महज हिंदू नाम के कारण हुआ गोपालगंज नरसंहार

यूनुस की शक्ल में कट्टरपंथी उन्मादियों का बांग्लादेश पर कब्जा

 महज हिंदू नाम के कारण हुआ गोपालगंज नरसंहार

बांग्लादेश को हिंदू-मुक्त बनाने का तेजी से चल रहा अभियान

यूनुस के इशारे पर बांग्लादेशी सेना ने किया कत्लेआम

सूफी यायावर

16 जुलाई 2025 बांग्लादेश के इतिहास में हमेशा के लिए एक काले दिन के रूप में दर्ज हो गया है। उस दिन बांग्लादेश की सेना ने गोपालगंज जिले में मानवता के विरुद्ध घोर अपराध किया। बांग्लादेश की सेना एक ऐसी संस्था रही हैजिसे कभी संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में अपनी भूमिका के लिए वैश्विक सम्मान प्राप्त था। लेकिन वह सब पुरानी बातें रह गईं। कानून-व्यवस्था बनाए रखने के बहाने बांग्लादेशी सेना ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के गृहनगर में निहत्थे नागरिकों को गोलियों से भून डाला और अकल्पनीय क्रूरता का परिचय दिया।

अंतरराष्ट्रीय अपराध अनुसंधान प्रतिष्ठान (आईसीआरएफ) द्वारा संयुक्त राष्ट्र को किए गए चौंकाने वाले खुलासों और तमाम रिपोर्टों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि गोपालगंज में हुआ अत्याचार खूनी नरसंहार था। आईसीआरएफ ने संयुक्त राष्ट्र के आचार कार्यालय को लिखे एक औपचारिक पत्र में न केवल गोपालगंज नरसंहारबल्कि बांग्लादेश में व्याप्त राजनीतिक हिंसाविरासत के विनाश और घोर मानवाधिकार उल्लंघन के एक परेशान करने वाले सुनियोजित तौर-तरीकों को भी उजागर किया है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बांग्लादेश सरकार और वहां की सेना के चेहरे पर कालिख पुतने के बाद क्षति नियंत्रण के हताशाजनक प्रयास में बांग्लादेशी सेना ने एक बयान जारी कर कहा कि उसे आत्मरक्षा में घातक हथियारों का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर होना पड़ा। जबकि जो लोग मारे गए वे सब के सब निहत्थे थे। सरकार और सेना की मनगढ़ंत कहानी को राज्य-नियंत्रित मीडिया और यूनुस शासन के वफादार प्रचारकों द्वारा बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा हैजिनमें कई विदेशी मीडिया संस्थान भी शामिल हैं। जबकिजमीनी स्तर पर सच्चाई ठीक इसके विपरीत और कहीं ज्यादा गंभीर है। सोशल मीडिया पर ऐसे बयानों और वीडियो की बाढ़ आ गई है जिनमें नागरिकों की ओर से कोई प्रतिरोध नहीं दिख रहा है। इसके बजायजमीनी हकीकत यही है कि रात-रात भर छापेमारी जारी है और पुरुषोंमहिलाओं और यहां तक कि बच्चों को अगवा किया जा रहा है। परिवार के परिवार रातो रात गायब किए जा रहे हैं। यह बांग्लादेश की भयावह सच्ची तस्वीर है।

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विडंबना देखिए कि सेना की गोली से मारे गए लोगों के पोस्टमॉर्टम तक नहीं कराए गए और उनका राज्य प्रायोजित अंतिम संस्कार कर दिया गया। दर्जनों लोग मारे गए, लेकिन केवल चार लोगों के मरने की आधिकारिक तौर पर पुष्टि की गई और उनका जल्दबाजी में अंतिम संस्कार कर दिया गया। यह सिर्फ एक लीपापोती नहीं थी, बल्कि यह सबूत मिटाने के लिए किया गया राज्य प्रायोजित नरसंहार था। बांग्लादेश की यह कोई अकेली घटना नहीं थी। यह कट्टरपंथी इस्लामवादियों और जेहादियों द्वारा रची गई एक बड़ी सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। यह उन लोगों की करतूतें हैं, जिन्होंने साजिश करके 2024 में सत्ता हथियाई और कट्टर एवं घृणित इस्लामवादी शैतान में के रूप में सामने आए तथाकथित नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को सत्ता प्रमुख के आसन पर लाकर बैठा दिया।

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इस नए बदनुमा शासन के तहत बांग्लादेश के हिंदू समुदाय पर हमले तेजी से बढ़े हैं। मंदिरों को आग लगाई जा रही हैघरों को ढहाया जा रहा है और यहां तक कि हिंदू विरासत वाले जिलों के नाम भी मिटाने की कोशिश की जा रही है। गोपालगंज जिले में बड़ी संख्या में हिंदू रहते हैं। यह जिला लंबे समय से इस्लामवादियों के निशाने पर रहा है। 2014 में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की अध्यक्ष खालिदा जिया ने इस जिले का नाम बदलने की मांग की थी और इसके निवासियों के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए उन्हें गोपाली कहते हुए तिरष्कृत भाषा का इस्तेमाल किया था।

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आजवही नफरत हिंसा में बदल गई है। इस्लामी भीड़ अब दिन-दहाड़े अल-कायदाआईएसआईएसहमास और तालिबान के झंडे लहराते हुए उग्रवादी नारे लगा रही है। इस्लामी आंदोलन के एक चरमपंथी नेता मुफ्ती फैजुल करीम ने खुलेआम बांग्लादेश को अगला अफगानिस्तान बनाने की कसम खाई है। बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय जेहादियों के लिए एक नया पड़ाव बनता जा रहा है। गेटस्टोन इंस्टीट्यूट के अनुसारबांग्लादेश में तख्तापलट के बाद से हमासअल-कायदा और पाकिस्तान के कई वरिष्ठ नेता बांग्लादेश का दौरा कर चुके हैं। इनमें हमास के शेख खालिद कुद्दूमी और खालिद मिशालऔर मुफ्ती तकी उस्मानी और मौलाना फजलुर रहमान जैसे पाकिस्तानी इस्लामवादी शामिल हैं।

इन यात्राओं का उद्देश्य रोहिंग्या शरणार्थियों और फंसे हुए पाकिस्तानियों (बिहारियों) के साथ परिचालन संबंध स्थापित करना था। बिहारी मुसलमानों का समूह कट्टरपंथी आतंकी जमात के रूप में तब्दील हो रहा है और इजराइलभारत और अमेरिका को निशाना बनाने के लिए आतंकवादियों की भर्ती की जा रही है। यूनुस के संरक्षण में कट्टर इस्लामवाद बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्ष और बहुलतावादी पहचान मिटाने में लगे हैं। रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित बांग्लादेश के राष्ट्रगान को हिंदू गीत बताकर उसे हटाने की मांग तेज हो गई है। गोपालगंज का नाम बदलने का दबाव बढ़ ही रहा हैक्योंकि इस्लामवादियों का तर्क है कि इसका हिंदू-मूल नाम मुस्लिम भावनाओं को ठेस पहुंचाता है।

ऐसी ओछी मांगें आस्था पर आधारित नहीं हैं। ये फासीवादी विचारधारा से उपजी हैं। ऐतिहासिक सच्चाई यह है कि गोपालगंज का विकास हिंदू जमींदारों ने किया था और यह एक पूजनीय बंगाली आदर्श रानी रासमोनी की विरासत को संजोए हुए है। यह क्षेत्र लंबे समय से सांप्रदायिक सद्भाव और समावेशी पहचान का प्रतीक रहा है। लेकिन मौजूदा सरकार इसे नष्ट करना चाहती है। सांस्कृतिक सफाई की एक जबरदस्त कार्रवाई में बंगाली कला और सिनेमा के वैश्विक आदर्श सत्यजीत रे के पैतृक घर को मैमनसिंह जिले में ध्वस्त कर दिया गया। दशकों के इतिहास और जनभावना के बावजूद अधिकारियों ने सत्यजीत रे के परिवार से इस घर के संबंध को नकार दिया। यह कोई दुर्घटना नहीं थी बल्कि यह बंगाली और हिंदू विरासत का एक सुनियोजित विनाश था।

शेख मुजीबुर रहमान और रवींद्रनाथ टैगोर से जुड़े स्मारकों सहित अन्य प्रतिष्ठित स्थलों को भी निशाना बनाया गया है। भौतिक विनाश तो हो ही रहा है, मनोवैज्ञानिक युद्ध और भी अधिक घातक साबित हो रहा है। गोपालगंज नरसंहार केवल एक त्रासदी नहीं है, यह एक पूर्वसूचना है। ऐतिहासिक रूप से गोपालगंज सांप्रदायिक शांति का गढ़ रहा है। यहां जमात-ए-इस्लामी और बीएनपी ने भी कई शांतिपूर्ण रैलियां आयोजित की हैं। लेकिन नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) की रैली की आड़ में हिंसा भड़काई गई। सेना ने शांति स्थापित नहीं की बल्कि सेना ने रक्तपात भड़काया। इसके बाद लगा कर्फ्यू सुरक्षा के लिए नहीं था, बल्कि यह सच्चाई को छुपानेजिले को अलग-थलग करने और उसके लोगों को चुप कराने के लिए था। एक रैली को युद्धक्षेत्र में बदलकरयूनुस शासन ने स्पष्ट कर दिया है कि बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों के लिए कोई भी जगह सुरक्षित नहीं है। सिनेमाघरोंसूफी दरगाहोंहिंदू मंदिरों और सांस्कृतिक संस्थानों पर जारी हमले एक ऐसे शासन का संकेत देते हैं जो देश के मूल स्वरूप को ही बदलने पर आमादा है। यह केवल लापरवाही नहीं है, यह बांग्लादेश की आत्मा पर एक व्यवस्थित और सुनियोजित हमला है।

जहां कभी अपने संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान के सपनों से प्रेरित एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र थाअब एक खंडित राज्य खड़ा है जो कट्टरता की चपेट में हैचरमपंथियों द्वारा संचालित है और अपनी ही संस्थाओं द्वारा धोखा दिया गया है। गोपालगंज में 16 जुलाई का नरसंहार एक युद्ध अपराध है। यह बांग्लादेश में व्यवस्था बहाल करने की आड़ में चल रहे एक व्यापक नरसंहार अभियान का एक वीभत्स प्रतीक है। इस पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चुप नहीं रहना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र और पश्चिमी शक्तियां आंखें मूंद रही हैं, क्योंकि ये सब तख्तापलट में भागीदार रही हैं। इन्हीं शक्तियों ने जेहादी तत्वों को सशक्त बनाया। बांग्लादेश के लोग अपनी संस्कृतिविरासत और अस्तित्व के विनाश का सामना कर रहे हैं। अगर गोपालगंज को भुला दिया गयातो कल यह फरीदपुरनारायणगंजब्राह्मणबरिया और उससे भी आगे बढ़ेगा। दुनिया को आवाज उठानी होगी। बाद में नहीं तो कभी नहीं, क्योंकि हर मिनट की खामोशी एक और जान लेती हैएक और सच्चाई दफन होती है और बांग्लादेश के शरीर एक और हिस्सा भंग हो जाता है।

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