नेतृत्व संकट की सुगबुगाहट के बीच सिद्दारमैया का शक्ति प्रदर्शन, विधायकों को साधने की बड़ी तैयारी
बेंगलुरु, 09 अक्टूबर (एजेंसियां)। कर्नाटक की सियासत एक बार फिर उबाल पर है। मुख्यमंत्री सिद्दारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के बीच कथित सत्ता-साझाकरण समझौते की चर्चाओं के बीच अब कांग्रेस खेमे में हलचल तेज हो गई है। संभावित नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों के बीच मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने 13 अक्टूबर को बेंगलुरु में कांग्रेस विधायकों के लिए रात्रिभोज का आयोजन कर शक्ति प्रदर्शन का मन बना लिया है। इस राजनीतिक दावत को लेकर पूरे राज्य की नजरें अब मुख्यमंत्री निवास पर टिकी हैं।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, यह रात्रिभोज केवल एक औपचारिक मिलन समारोह नहीं, बल्कि रणनीतिक रूप से रचा गया एक बड़ा राजनीतिक संदेश है। विश्लेषकों का मानना है कि सिद्दारमैया यह दिखाना चाहते हैं कि उनकी सरकार स्थिर है, और नेतृत्व परिवर्तन को लेकर फैल रही अफवाहें निराधार हैं। मुख्यमंत्री खुद को एकजुटता और नियंत्रण की प्रतीक छवि में पेश करना चाहते हैं, जबकि शिवकुमार खेमे द्वारा सत्ता परिवर्तन की संभावना को हवा दी जा रही है।
सूत्रों के मुताबिक, मुख्यमंत्री ने इस आयोजन से पहले पार्टी महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल से लंबी चर्चा की है। वहीं वे कांग्रेस नेता राहुल गांधी से भी मुलाकात करने के इच्छुक हैं ताकि पार्टी हाईकमान को यह भरोसा दिला सकें कि राज्य सरकार में किसी प्रकार की अस्थिरता नहीं है। बताया जा रहा है कि सिद्दारमैया ने अपने विश्वस्त विधायकों से भी व्यक्तिगत रूप से संपर्क साधा है और उन्हें इस रात्रिभोज में अनिवार्य रूप से शामिल होने का निर्देश दिया गया है।
कांग्रेस के भीतर यह चर्चा जोरों पर है कि डी.के. शिवकुमार का खेमा नवंबर में नेतृत्व परिवर्तन की संभावना को लेकर सक्रिय है। उनका तर्क है कि जब 2023 विधानसभा चुनावों के समय सत्ता-साझाकरण समझौता हुआ था, तब यह तय किया गया था कि सिद्दारमैया आधा कार्यकाल पूरा करने के बाद पद छोड़ देंगे और सत्ता शिवकुमार को सौंपी जाएगी। हालांकि, मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने अब तक इस कथित समझौते की किसी भी पुष्टि से इंकार किया है और बार-बार यह दोहराया है कि अंतिम निर्णय पार्टी आलाकमान ही करेगा।
इस पृष्ठभूमि में 13 अक्टूबर का रात्रिभोज राजनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण हो गया है। इसे सिद्दारमैया की “पॉलिटिकल कनसॉलिडेशन” रणनीति कहा जा रहा है। इसका उद्देश्य यह दिखाना है कि पार्टी विधायक अब भी मुख्यमंत्री के साथ खड़े हैं और किसी भी संभावित बगावत या असंतोष की स्थिति नहीं है।
राज्य के गृह मंत्री डॉ. जी. परमेश्वर ने भी बुधवार को स्पष्ट किया कि मुख्यमंत्री के इस्तीफे या नेतृत्व परिवर्तन को लेकर कोई समयसीमा तय नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि इस तरह का कोई भी निर्णय केवल कांग्रेस आलाकमान ही करेगा। डॉ. परमेश्वर ने कहा, “वाल्मीकि समुदाय को प्रतिनिधित्व देने की मांग सही है, लेकिन यह तय करना कि कौन मुख्यमंत्री रहेगा या कब बदलाव होगा, यह पार्टी नेतृत्व का विशेषाधिकार है।”
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि सिद्दारमैया अपने विरोधी खेमे को यह दिखाना चाहते हैं कि वे अब भी बहुमत विधायकों का समर्थन रखते हैं। इस रात्रिभोज में बड़ी संख्या में विधायकों, मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति मुख्यमंत्री की स्थिति को मजबूत कर सकती है। इसके अलावा यह आयोजन आगामी लोकसभा चुनावों से पहले राज्य कांग्रेस की एकता को प्रदर्शित करने का मंच भी बनेगा।
कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि पार्टी आलाकमान ने सिद्दारमैया को फिलहाल अपने पद पर बने रहने का संकेत दिया है, लेकिन शिवकुमार गुट अब भी अपनी बारी का इंतजार कर रहा है। कहा जा रहा है कि उपमुख्यमंत्री के समर्थक चाहते हैं कि नवंबर या दिसंबर में सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया शुरू हो, ताकि शिवकुमार बतौर मुख्यमंत्री लोकसभा चुनावों से पहले अपनी पकड़ मजबूत कर सकें।
सियासी समीकरण यह भी बताते हैं कि कर्नाटक में जातीय प्रतिनिधित्व का मुद्दा भी धीरे-धीरे उभर रहा है। वाल्मीकि और लिंगायत समुदायों में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर अलग-अलग राय है। सिद्दारमैया का ओबीसी कार्ड और उनका पुराना संगठनात्मक अनुभव फिलहाल उन्हें बढ़त दिला रहा है, जबकि शिवकुमार का ब्राह्मण और लिंगायत मतदाताओं पर प्रभाव सीमित माना जाता है।
रात्रिभोज के दौरान मुख्यमंत्री के लिए यह अवसर भी होगा कि वे पार्टी विधायकों से सीधे संवाद कर सकें और उन्हें आश्वस्त करें कि उनकी सरकार पांच साल का कार्यकाल पूरा करेगी। सिद्दारमैया की टीम इस आयोजन को ‘एकजुटता भोज’ का नाम दे रही है, जबकि विरोधी गुट इसे ‘पावर शो’ बताने से नहीं चूक रहा।
सियासी गलियारों में यह भी चर्चा है कि राहुल गांधी और केसी वेणुगोपाल की भूमिका इस पूरे घटनाक्रम में निर्णायक होगी। दोनों नेताओं को यह तय करना होगा कि क्या कांग्रेस 2026 तक एक ही मुख्यमंत्री के साथ आगे बढ़ेगी या फिर नेतृत्व परिवर्तन का जोखिम उठाएगी।
वर्तमान परिदृश्य में सिद्दारमैया का यह कदम न केवल सत्ता संतुलन की कवायद है, बल्कि यह उनके राजनीतिक अस्तित्व की रक्षा की लड़ाई भी मानी जा रही है। उनके लिए यह आयोजन एक ‘टेस्ट ऑफ लॉयल्टी’ बन गया है जिसमें यह साबित होगा कि कितने विधायक उनके साथ हैं और कितने शिवकुमार खेमे की ओर झुकाव रखते हैं।
कुल मिलाकर, 13 अक्टूबर की यह रात्रिभोज बैठक कर्नाटक कांग्रेस की राजनीति में निर्णायक मोड़ साबित हो सकती है। यदि इस आयोजन में विधायकों की भारी उपस्थिति रहती है तो सिद्दारमैया का पलड़ा और भारी हो जाएगा। लेकिन अगर उपस्थिति कमजोर रही तो शिवकुमार गुट को यह कहने का मौका मिल जाएगा कि मुख्यमंत्री अब बहुमत समर्थन खो चुके हैं।
राज्य की जनता और राजनीतिक पर्यवेक्षक अब इस ‘डिनर डिप्लोमेसी’ पर निगाह लगाए हुए हैं कि क्या यह आयोजन वास्तव में कांग्रेस में स्थिरता का संदेश देगा या फिर यह कर्नाटक में एक नए सियासी अध्याय की शुरुआत का संकेत बनेगा।
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