क्या मल्लिकार्जुन खड़गे राज्य की राजनीति में उतरेंगे?

-क्या यह ऑपरेशन चुपचाप चल रहा है?

क्या मल्लिकार्जुन खड़गे राज्य की राजनीति में उतरेंगे?

बेंगलूरु/शुभ लाभ ब्यूरो| सितंबर क्रांति की बहस में जिन लोगों ने हंगामा मचाया था, उनके शांत होने के बाद एक गुट चुपचाप एआईसीसी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को राज्य की राजनीति में लाकर मुख्यमंत्री सिद्धरामैया को झटका देने की कोशिश कर रहा है|

एआईसीसी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे राष्ट्रीय राजनीति में प्रभावशाली पद पर हैं और उन्हें लाकर कर्नाटक में सिद्धरामैया के अहिंदा मूल मंत्र को झटका देने की रणनीति बनाई जा रही है| विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद जब मुख्यमंत्री के चयन पर चर्चा हुई थी, तब डी.के. शिवकुमार ने खुले तौर पर कहा था कि अगर मल्लिकार्जुन खड़गे मुख्यमंत्री बनते हैं तो वे इस दौड़ से हट जाएंगे|

उस समय इस पद के प्रबल दावेदार सिद्धरामैया को करारा झटका लगा था| वे बिना कुछ कहे या महसूस किए चुप हो गए थे| डी.के. शिवकुमार ने खड़गे का पासा पलटकर अपने राजनीतिक विरोधियों को करारा जवाब दिया था| लेकिन रणनीति बनाने में किसी से कम नहीं सिद्धरामैया ने चुप रहकर अपना लक्ष्य हासिल कर लिया| अब जब सब कुछ ठीक चल रहा था, तब राजन्ना की सितंबर क्रांति ने बहुत हलचल मचा दी है| कुछ लोग डी.के. शिवकुमार के पक्ष में बोलने लगे|

अपनी बात खत्म करने के बाद राजन्ना ने उल्टा बोलने की कोशिश की, जैसे कुछ हुआ ही न हो और बात फैला दी| डी.के. शिवकुमार के गुट की ओर से इसका विरोध बहुत तीखा था| अनिवार्य रूप से, डी.के. शिवकुमार ने खुद हस्तक्षेप किया और बहस करके सभी को शांत किया| आरोप हैं कि मुख्यमंत्री सिद्धरामैया जब भी मौका पाते हैं, तब काम करने की कोशिश करते हैं| जब डी.के. शिवकुमार विदेश यात्रा पर थे, तब सिद्धरामैया ने बेंगलूरु में शहर का दौरा करके डी.के. शिवकुमार के काम में दखल दिया|

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हाल ही में नंदी हिल्स में आयोजित कैबिनेट मीटिंग में ली गई ग्रुप फोटो में डी.के. शिवकुमार को शामिल न किया जाना भी बड़ी बहस का विषय रहा| डी.के. शिवकुमार ऐसे धैर्यवान नजर आ रहे हैं, जैसे कुछ हुआ ही न हो, क्योंकि उन्होंने ऐसी कई कड़वी घटनाओं को झेला है| मल्लिकार्जुन खड़गे को दिसंबर के बाद के लिए मुख्यमंत्री बनाने के लिए अंदरूनी तौर पर प्रयास किए जा रहे हैं| पता चला है कि कुछ मंत्री और प्रभावशाली नेता खड़गे के करीबी लोगों को राज्य की राजनीति में आने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे हैं|

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२०१३ से राज्य की राजनीति में रुचि खो चुके खड़गे को अगर किसी तरह मना लिया जाता है, तो सिद्धरामैया गुट की आवाज खामोश हो जाएगी| एक गुट ने इस उम्मीद में अभियान शुरू किया है कि कोई भी बिना किसी शोर-शराबे के हाईकमान के फैसले को स्वीकार नहीं करेगा| कहा जा रहा है कि इसके समर्थन में विधायकों की रायशुमारी जैसे प्रहसन किए जा रहे हैं| यह अजीब बात है कि इस तरह का अभियान चुपचाप चलाया जा रहा है, जबकि लोगों की राय है कि डी.के. शिवकुमार मल्लिकार्जुन खड़गे से सहमत होने की संभावना नहीं रखते|

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