहीं कर पाई है। भारत के निर्णायक हस्तक्षेप के फलस्वरूप हुए उस युद्ध में पूर्वी पाकिस्तान आजाद हुआ और बांग्लादेश के रूप में एक संप्रभु राष्ट्र अस्तित्व में आया। इससे इस्लामाबाद में सेना के शीर्ष अधिकारी तथाकथित बंगाली हिंदुओं (बांग्लादेश के मुसलमानों को पाकिस्तानी बंगाली हिंदू कहते हैं) और भारतीय सेना द्वारा किया गया अपमान मानते हैं और बदला लेने का मौका तलाशते रहते हैं। मोहम्मद यूनुस नामके पिट्ठू को अमेरिकी डीप स्टेट द्वारा बांग्लादेश की सत्ता पर ठोके जाने के बाद पाकिस्तान को यह मौका मिल गया है। पाकिस्तानी नेतृत्व खास तौर पर पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसियां लंबे समय से बंगालियों की सांस्कृतिक और भाषाई स्वतंत्रता पर आपत्ति उठाती रही हैं। पाकिस्तानियों को इस बात पर गहरी नाराजगी रही है कि तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लाभाषियों ने उर्दू को राष्ट्रीय भाषा मानने से इन्कार कर दिया था। बंगालियों के उस विरोध ने 1952 का ऐतिहासिक भाषा आंदोलन खड़ा किया, जिसमें असंख्य बंगालियों की शहादत हुई थी। एक प्रकार से कहें तो उस असंतोष और मुक्ति की इच्छा ने उसी समय बांग्लादेश के अस्तित्व में आने का बीज बो दिया था।
आज, बांग्लादेश की आजादी के 54 साल से भी ज्यादा समय बाद, पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान गुप्त और खतरनाक एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है। यह एजेंडा है, बांग्लादेश पर फिर से नियंत्रण हासिल करना और उसके नागरिकों को इस्लामाबाद के अधीन करना। इस खतरनाक साजिश में पाकिस्तान उन बिहारी मुसलमानों का रणनीतिक इस्तेमाल कर रहा है, जो 1947 के बंटवारे में भारत छोड़ कर पाकिस्तान बसाने के धार्मिक कृत्य में पूर्वी पाकिस्तान चले आए थे। अब उन्हीं बिहारी मुसलमानों को पाकिस्तान अपना औजार बना रहा है। बिहारी मुसलमानों को पाकिस्तान अपना वफादार मानता है। बांग्लादेश की आजादी के लिए 1971 में हुए युद्ध में बिहारी मुसलमानों ने पाकिस्तानी सेना के साथ मिल कर भीषण उत्पात मचाया था। वे बंगालियों के साथ बलात्कार, हत्या और लूटपाट सहित अत्याचारों में व्यापक रूप से शामिल थे। इसका नतीजा यह निकला कि बांग्लादेश की आजादी के बाद बिहारी मुसलमानों को गद्दार और पाकिस्तान के वफादार के रूप में सार्वजनिक घृणा का पात्र बना दिया गया। 1947 के बाद बिहारी मुसलमान भारत के गद्दार बने और 1971 के बाद वे बांग्लादेश के भी गद्दार साबित हुए।
शुरुआत में पाकिस्तान ने अपने वफादार बिहारी मुसलमानों को पाकिस्तान भेजा, जो तत्कालीन सरकार में कर्मचारी थे या सेना में काम करते थे। शुरुआती दौर में पाकिस्तान भेजे गए बिहारी मुसलमानों की तादाद 83,000 थी। लेकिन 1974 में अचानक पाकिस्तान ने वफादारों की पाकिस्तान वापसी की प्रक्रिया रोक दी। विशेषज्ञों का मानना है कि कालांतर में उन्हीं बिहारी मुसलमानों को स्लीपर एजेंट और कवर जासूस के रूप में इस्तेमाल करने की रणनीति के तहत वहीं बांग्लादेश में छोड़ दिया गया। आज वही बिहारी मुसलमान बांग्लादेश का दशकों खाया नमक भूल कर फिर से पाकिस्तान का गुलाम बनने के लिए उद्धत हो रहे हैं। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) बांग्लादेश में बचे रह गए बिहारी मुसलमानों को भविष्य के मुखबिर के रूप में देखा, जिन्हें बांग्लादेश को अस्थिर करने और भारत के लिए खतरा बनने के लिए सक्रिय किया जा रहा है। वर्तमान में अनुमान है कि बांग्लादेश में 300,000 से 600,000 बिहारी मुसलमान रहते हैं, जिनमें से कई ढाका और 13 अन्य जिलों में घनी आबादी वाले और गरीब बस्तियों में रहते हैं। यह समुदाय कट्टरपंथ और आपराधिक गतिविधियों में पूरी तरह मुब्तिला है और यह पाकिस्तानी एजेंडे के लिए अनुकूल है।
2024 के मध्य से, पाकिस्तान की आईएसआई ने बिहारी मुस्लिम समुदाय की सामाजिक-आर्थिक कमजोरियों का फायदा उठाकर बांग्लादेश में अपने अभियान को तेज कर दिया है। बिहारी मुसलमानों के शिविरों और बस्तियों से ड्रग्स का धंधा और अवैध हथियारों से लेकर मानव तस्करी तक का कारोबार अंधाधुंध चल रहा है। इससे भी ज्यादा खतरनाक बात यह है कि पाकिस्तानी शह पर अब बिहारी मुसलमानों की बस्तियां जेहादी विचारधारा और भारत विरोधी उग्रवाद का प्रजनन स्थल बन गई हैं। आईएसआई के मार्गदर्शन में चुने गए बिहारियों को 2022 की शुरुआत से पाकिस्तान भेजा गया, जहां उन्हें विस्फोटकों से निपटने, गुरिल्ला युद्ध करने और कट्टरपंथी इस्लामवादी विचारधारा फैलाने का प्रशिक्षण दिया गया। उनके लौटने पर, आईएसआई समर्थित गुर्गों ने शिविरों के भीतर भोजन और सहायता वितरित करना शुरू कर दिया, जिससे निर्भरता और निष्ठा पैदा हुई। स्थानीय केबल नेटवर्क के माध्यम से उर्दू भाषा की डॉक्यूमेंट्री प्रसारित की गई, जिसमें भारत में मुस्लिम उत्पीड़न के बारे में फर्जी कहानियां चलाई गईं और जेहाद का महिमामंडन किया गया। इस प्रचार अभियान ने पुरानी दुश्मनी को फिर से भड़का दिया और सांप्रदायिक विभाजन को काफी गहरा कर दिया।
खुफिया रिपोर्टें बताती हैं कि अब तक 50 हजार से अधिक बिहारी मुसलमानों ने क्रमशः पाकिस्तान से अपना प्रशिक्षण पूरा कर लिया है। इन्हीं पाकिस्तान प्रशिक्षित बिहारी मुसलमानों ने आग्नेयास्त्रों, हथगोलों और विस्फोटकों से लैस होकर पुलिस स्टेशनों पर समन्वित हमले किए, जेलों से भागने की कोशिश की, शस्त्रागार लूटे और लक्षित हत्याएं कीं। इन तत्वों ने बांग्लादेश में ऐसी हिंसक अराजकता सृजित की कि 5 अगस्त 2024 को व्यापक अशांति के बीच प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़कर भागना पड़ा। इसके बाद पाकिस्तान ने अपना एजेंडा और तीव्र कर दिया। बांग्लादेश में आईएसआई के संचालकों ने प्रशिक्षित बिहारी मुसलमानों को नकदी और हथियार दिए और खूब हिंसा फैलाई। बिहारी मुसलमानों के जरिए अवामी लीग के समर्थकों, हिंदू अल्पसंख्यकों और मंदिरों को निशाना बनाया गया। दंगाइयों ने आगजनी की, घरों को लूटा और यौन हिंसा की।
अल-कायदा और आईएसआईएस के कट्टरपंथी इस्लामी झंडे खुलेआम सड़कों पर लहराए गए। हिज्ब उत-तहरीर और हिफाजत-ए-इस्लाम जैसे समूह भी इस अशांति में शामिल हो गए, जिससे स्थिति और भी खराब होती चली गई। जमात-ए-इस्लामी और अन्य जेहादी संगठनों द्वारा समर्थित और बांग्लादेश के सशस्त्र बलों में कई इस्लामाबाद समर्थक लोगों की मिलीभगत से उत्साहित पाकिस्तान ढाका पर अपना प्रभाव फिर से स्थापित करने लगा। शेख हसीना के बाद के बांग्लादेश पर पाकिस्तान की पकड़ मजबूत होने के साथ ही आईएसआई ने अपनी रणनीति के तहत भारत में आतंक का निर्यात करना शुरू किया। प्रशिक्षित बिहारी गुर्गों को संगठित मानव तस्करी के जरिए छोटे-छोटे समूहों में बांग्लादेश सीमा के पार भारत भेजा गया। भारत में घुसने के बाद, इन घुसपैठियों ने भारत में बैठे पाकिस्तानी दलालों के जरिए आधार कार्ड हासिल कर लिए और समाज में घुलमिल गए। वे रसोइया, नाई, घरेलू नौकरानियां, निर्माण श्रमिक और दिहाड़ी मजदूर के रूप में धंधा करने लगे। हिंदी और उर्दू पर उनकी पकड़ के कारण उन्हें भारतीय नागरिक के रूप में पहचानना आसान हो गया। अधिकांश भारतीयों को यह नहीं पता है कि इनमें से अधिकांश लोग प्रशिक्षित आतंकवादी हैं, जिन्हें पाकिस्तानी आकाओं ने भारत के बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाने और देश को अंदर से अस्थिर करने का लक्ष्य दे रखा है।
आईएसआई ऑपरेशन के सबसे भयावह तत्वों में से एक है एचआईवी संक्रमित महिलाओं का इस्तेमाल। आईएसआई के निर्देश पर कई युवा बिहारी महिलाओं को जानबूझकर एचआईवी संक्रमित किया गया और भारी भरकम मुआवजा देकर इन महिलाओं को वेश्यालयों और अन्य सेवा क्षेत्रों में काम करने के लिए भारत भेजा गया। वहां वे महिलाएं वायरस फैला रही हैं और हिंदुओं को निशाना बना रही हैं। यह भारत के हिंदू समाज को जर्जर करने में धीमे जहर का काम कर रहा है। इनमें से कुछ महिलाओं के अधिक बीमार होने पर इन्हें आत्मघाती मिशन को अंजाम देने के लिए तैयार रखे जाने की भी तैयारी है। भारतीय हिंदू आबादी में बीमारी फैलाने के लिए इसे जैविक हथियार की तरह इस्तेमाल करने की रणनीति पाकिस्तान के मूल नस्ल की सनद है। खुफिया एजेंसियों की खतरनाक सूचनाओं के बाद ही भारत में बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों का पता लगाने और उन्हें बाहर निकालने के प्रयास तेज हुए हैं। हालांकि आईएसआई-प्रशिक्षित बिहारी मुसलमानों की पहचान का काम बहुत मुश्किल टास्क साबित हो रहा है। जबकि यह जमात भारत के लिए विनाशकारी साबित हो सकती है।
खुफिया एजेंसियों के मुताबिक आईएसआई पहलगाम नरसंहार जैसे हमलों को दोहराने की योजना बना रही है। इस बार यह हमला बांग्लादेश की तरफ से होगा। खुफिया एजेंसियों ने आईएसआई के प्रयासों को जमातुल मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी), हरकत-उल-जिहाद अल-इस्लामी (हूजी) और अंसार अल-इस्लाम जैसे आतंकी संगठनों से जोड़ा है। इन संगठनों भारत में स्लीपर सेल बना रखे हैं, जिन्हें पश्चिम बंगाल और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में आश्रय दिया जाता है।
बांग्लादेश पर नियंत्रण स्थापित करने और बिहारी मुस्लिम समुदाय को अपना औजार बनाकर भारत के खिलाफ छद्म-युद्ध छेड़ने के लिए पाकिस्तान के सैन्य-खुफिया तंत्र द्वारा रची गई साजिश केवल क्षेत्रीय चिंता नहीं है, यह एक भू-राजनीतिक आपातकाल है। पाकिस्तान के इस आतंकी अभियान में राष्ट्रविहीन व्यक्तियों को पैदल सैनिक के रूप में हथियार बनाया जा रहा है। रक्षा विशेषज्ञ यह मानते हैं कि यदि इस खतरे का गंभीरता से सामना नहीं किया गया तो दक्षिण एशिया राज्य प्रायोजित उग्रवाद, सांप्रदायिक हिंसा और सीमा पार आतंकवाद के एक नए दौर में उलझ सकता है। अभी कार्रवाई न करने से न केवल इस्लामाबाद की बदनीयत को बढ़ावा मिलेगा बल्कि अस्थिरता की आग भड़क सकती है जो पूरे क्षेत्र को अपनी चपेट में ले लेगी और वैश्विक शांति को खतरे में डाल देगी। इस मामले में निष्क्रियता का परिणाम अत्यंत घातक साबित हो सकता है।
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