श्रीलंका ने रद्द किया पाकिस्तान के साथ नौसैनिक अभ्यास

 हिंद महासागर क्षेत्र में स्थापित हो रहा भारत का वर्चस्व

 श्रीलंका ने रद्द किया पाकिस्तान के साथ नौसैनिक अभ्यास

श्रीलंका की तरह नेपाल को भी कर्ज-जाल में फंसा रहा चीन

नई दिल्ली, 19 अप्रैल (एजेंसियां)। हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का वर्चस्व स्थापित हो रहा है। भारत के कहने पर श्रीलंका ने पाकिस्तान के साथ हिंद महासागर क्षेत्र में होने वाला नौसैनिक अभ्यास रद्द कर दिया है। यह अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भारत के असरकारक प्रभाव की स्थापना है। इसे चीन को तगड़ा झटका देने वाला फैसला भी माना जा रहा है। श्रीलंका और पाकिस्तान के बीच नौसैनिक अभ्यास श्रीलंका के त्रिंकोमाली तट पर किया जाना था। भारत ने पाकिस्तानी नौसेना के चीन की पीएलए नौसेना के साथ घनिष्ठ सहयोग और त्रिंकोमाली में पाकिस्तानी युद्धपोतों की यात्रा को लेकर श्रीलंका के समक्ष चिंता साझा की थी। त्रिंकोमाली श्रीलंका के उत्तर पूर्वी तट पर स्थित है और इसे भारत के समुद्री सुरक्षा हितों के लिए हिंद महासागर क्षेत्र में महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चार अप्रैल को श्रीलंका की यात्रा के दौरान भारत की वित्तीय सहायता से तैयार हुई विकास परियोजनाओं का उद्घाटन किया था। पीएम मोदी की इस यात्रा से पहले श्रीलंका और पाकिस्तान की नौसेनाओं ने अपनी नियमित गतिविधियों के अनुरूप त्रिंकोमाली के तट पर अभ्यास करने की योजना बनाई थी। इसकी जानकारी मिलने पर भारत ने प्रस्तावित अभ्यास पर श्रीलंका के सामने अपनी आपत्ति रखी थी। भारत का कहना था कि पाकिस्तान और श्रीलंका की नौसेनाओं के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध हैं और दोनों देशों के युद्धपोत युद्धाभ्यास के अलावा नियमित रूप से एक-दूसरे के बंदरगाहों पर जाते हैं।

भारत ने इस बात पर भी चिंता जताई थी कि अगस्त 2022 में हंबनटोटा बंदरगाह पर चीनी मिसाइल और उपग्रह ट्रैकिंग जहाज युआन वांग की डॉकिंग ने श्रीलंका के साथ कूटनीतिक विवाद को जन्म दिया था। इसके बाद अगस्त 2023 में कोलंबो बंदरगाह पर डॉक किए गए एक अन्य चीनी युद्धपोत ने भी नई दिल्ली में कुछ चिंताएं पैदा की थीं। इसके बावजूद पिछले कुछ वर्षों में भारत त्रिंकोमाली के ऊर्जा क्षेत्र के बुनियादी ढांचे को विकसित करने में श्रीलंका को सहायता देने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।

श्रीलंका और पाकिस्तान के प्रस्तावित नौसैनिक अभ्यास के रद्द होने के बारे में श्रीलंका या पाकिस्तान ने कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है, लेकिन श्रीलंका के सामने भारत की ओर से चिंता जताए जाने के बाद यह नौसैनिक अभ्यास रद्द कर दिया गया है।

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सैन्य विशेषज्ञों ने भारत के लिए त्रिंकोमाली के रणनीतिक महत्व को समझाते हुए कहा कि इसमें बंगाल की खाड़ी और पूर्वोत्तर हिंद महासागर के अधिकांश हिस्से पर अपना दबदबा बनाने की क्षमता हैइसलिए भारत ने प्रस्तावित अभ्यास पर चिंता व्यक्त करके सही किया है। भारत विशेष रूप से त्रिंकोमाली में तेल टैंक फार्मों को पुनर्जीवित करने पर विचार कर रहा हैजो दुनिया के बेहतरीन प्राकृतिक बंदरगाहों में से एक है। इसी महीने मोदी की कोलंबो यात्रा के दौरान भारतश्रीलंका और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने त्रिंकोमाली को ऊर्जा केंद्रके रूप में विकसित करने के लिए एक महत्वाकांक्षी समझौते को अंतिम रूप दिया हैजिसका व्यापक उद्देश्य इसके आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में मदद करना है।

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चीन ने जिस तरह श्रीलंका को अपने कर्ज-जाल में फंसा कर उसे तबाह करने की कोशिश की, उसी तरह वह नेपाल को भी अपने आगे घुटने टेकने पर विवश कर रहा है। भारत के पड़ोसी हिमालयी देशों के कम्युनिस्ट नेताओं के कंधे पर सवार होकर चीन काठमांडू को अपने कर्ज के शिकंजे में जकड़ने और अनेक परियोजनाओं को अपनी कंपनियों से कराने का करार करके नेपाल के खजाने पर डाका डाल रहा है। पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का निर्माण चीन की सरकारी कंपनी सीएएमसी इंजीनियरिंग ने किया था। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआईके अंतर्गत यह एक प्रमुख परियोजना मानी जा रही थी। लेकिन अब इस परियोजना को लेकर अनेक विवादों के सामने आने और बीजिंग पर घोटाले के आरोप लगने से नेपाल सरकार सकते में है। एक तरफइन आरोपों के निशाने पर चीन की निर्माण प्रक्रिया है। तो दूसरी तरफचीन और नेपाल के बीच संबंधों को भी लेकर सवाल उठे हैं।

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नेपाल के दूसरे सबसे बड़े शहर में स्थित पोखरा हवाईअड्डे को पर्यटन को बढ़ावा देने और अंतरराष्ट्रीय यात्रियों को आकर्षित करने के उद्देश्य से बनाया गया था। नेपाल को उम्मीद थी कि यह एयरपोर्ट देश की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाई पर ले जाएगा। लेकिनइसके निर्माण और संचालन में कई समस्याएं सामने आ चुकी हैं। ऐसे में अब चीन की शह पर शुरू हुई यह परियोजना नेपाल के लिए सफेद हाथी पालने जैसी साबित हो रही है। नेपाल की संसदीय जांच समिति ने एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में चीन की उक्त कंपनी पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की सीएएमसी इंजीनियरिंग कंपनी ने हवाई अड्डे के निर्माण में घटिया गुणवत्ता वाले उपकरणों का इस्तेमाल किया है और तय मानकों का भी पालन नहीं किया गया है। इसके अलावाकंपनी ने परियोजना की मंजूरी के लिए नेपाल के अधिकारियों और सांसदों को रिश्वत दी थी। यह बात साबित करती है कि चीनी प्रभाव वाले नेताओं और अधिकारियों ने इस हवाई अड्डे के रास्ते अपने ही देश के खजाने से अपनी जेबें गर्म की हैं।

इस परियोजना की लागत शुरू में 12 अरब नेपाली रुपए आंकी गई थीलेकिन बाद में यह बढ़कर 24 अरब कर दी गई। चीन के निर्यात-आयात बैंक से 20 साल के कर्ज के साथ इस हवाई अड्डे का निर्माण किया गया था। लेकिन चालाक चीन ने बाद में ब्याज दर बढ़ा दीजिससे नेपाल पर कर्ज का बोझ और बढ़ गया। नेपाल की सरकार ने चीन से इस कर्ज को अनुदान में बदलने की मांग तो की है लेकिन वह मान ली जाएगीइसमें संशय है। आज हालत यह है कि पोखरा हवाईअड्डे से सप्ताह में केवल एक अंतरराष्ट्रीय उड़ान संचालित होती हैजो इसके निर्माण के उद्देश्य को कामयाबी से बहुत दूर दिखाती है। इसके अलावाहवाईअड्डे पर टेकऑफ और लैंडिंग के लिए दो अलग अलग रनवे बनाए जाने थेलेकिन सुरक्षा कारणों से अभी केवल एक रनवे का उपयोग हो रहा है।

इस परियोजना में नेपाल के कुछ राजनीतिक नेताओं और अधिकारियों के आर्थिक स्वार्थ भी जुड़े रहे हैं। समिति की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि चीन की कंपनी को सीमा शुल्क और वैट में छूट दी गई थीजबकि समझौते में ऐसा कुछ नहीं था। पोखरा हवाईअड्डे के निर्माण को नेपाल और चीन के बीच संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ की उपमा दी जा रही थी। लेकिन यह परियोजना न केवल नेपाल की आर्थिक स्थिति पर खराब असर डाल रही हैबल्कि चीन की कर्ज जाल की रणनीति को भी उजागर कर रही है। नेपाल को इस परियोजना से सबक लेते हुए भविष्य में चीन के साथ व्यवहार में अधिक सतर्कता और पारदर्शिता लानी होगीनहीं तो उस हिमालयी देश को अपने सामने घुटने टेकने को मजबूर करने के सपने नेपाल बैठा कम्युनिस्ट ड्रैगन पूरी निर्ममता के साथ कर्ज वसूलने के लिए कुख्यात है।

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