“अमीर प्रदूषण फैलाते हैं, गरीब उसकी मार झेलते हैं”

 — दिल्ली की जहरीली हवा पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

“अमीर प्रदूषण फैलाते हैं, गरीब उसकी मार झेलते हैं”

नई दिल्ली, 15 दिसम्बर,(एजेंसियां)।दिल्ली-एनसीआर में लगातार बिगड़ते वायु प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कड़ा रुख अपनाया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय पीठ—जिसमें जस्टिस जॉयमाल्य बागची और जस्टिस विपुल एम. पंचोली शामिल हैं—ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि प्रदूषण फैलाने वाली गतिविधियों में अक्सर संपन्न वर्ग की भूमिका होती है, जबकि इसकी सबसे बड़ी कीमत गरीब और मजदूर तबका चुकाता है। अदालत ने इस गंभीर मसले पर 17 दिसंबर को विस्तृत सुनवाई करने की घोषणा की है।

सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण अब केवल पर्यावरणीय समस्या नहीं रह गई है, बल्कि यह सामाजिक न्याय का भी प्रश्न बन चुका है। मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि “प्रदूषण की मार सबसे ज्यादा गरीबों पर पड़ती है। जो लोग प्रदूषण फैलाते हैं, वे अक्सर अपने संसाधनों के कारण उससे खुद को बचा लेते हैं, लेकिन गरीबों के पास न तो विकल्प होते हैं और न ही सुरक्षा।”

इस मामले में अदालत की सहायता कर रहीं वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने पीठ के सामने कहा कि निवारक उपाय और प्रोटोकॉल पहले से मौजूद हैं, लेकिन उनका सही ढंग से पालन नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जब तक सुप्रीम कोर्ट कोई सख्त निर्देश नहीं देता, तब तक संबंधित अधिकारी सक्रियता नहीं दिखाते। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने सहमति जताते हुए कहा कि अदालत ऐसे आदेश पारित करेगी जिनका वास्तविक और प्रभावी ढंग से पालन कराया जा सके।

पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि अब केवल कागजी निर्देशों से काम नहीं चलेगा। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कुछ ऐसे निर्देश हैं जिन्हें बलपूर्वक लागू किया जा सकता है और अदालत उसी दिशा में आगे बढ़ेगी। उन्होंने दोहराया कि समस्या सभी को पता है, लेकिन समाधान तभी संभव है जब आदेश जमीन पर उतरें।

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सुनवाई के दौरान एक अन्य वकील ने बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे को उठाया। उन्होंने अदालत को बताया कि पूर्व आदेशों के बावजूद स्कूलों में बाहरी खेल गतिविधियां आयोजित की जा रही हैं। जबकि पिछले महीने ही यह निर्देश दिया गया था कि दिसंबर-जनवरी के दौरान, जब प्रदूषण चरम पर होता है, तब ऐसे आयोजन नहीं होंगे। वकील ने आरोप लगाया कि आदेशों को दरकिनार करने के तरीके खोजे जा रहे हैं, जिससे बच्चों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है।

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इस पर मुख्य न्यायाधीश ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि अदालत इस स्थिति से पूरी तरह अवगत है और अब ऐसे निर्देश जारी किए जाएंगे जिनका पालन अनिवार्य होगा। उन्होंने कहा कि “महानगरों में लोगों की एक खास जीवनशैली बन चुकी है, जिसे वे बदलना नहीं चाहते। लेकिन जब यही जीवनशैली प्रदूषण को बढ़ाती है, तो उसका खामियाजा गरीबों और कमजोर वर्गों को भुगतना पड़ता है।”

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अपराजिता सिंह ने यह भी बताया कि जीआरएपी-IV (ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान) लागू होने के बाद निर्माण गतिविधियों पर रोक लगी है, जिससे हजारों निर्माण मजदूर बेरोजगार हो गए हैं। उन्होंने कहा कि एक तरफ प्रदूषण से बचाव जरूरी है, लेकिन दूसरी तरफ उन गरीब मजदूरों के जीवन और रोज़गार का सवाल भी उतना ही अहम है, जो पहले ही इस संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।

मुख्य न्यायाधीश ने इस बिंदु पर कहा कि लोगों को परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालना होगा और अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना होगा। उन्होंने दोहराया कि “समस्या अमीर वर्ग की गतिविधियों से पैदा होती है, लेकिन असर गरीब वर्ग पर पड़ता है।” अदालत ने संकेत दिए कि आने वाली सुनवाई में ऐसे संतुलित और सख्त आदेश दिए जा सकते हैं, जो एक ओर प्रदूषण पर लगाम लगाएं और दूसरी ओर सामाजिक असमानता को भी ध्यान में रखें।

अब 17 दिसंबर को होने वाली सुनवाई पर सभी की नजरें टिकी हैं, जहां सुप्रीम कोर्ट से दिल्ली-एनसीआर के वायु प्रदूषण संकट पर निर्णायक और प्रभावी दिशा-निर्देशों की उम्मीद की जा रही है।