डोकलाम घेरने की चीनी हरकतें दे रहीं युद्ध का संकेत

खुफिया एजेंसी रॉ ने प्रधानमंत्री कार्यालय को सतर्क किया

डोकलाम घेरने की चीनी हरकतें दे रहीं युद्ध का संकेत

भूटान के रास्ते भारत के चिकन-नेक पर पैर जमाने की कोशिश

 भूटान की अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सीमाओं बसा लिए हैं गांव

लद्दाख की ओर ध्यान भटका कर फिर से डोकलाम घेर रहा चीन

शुभ-लाभ चिंता

दीनबंधु कबीर

लद्दाख की तरफ ध्यान भटका कर चीन दूसरी तरफ अपनी शैतानियों में लगा है। भारत के पड़ोसी देश भूटान को उसका एक अन्य पड़ोसी चीन धीरे-धीरे खा रहा है। चीन भूटान को यह अहसास करा रहा है कि वह चीन के सामने अत्यंत कमजोर है और वह उसे तिब्बत की तरह पूरा भी निगल सकता है। भारतीय खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड अनालिसिस विंग (रॉ) ने प्रधानमंत्री कार्यालय को यह सूचित किया है कि चीन हिमालयी राज्य भूटान के डोकलाम को अपने कब्जे में लेने की पेशबंदियों में फिर से सक्रिय है। चीन की ऐसी ही कोशिश का भारतीय सेना ने वर्ष 2017 में तगड़ा विरोध किया था और 27 दिनों तक दोनों देश की सेनाएं आमने-सामने तन कर खड़ी रही थीं। हाथापाई की छिटपुट घटनाएं भी हुई थीं, उसके बाद चीन को अपने कदम वापस खींचने पड़े थे।

चीन के साथ भूमि-सीमा साझा करने वाले सभी 14 देशों में से भूटान एकमात्र ऐसा देश हैजहां आधिकारिक तौर पर कोई सीमा निर्धारित (सीमांकित) नहीं है। चीन भूटान के उन क्षेत्रों में भी नागरिक घुसपैठ, सैन्य गश्तक्षेत्रीय दावा, प्रत्यक्ष कब्जासेना की चौकियों और यहां तक कि पूरे-पूरे गांवों का निर्माण कर रहा हैजिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भूटान की भूमि के रूप में मान्यता प्राप्त है। चीन अपने मानचित्र में भूटान के अंदर के उन सभी क्षेत्रों को दर्शाता हैजिन पर चीन ने दावा कर रखा है या कब्जा कर रखा है। इसका कुल क्षेत्रफल सम्पूर्ण भूटान का लगभग 12 प्रतिशत है। चीन भूटान को हड़पने के लिए पीछे पड़ा है। जबकि संकटग्रस्त राजशाही के पीछे शक्तिशाली पड़ोसी भारत साथ देने के लिए खड़ा है। भूटान के रणनीतिक हिस्सों पर कब्जा करके चीन भारत के चिकन-नेक पर अपना पैर मजबूती से जमाना चाहता है। यह चिकन-नेक संकरा सिलीगुड़ी कॉरिडोर है जो भारत के मुख्य भाग को उसके पूर्वोत्तर के राज्यों से जोड़ता हैजिन्हें सेवन सिस्टर्स के नाम से जाना जाता है। पूर्वोत्तर के उन्हीं सात बहनों से जुड़ता है भूटान जिसे सूर्योदय की नारंगी चमक से जगमगाती पर्वत चोटियांबादलों से भरे आसमान के नीचे पहाड़ियों और देवदार के पेड़ों की गहरी छायाएं दुनिया की छत पर बसे इस देश को विस्मयकारी खूबसूरती प्रदान करती हैं। माउंट जोमोल्हारी पर्वत भूटान और चीन प्रशासित तिब्बत के बीच अनिर्धारित सीमा पर स्थित है। इसकी 7,350 मीटर ऊंची चोटी पर केवल छह बार ही विजय प्राप्त की जा सकी है। भूटानी लोग इस पर्वत को पवित्र मानते हैं और इस तक पहुंच को प्रतिबंधित रखते हैं।

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भूटान की परेशानी वर्ष 1951 में शुरू हुईजब चीन ने हिमालय के दूसरे बड़े राजतंत्र तिब्बत पर कब्जा कर लिया। इसके बाद से उसकी निगाह भूटान पर गड़ी हैजिसे वह आक्रामक तरीके से आगे बढ़ा रहा है। यहां तक कि शुरुआत में चीन ने भूटान की स्वतंत्रता के अधिकार को भी नकार दिया था। 1950 के दशक में चीन ने भूटान के तीन खास इलाकों बेयुल खेंपाजोंग (भूटान के लोगों के लिए खास महत्व वाले मंदिरों और मठों से समृद्ध क्षेत्र) के उत्तरी क्षेत्र स्थित पासमलुंग और जकारलुंग एवं पश्चिम में डोकलाम पर अपना दावा करना शुरू कर दिया।

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1980 के दशक से चीन ने अपने वहशी उत्तरी दावों में मेनचुमा घाटी को भी शामिल कर लिया। भले ही आधिकारिक चीनी मानचित्र 1990 के दशक की शुरुआत में इस क्षेत्र को भूटान का हिस्सा दिखाते हों। चीनी अतिक्रमण से चिंतित भूटान ने सीमा मुद्दे को स्थायी तौर पर सुलझाने के लिए 1984 में चीन के साथ बातचीत शुरू की। चार दशक से अधिक और दो दर्जन दौर की बातचीत के बाद भी कोई समझौता नहीं हुआ। यह चीन के दोहरे चरित्र का सबूत है। चीन की मक्कार रणनीति ही रही है धीरे-धीरे बोलना और बड़े जबड़े खोलना। जैसे-जैसे कूटनीतिक शिष्टाचार जारी रहता हैबीजिंग जमीन निगलने के कृत्य को आगे बढ़ाता रहता है।

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1988 मेंचीन ने डोकलाम के अधिकांश हिस्से पर कब्जा कर लिया। यह क्षेत्र 1913 में तिब्बत के 13वें दलाई लामा द्वारा भूटान को दे दिया गया था। इसीलिए अपेक्षाकृत छोटे आकार (34 वर्ग मील या 89 वर्ग किमीजो वाशिंगटन डी.सी. के क्षेत्रफल का लगभग आधा है) के बावजूद यह चीन की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं का मुख्य लक्ष्य बना हुआ है। डोकलाम पठारविशेष रूप से जोम्पेलरी नामक इसके दक्षिणी रिज पर कब्जा करने से चीन को चिकन-नेक के ऊपर ऊंची जमीन मिल जाएगीजहां भारत से सिर्फ 12 मील (20 किमी) की दूरी पर नेपाल और बांग्लादेश अलग-अलग होते हैं। भारत के साथ भविष्य के संघर्ष में यह स्थिति चीन को अपने क्षेत्रीय कट्टर प्रतिद्वंद्वी पर एक महत्वपूर्ण भूभाग पर काबिज होने का लाभ प्रदान करेगी।

1990 में और फिर 1996 में भारत ने भूटान पर चीनी पैकेज-डील को अस्वीकार करने का दबाव बनायाजिसके तहत बीजिंग भूटान के उत्तर-पूर्व में उसके कम रणनीतिक महत्व वाले 191 वर्ग मील (495 वर्ग किमी) क्षेत्र पर अपना दावा छोड़ दे और इसके बदले में भूटान अपने पश्चिम में डोकलाम से लेकर ड्रामानोंग और शाखातोए तक 114 वर्ग मील (269 वर्ग किमी) का इलाका चीन को सौंप दे। 14,824 वर्ग मील (38,394 वर्ग किमी) वाला भूटान उन 14 राज्यों में सबसे छोटा है जो चीन की सीमा पर हैं।

किसी समझौते पर पहुंचने में असमर्थ चीन और भूटान ने स्थिरता बनाए रखने और यथास्थिति का सम्मान करने के लिए 1998 में शांति और स्थिरता समझौते पर हस्ताक्षर किए। लेकिन इस पर चीन की हरकतें रुकी नहीं। 2000 के बाद से बीजिंग ने भूटान पर अपनी शैतानी दिखाने का सिलसिला फिर तेज कर दिया। उसका अंतिम लक्ष्य डोकलाम पर कब्जा करना है।

चीन की चाल रहती हैसबसे पहले स्थानीय तिब्बती चरवाहों को भूटान के अंदर अपने झुंड चराने के लिए घुसाओ और स्थानीय चरवाहों को विस्थापित करो। फिर विवादित क्षेत्रों में उन चरवाहों के लिए आश्रय स्थापित करो और उसके बाद चरवाहों की सुरक्षा के लिए सैन्य गश्ती दल और सैनिकों को रखने के लिए सैन्य चौकियां बनाओ। इसके बाद फिर इन चौकियों को तिब्बत से जोड़ने के लिए सड़कें बनाओ और अंत में विवादित क्षेत्रों में स्थायी बस्तियां और गांव बसा लो। इन्हीं युक्तियों का इस्तेमाल करके चीन ने भूटान के उत्तर में मेनचुमा घाटी पर कब्जा कर लिया। भूटान कोई प्रतिरोध नहीं कर सका और 2006 में कुला खारी पर अपना दावा छोड़कर चीन की इच्छा के आगे झुक गया।

2016 में चीन ने भूटान के अंदर जो बस्तियां बनानी शुरू कीं वे शुरू में छोटी थीं लेकिन कालांतर में संख्या और आकार दोनों में ही वे बढ़ती गईं। 2024 की एक रिपोर्ट में 19 गांवों और तीन बस्तियों की पुष्टि की गई हैजो कुल मिलाकर लगभग 750 आवासीय ब्लॉक हैंजिनमें लगभग 7,000 लोग रह सकते हैं। इनमें से आठ बस्तियां डोकलाम में और 14 बस्तियां उत्तर-पूर्व में हैं। कई बस्तियां ऊंचाई पर बनी हैं। सबसे ऊंची बस्ती मेन्चुमा में है जो 4,670 मीटर यानि लगभग 15,300 फीट की ऊंचाई पर है।

2020 में चीन ने पूर्वी भूटान में साकतेंग पर दावा ठोक कर फिर अपना दबाव बढ़ाया। इस दावे के पीछे वास्तविक घुसपैठ या कब्जा जमाने का इरादा नहीं थाबल्कि इससे भूटान सरकार को दबाव में लेना था। इसका असर यह हुआ कि वर्ष 2021 में चीन और भूटान सीमा वार्ता में तेजी लाने के लिए तीन-चरणीय रोडमैप पर सहमत हुए। लेकिन इसके बावजूद मक्कार चीन ने अपनी बस्तियों का निर्माण और विस्तार जारी रखा।

भूटान दोतरफा मुश्किलों से घिरा हुआ है। एक तरफ चीनी अतिक्रमण का विरोध करने में असमर्थ है तो दूसरी तरफ वह भारत के साथ अपने समझौतों से मुकरने में भी असमर्थ है। 2007 की भारत-भूटान संधि दोनों देशों को अपने क्षेत्र का उपयोग राष्ट्रीय सुरक्षा और दूसरे के हितों के लिए हानिकारक गतिविधियों के लिए नहीं करने देगी। साफ शब्दों में कहा जाए तो अगर भूटान चीन को डोकलाम दे देता है तो युद्ध होगा। इसमें कोई दो राय नहीं रहनी चाहिए। भारत स्पष्ट तौर पर अपना यह रुख जाहिर कर चुका है।

भारतीय प्रभाव के कारण भूटान चीन के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित नहीं कर रहा है। भूटान और चीन के बीच संबंधों में गर्मजोशी पर अपनी नाराजगी जताते हुए भारत ने वर्ष 2013 में भूटान के लिए रसोई गैस और केरोसिन पर अपनी सब्सिडी स्थगित कर दी थी। भारत सरकार की इस कार्रवाई से भूटान के होश फाख्ता हो गए थे। 2017 में जब चीन ने जोम्पेलरी की ओर दक्षिण की तरफ से सड़क विस्तार का प्रयास कियातो भारत ने सड़क निर्माण रोकने के लिए भूटान में सेना भेज दी। 72 दिनों के गतिरोध के बाद दोनों देशों ने अपनी सेना वापस बुला ली।

चीन का लक्ष्य भूटान को आधिकारिक तौर पर डोकलाम छोड़ने के लिए राजी करना हैक्योंकि स्थानीय पठार चीन को भारत पर रणनीतिक लाभ देगा। जबकि भारत के साथ भूटान की संधियां उसे भारत की सहमति के बिना डोकलाम छोड़ने से रोकती हैंलिहाजा ऐसा होने की कोई संभावना नहीं है।

 

भूटान की 8,000 सैनिकों वाली सेना चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सामने कहीं नहीं टिकतीलेकिन उसे भारत की विशाल सेना अपना सहारा देती है। समाधान की संभावना न होने के कारण चीन का दबाव जारी है और भूटान के पास विकल्प कम होते जा रहे हैं। अगर कभी कोई समझौता हो भी जाता है तो उसमें चीन भूटान के पूर्वोत्तर के उन क्षेत्रों को वापस नहीं करना चाहेगा जहां उसने स्थायी बस्तियां बसा दी हैं। खुफिया एजेंसी ने भारत सरकार को चीन की इन शैतानियों के प्रति सतर्क और तैयार रहने के लिए कहा है।

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