कर्नाटक में नेतृत्व और संगठन को लेकर मंथन तेज
बीजेपी-कांग्रेस दोनों में अंदरूनी खींचतान
बेंगलुरु, 16 दिसम्बर (एजेंसियां)। कर्नाटक की राजनीति इन दिनों सिर्फ सत्ता पक्ष और विपक्ष की लड़ाई तक सीमित नहीं है, बल्कि दोनों प्रमुख दलों—कांग्रेस और बीजेपी—के भीतर भी गहन मंथन और खींचतान देखने को मिल रही है। राज्य में नेतृत्व, संगठनात्मक बदलाव और भविष्य की रणनीति को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है।
कांग्रेस खेमे में मंत्रिमंडल विस्तार और विभागों के बंटवारे को लेकर असंतोष की खबरें लगातार सामने आ रही हैं। कुछ विधायकों का मानना है कि क्षेत्रीय संतुलन और अनुभव को नजरअंदाज किया गया है। वहीं पार्टी नेतृत्व इसे सामान्य प्रक्रिया बताते हुए संगठन को मजबूत करने पर जोर दे रहा है। कांग्रेस का दावा है कि सरकार की योजनाओं और गारंटियों के जरिए वह जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत कर रही है।
दूसरी ओर बीजेपी भी अंदरूनी चुनौतियों से जूझती नजर आ रही है। नेतृत्व परिवर्तन और संगठनात्मक ढांचे को लेकर पार्टी में अलग-अलग राय सामने आ रही है। कुछ वरिष्ठ नेता आक्रामक विपक्ष की भूमिका की वकालत कर रहे हैं, जबकि युवा नेतृत्व नए मुद्दों और नई रणनीति पर जोर दे रहा है। बीजेपी का फोकस आगामी लोकसभा और निकाय चुनावों में वापसी की मजबूत जमीन तैयार करने पर है।
राज्य में किसानों की समस्याएं, बेंगलुरु की ट्रैफिक और इंफ्रास्ट्रक्चर, बिजली-पानी जैसे मुद्दे लगातार राजनीतिक बहस के केंद्र में हैं। विपक्ष सरकार को इन मुद्दों पर घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा, वहीं सरकार योजनाओं के क्रियान्वयन को अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश कर रही है।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कर्नाटक की राजनीति फिलहाल एक संक्रमण काल से गुजर रही है, जहां आने वाले फैसले राज्य की दिशा और दशा तय करेंगे। साफ है कि आने वाले महीनों में कर्नाटक में राजनीतिक बयानबाजी और रणनीतिक चालें और तेज होंगी।

