बड़ा मंगल केवल पर्व नहीं, लखनऊ की धड़कन है

बड़ा मंगल केवल पर्व नहीं, लखनऊ की धड़कन है

लखनऊ में बड़ा मंगल का बहुत ही खास और सांस्कृतिक महत्व है। यह त्योहार विशेष रूप से हनुमान जी को समर्पित होता है और ज्येष्ठ माह (मई-जून) के हर मंगलवार को मनाया जाता है। इसे केवल लखनऊ में इतने बड़े स्तर पर मनाया जाता है, जो इसे अनूठा बनाता है।

बड़ा मंगल का महत्व:

  1. हनुमान भक्ति की परंपरा:
    लखनऊ में हनुमान जी की पूजा का विशेष महत्व है। बड़े मंगल को श्रद्धालु मंदिरों में जाकर हनुमान जी की पूजा-अर्चना करते हैं और प्रसाद चढ़ाते हैं।

  2. मुफ़्त भंडारे (लंगर):
    इस दिन शहर के हर कोने में भंडारे लगाए जाते हैं — कोई भी भूखा नहीं रहता। स्थानीय लोग स्वयं भंडारे लगवाते हैं जिसमें पूड़ी-सब्ज़ी, हलवा, जलजीरा आदि परोसा जाता है।
  3. विशेष सजावट और मेलों का आयोजन:
    हनुमान मंदिरों को फूलों और लाइट्स से सजाया जाता है, और कई जगहों पर मेले और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।
  4. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
    कहा जाता है कि नवाबों के दौर में किसी महिला ने हनुमान जी की कृपा से मन्नत पूरी होने पर यह परंपरा शुरू की थी। इसके बाद से यह सिलसिला हर साल जारी है।

         

बड़ा मंगल की विशेषताएँ

  • भंडारे और सेवा भावना:
    हर कोना, हर चौराहा इस दिन "आओ, भोजन पाओ, प्रसाद लो" का आह्वान करता है। भंडारे केवल मंदिरों में नहीं, घरों के बाहर, दुकानों पर, स्कूलों में और गाड़ियों से चलते-फिरते भी लगाए जाते हैं।

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  • मंदिरों में विशेष आयोजन:
    प्रमुख मंदिर जैसे अलीगंज हनुमान मंदिर, हनुमान सेतु, लेसर हनुमान मंदिर, और मनकामेश्वर घाट पर स्थित मंदिरों में विशेष पूजा, आरती, अखंड पाठ, झांकी दर्शन और फूलों की सजावट होती है।

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  • सामूहिक भागीदारी:
    हर आयु-वर्ग, हर सामाजिक स्तर के लोग मिलकर आयोजन करते हैं — कोई खाना बना रहा होता है, कोई प्रसाद बाँटता है, तो कोई राहगीरों को जल पिलाता है।

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  • शांति और व्यवस्था का उदाहरण:
    लखनऊ पुलिस, नगर निगम और स्वयंसेवी संस्थाएँ मिलकर इसे एक सुरक्षित जनपर्व बनाने में सक्रिय रहते हैं। शायद ही कोई अन्य उत्सव बिना किसी विवाद या तनाव के इतनी विशालता में संपन्न होता हो।

लोकआस्था बनाम औपचारिकता

बड़ा मंगल कोई शासकीय छुट्टी वाला पर्व नहीं है, फिर भी इसके आयोजन में जितनी तैयारी और भागीदारी होती है, वह इसे "लोकआस्था का सबसे जीवंत उदाहरण" बना देती है। इसमें न कोई निमंत्रण होता है, न कोई बाध्यता — बस श्रद्धा ही सबको खींच लाती है।

        

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