कश्मीर की वुलर झील में 30 साल बाद खिला कमल
जम्मू/श्रीनगर, 10 जुलाई (ब्यूरो)। बांदीपुरा में एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील वुलर है। विनाशकारी बाढ़ आ जाने के बाद यहां से कमल के फूल विलुप्त हो गए थे। करीब 30 साल बाद अब एक बार फिर वुलर झील कमल फूल का घर बन रही है। अब्दुल रशीद डार कश्मीर के बांदीपुरा में वुलर झील के किनारे बैठे हुए हैं और वह इसे हैरानी से देख रहे हैं। उनके सामने गुलाबी कमलों का एक पूरा समुद्र है और वह पूरी तरह से खिले हुए हैं। एक कमल को छूते हुए अब्दुल रशीद डार ने कहा, मुझे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा। बचपन में मैं अपने पिता के साथ कमल के डंठल तोड़ने जाता था, लेकिन वो बहुत समय पहले की बात है। मुझे लगता था कि हमने ईश्वर का यह तोहफा हमेशा के लिए खो दिया है। यह पूरा बदलाव अपने आप नहीं हुआ है बल्कि वुलर कंजर्वेशन एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी कें संरक्षण की बदौलत आया है। अथॉरिटी ने बाढ़ से इकट्ठा हुई गाद को साफ करने के लिए झील से गाद निकालने का काम शुरू कर दिया था।
वुलर कंजर्वेशन एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी के जोनल ऑफिसर मुदासिर अहमद ने कहा, पिछले कुछ सालों में जिन इलाकों से हमने गाद हटाई है, वहां कमल के फूल फिर से खिल रहे हैं। चूंकि, कमल के बीज गाद और मिट्टी में गहरे दबे हुए थे, इसलिए वे उग नहीं पाए। अब जब गाद हटा दी गई है, तो कमल फिर से उग आए हैं। डार के पिता कमल के स्टेम की खेती करते थे। उन्होंने कहा, यह एक चमत्कार है। बांदीपुरा और सोपोर कस्बों के बीच मौजूद और लगभग 200 वर्ग किलोमीटर में फैली यह झील कभी कमलों से भरी रहती थी। कमल के स्टेम को स्थानीय नदरू के नाम से जाना जाता है। यह कश्मीर में एक स्वादिष्ट व्यंजन है। स्थानीय बाजारों में नदरू 250 से 300 रुपए प्रति किलोग्राम बिकता है। इसका पुनरुत्थान वुलर झील के आसपास रहने वाले दर्जनों परिवारों के लिए नई उम्मीद लेकर आया है जो अपनी आजीविका के लिए मौसमी झील की उपज पर निर्भर हैं। घाटी की डल और मानसबल झील में भी कमल उगता है। इसके स्टेम की कटाई ही आजीविका का साधन है। इसकी कटाई का प्रोसेस काफी मुश्किल भरा है और किसान स्टेम को निकालने के लिए गर्दन तक पानी में उतरते हैं।
सितंबर 1992 में कश्मीर में विनाशकारी बाढ़ आई थी। इसकी वजह से वुलर झील के इकोसिस्टम को काफी नुकसान पहुंचा। यहां पर भारी मात्रा में गाद जमा हो गई। इसकी वजह से कमल के पौधे दब गए और झील के प्रवाह पर काफी असर हुआ। यहां के लोगों के लिए यह रोजी-रोटी का नुकसान था। झील के किनारे बसे लंकरेशिपोरा गांव के रहने वाले गुलाम हसन रेशी ने कहा, उस साल कमल पूरी तरह खिल चुका था। फिर हमने कमल को हमेशा के लिए खो दिया। कम से कम अब तक तो हम यही सोचते थे।
वुलर कंजर्वेशन एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी ने इकोसिस्टम को बनाए रखने के लिए एक प्रोजेक्ट शुरू किया। इसका एक बड़ा काम झील की गाद निकालना था। अथॉरिटी की मेहनत काफी रंग लाई। पिछले साल कमल के फूलों में फिर से जान आने के संकेत मिलने लगे। वुलर कंजर्वेशन एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी के जोनल ऑफिसर मुदासिर अहमद ने कहा कि इस साल अथॉरिटी ने झील में कमल के बीज बिखेरे। गुलाम हसन रेशी ने कहा, ड्रेजिंग ने सब कुछ बदल दिया कई सालों तक, गांव वाले कमल के बीज झील में डालते रहे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
झेलम नदी से प्राप्त मुख्य जलस्रोतों वाली वुलर झील, दक्षिण एशिया के सबसे बड़े मीठे पानी के निकायों में से एक है और रामसर कन्वेंशन के तहत इसे अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि भी घोषित किया गया है। यह कश्मीर में बाढ़ नियंत्रण, जल शोधन और जैव विविधता संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पिछले कुछ वर्षों में झील को गाद, अतिक्रमण और खराब प्रबंधन के बढ़ते खतरों का सामना करना पड़ा। कमल के फूलों की वापसी को अब एक आशाजनक संकेत के रूप में देखा जा रहा है, वुल्लर की लंबी और नाजुक पारिस्थितिक यात्रा में एक संभावित मोड़ के तौर पर भी देखा जा रहा है।
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