भारत की सीमा तिब्बत से जुड़ी है, चीन से नहीं
चीन से सीमा विवाद पर भारत सरकार की नीति बदलने के संकेत
अरुणाचल के सीएम पेमा खांडू के बयान से बौखलाया चीन
चीन अवैध कब्जा नहीं करता तो तिब्बत आजाद देश होता
अरुणाचल की सीमा का चीन से कोई लेना-देना ही नहीं है
नई दिल्ली/इटानगर, 11 जुलाई (एजेंसियां)। अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक गलियारे में नई बहस छेड़ दी है। इस बहस के केंद्र में एक बार फिर भारत-चीन संबंध हैं। सीएम प्रेमा खांडू ने जो बात कही है वह अंतरराष्ट्रीय फोरम पर भारत को शुरुआत से ही कहनी चाहिए थी। पेमा खांडू ने कहा है कि अरुणाचल की 1200 किलोमीटर लंबी सीमा का चीन से कोई लेनादेना ही नहीं है। अरुणाचल की सीमा तो तिब्बत से लगती है, उसका चीन से क्या सरोकार है? उन्होंने चुनौती दी कि भारत का कोई भी राज्य चीन का पड़ोसी नहीं है, वह तिब्बत का पड़ोसी जरूर है। तिब्बत पर चीन ने अवैध कब्जा कर रखा है। अंतरराष्ट्रीय मंचों और विश्व के तमाम देशों को यह तय करना चाहिए कि किसी देश पर चीन का अवैध कब्जा कैसे हटे।
अरुणाचल के सीएम पीएम खांडू ने स्पष्ट शब्दों में बताया कि 1950 में चीन ने तिब्बत पर जबरन कब्जा कर लिया था और उसके बाद से तिब्बत को चीन अपना हिस्सा बताने लगा और दुनिया चीन की बात मानने लगी। लेकिन यह हकीकत नहीं है। हकीकत तो यह है कि अरुणाचल की 1200 किलोमीटर लंबी सीमा तिब्बत से लगती है। तिब्बत की अपनी अलग पहचान है और भारत का रिश्ता तिब्बत से है, चीन से नहीं। खांडू ने 1914 के शिमला समझौते का हवाला दिया, जिसमें तिब्बत को अलग देश माना गया था। उन्होंने दलाई लामा के उत्तराधिकारी चुनने में चीन की दखलंदाजी को भी खारिज कर दिया, बोले कि ये तिब्बती बौद्धों का आंतरिक मामला है।
भारत के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेमा खांडू का यह बयान सिर्फ एक राजनीतिक टिप्पणी नहीं है, बल्कि यह चीन की विस्तारवादी नीतियों पर सीधा हमला है। खासकर यह बयान तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के 90वें जन्मदिन के ठीक बाद आया है। दलाई लामा के जन्मदिवस समारोह में सीएम खांडू खुद शामिल हुए थे। कूटनीतिक जगत में अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू के बयान से खलबली है। भारत समेत दुनियाभर के कूटनयित पेमा खांडू के बयान के मायने, इसकी टाइमिंग, तिब्बत पर चीन के अवैध कब्जे की कहानी, दलाई लामा के रोल और खांडू के बयान से शी जिनपिंग की अगुवाई वाली चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में फैली बेचैनी को समझने और उसकी थाह लेने की कोशिश कर रहे हैं। यह मामला न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लिए बेहद अहम बन गया है।
पेमा खांडू का बयान सीधे-सीधे चीन के उस दावे को चुनौती देता है जिसमें वह तिब्बत को अपना अभिन्न हिस्सा बताता है। खांडू ने कहा, हम तिब्बत के साथ सीमा साझा करते हैं, चीन के साथ नहीं। उन्होंने साथ में यह भी जोड़ा कि अरुणाचल प्रदेश तीन अंतरराष्ट्रीय सीमाएं साझा करता है। अरुणाचल प्रदेश भूटान के साथ 150 किलोमीटर, तिब्बत के साथ 1200 किलोमीटर और म्यांमार के साथ 550 किलोमीटर क्षेत्र के साथ जुड़ा है। इसमें चीन कहां आता है? सीएम खांडू ने कहा, कोई भी भारतीय राज्य चीन से सीधे नहीं जुड़ता।
अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री की यह बात इसलिए गंभीर मायने रखती है क्योंकि चीन लंबे समय से अरुणाचल को अपना हिस्सा बताता रहा है, उसे दक्षिण तिब्बत कहकर दावा पेश करता रहता है। खांडू का बयान यह साफ-साफ कह रहा है कि चीन ने पहले तिब्बत पर अवैध कब्जा जमाया और फिर अरुणाचल की सीमा को लेकर अपना सुनियोजित दावा ठोका है। वरना भारत का पड़ोसी तिब्बत होता। नेपाल या भूटान की तरह तिब्बत भी एक अलग देश या बफर स्टेट होता। खांडू के बयान के मायने कूटनीतिक होने के साथ-साथ राजनीतिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक स्तर के भी हैं। राजनीतिक रूप से, यह भारत की तरफ से चीन को साफ संदेश है कि हम तुम्हारी विस्तारवादी कहानी को नहीं मानते। सांस्कृतिक रूप से, खांडू ने जोर दिया कि अरुणाचल की संस्कृति और भूगोल तिब्बत से जुड़े हैं, जहां बौद्ध धर्म की जड़ें गहरी हैं। रणनीतिक रूप से यह सीमा विवाद को नया मोड़ दे सकता है। चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर डैम बना रहा है, जिसे खांडू ने टिकिंग वॉटर बॉम्ब कहा है। अगर तिब्बत पर चीन का अवैध कब्जा नहीं होता, तो आज इस तरह की समस्या नहीं होती।
यानि, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू के बयान से यह स्पष्ट हो गया है कि भारत सरकार ने चीन के सीमाई विवाद के दावे को लेकर अपनी नीति बदल दी है और वह अब इस मसले पर चुप नहीं रहेगा। अब भारतवर्ष तिब्बत पर अवैध कब्जे की हकीकत को मुखर रूप से दुनिया के सामने रखेगा और दुनिया की चुप्पी को तोड़ने की कोशिश करेगा। भारतवर्ष द्वारा चीन की वन चाइना पॉलिसी पर गंभीर सवाल उठाए जाने से चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) को स्पष्ट तौर पर झटका लगेगा। भारत जैसे बड़े देश तिब्बत को अलग मानने लगें, तो चीन की वैश्विक छवि पर असर पड़ेगा।
धर्मशाला में 6 जुलाई को हुए तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा के जन्मदिवस समारोह में अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू शरीक हुए थे। उन्होंने दलाई लामा को सम्मान दिया था और तिब्बती एवं भारतीय संस्कृति की समरूपता पर विस्तार से बात की थी। चीन को लेकर उन्होंने अपना बयान 9 जुलाई को दिया, जिससे चीन अंदरूनी तौर पर बुरी तरह हिल गया और बौखला गया। दलाई लामा ने 2 जुलाई को कहा था कि वे उचित समय पर तिब्बती बौद्ध परंपरा के मुताबिक अपना उत्तराधिकारी चुनेंगे और इसमें चीन का कोई रोल नहीं होगा। उन्होंने कहा कि दलाई लामा की संस्था जारी रहेगी जिसमें चीन का हस्तक्षेप अस्वीकार्य है। दलाई लामा का यह बयान चीन के लिए सीधी चुनौती है, क्योंकि चीन ने कहा है कि वह दलाई लामा के उत्तराधिकारी को मंजूरी देगा। दलाई लामा 90 साल के हो चुके हैं। पूरी दुनिया की निगाह दलाई लामा पर है और अरुणाचल के मुख्यमंत्री का बयान इसी समय आया है, जब दुनिया तिब्बत मुद्दे और दलाई लामा पर ध्यान दे रही है। दलाई लामा के जन्मदिवस समारोह में प्रख्यात हॉलीवुड अभिनेता रिचर्ड गेरे, केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू और अन्य नेता मौजूद थे।
तिब्बत की कहानी भी साथ-साथ समझते चलें। तिब्बत लगभग 24 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला दुनिया का सबसे ऊंचा पठार है। इसकी औसत ऊंचाई 4900 मीटर है, जिससे जुड़ी माउंट एवरेस्ट जैसी दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी है। तिब्बत एशिया की कई नदियों का स्रोत है। 1950 से पहले तिब्बत एक स्वतंत्र क्षेत्र था। 1913 में 13वें दलाई लामा ने इसे स्वतंत्र घोषित किया था, लेकिन चीन दावा करता रहा कि तिब्बत उसका हिस्सा है। हकीकत यह है कि 1912 से 1949 तक चीन का तिब्बत पर कोई नियंत्रण नहीं था। वहां दलाई लामा की सरकार ही चलती थी।
साल 1949 में चीन में माओत्से तुंग की कम्युनिस्ट सरकार बनी। उसने तिब्बत को अपना हिस्सा मानकर आक्रमण की योजना बनाई। 7 अक्टूबर 1950 को पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने तिब्बत में घुसपैठ की। 19 अक्टूबर को चामडो शहर पर कब्जा कर लिया। उस समय तिब्बती सेना छोटी थी, विरोध नहीं कर पाई और भारत भी उसके बचाव में कारगर साबित नहीं हुआ। 1951 में चीन ने तिब्बती नेताओं पर दबाव डालकर 17 सूत्री समझौता कराया। इसमें कहा गया कि तिब्बत को स्वायत्तता मिलेगी, बौद्ध धर्म का सम्मान होगा, लेकिन चीन की सेना ल्हासा (तिब्बत की राजधानी) में रहेगी। तिब्बत के लोग इसे जबरदस्ती का समझौता कहते हैं। चीन का यह कब्जा क्रूर था। चीन ने तिब्बती संस्कृति को कुचलने की कोशिश की। मठ तोड़े। लोगों को मार डाला। 1959 में विद्रोह हुआ, दलाई लामा भारत भाग आए। आज भी तिब्बत की निर्वासित सरकार धर्मशाला से काम कर रही है। तिब्बत पर चीन के कब्जे को तिब्बतियों का सांस्कृतिक नरसंहार कहा जाता है।
दलाई लामा तिब्बत की आत्मा हैं। वे 1959 से भारत में निर्वासित हैं। हाल में उन्होंने चीन पर तीखा हमला बोला। 2025 में अपने जन्मदिन से पहले उन्होंने कहा कि चीन बौद्ध धर्म को जहर मानता है और इसे खत्म करने की साजिश रच रहा है, लेकिन सफल नहीं होगा। उन्होंने मंगोलिया से हिमालय तक बौद्ध अनुयायियों का जिक्र किया। शी जिनपिंग की अगुवाई वाली सीसीपी बौद्ध मठों को नष्ट कर रही है, लेकिन चीन में भी करोड़ों लोग बौद्ध हैं।
शी जिनपिंग के लिए यह मुश्किल है क्योंकि वे सिनाइजेशन नीति चला रहे हैं, जहां तिब्बत को पूरी तरह चीनी बनाना चाहते हैं। दलाई लामा का उत्तराधिकारी का मुद्दा बड़ा है। चीन कहता है कि वो मंजूरी देगा, लेकिन दलाई ने साफ कहा कि उत्तराधिकारी फ्री वर्ल्ड में जन्मेगा, चीन में नहीं। तिब्बत को अलग देश मान कर भारतवर्ष अपने पड़ोस का भूगोल बदल सकता है। अगर दुनिया तिब्बत को स्वतंत्र या अलग पहचान की मान्यता दे दे, तो चीन के लिए तिब्बत बफर स्टेट बन सकता है, जैसे नेपाल। चीन इसी तनाव में है। अगर भारत ने तिब्बत का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय जगत में दमदारी से उछाल दिया तो चीन की वन चाइना पॉलिसी भोथरी हो जाएगी और दुनिया में वह अलग-थलग पड़ जाएगा। ।
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