इंदिरा का पाप मोदी से धुलवाने के दांव में स्टालिन

कच्चातिवु विवाद हल करने के लिए पीएम मोदी से अनुरोध

 इंदिरा का पाप मोदी से धुलवाने के दांव में स्टालिन

इंदिरा गांधी ने श्रीलंका को दे दिया था कच्चातिवु द्वीप

नई दिल्ली, 17 जुलाई (एजेंसियां)। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कच्चातिवु द्वीप विवाद के समाधान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप का अनुरोध किया है। इंडी गठबंधन में शामिल स्टालिन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पाप को मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से धुलवाने की जुगाड़ में हैं। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को उपहार में दे दिया था। इंदिरा गांधी का यह पाप धीरे-धीरे देश के लिए अत्यंत चिंताजनक होता जा रहा है। कई बार श्रीलंका की नौसेना ने भारतीय मछुआरों पर पल्क जलडमरूमध्य में गोलीबारी की है और अवैध प्रवेश के आरोप में उनकी नौकाएं जब्त कर ली हैं। इस विवाद को लेकर दोनों देशों के बीच कूटनीतिक प्रयास जारी हैलेकिन मुद्दा अभी भी दोनों पक्षों के लिए चुनौती बना हुआ है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप का आग्रह करने के बाद कच्चातिवु द्वीप का मुद्दा खास चर्चा में आ गया है। समुद्र तटीय राज्य तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने प्रधानमंत्री मोदी से अपील की है कि वे लंबे समय से चले आ रहे कच्चातिवु द्वीप विवाद को हल करने के लिए सीधा हस्तक्षेप करें। उनके ऐसा करने से ही यह विवाद हल हो सकता है। इसके अलावा स्टालिन ने श्रीलंका की जेल में बंद भारतीय मछुआरों और जब्त नावों की रिहाई कराने के लिए भी पीएम मोदी से अपील की है।

अब तक तमिलनाडु के सीएम स्टालिन भारतीय जनता पार्टी पर इस मुद्दे को लेकर राजनीति करने का आरोप लगाते रहे हैं। उन्होंने कहा था कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पिछले 10 वर्षों में तमिलनाडु के मछुआरों की रक्षा करने में विफल रही है। इतना ही नहीं वह बिना कोई ठोस कार्रवाई किए कच्चातिवु मुद्दे का राजनीतिकरण कर रही है। अब स्टालिन ने अपना सुर मद्धम करते हुए कहा है कि इस दिशा में केंद्र को ठोस कार्रवाई करनी चाहिए। केवल प्रधानमंत्री का सीधा हस्तक्षेप ही तमिल मछुआरों के लिए एक स्थायी समाधान ला सकता है।

भाजपा प्रवक्ता नारायण तिरुपति ने स्टालिन को पुरानी बातें याद दिलाते हुए कहा, केंद्र में जब कांग्रेस और तमिलनाडु में डीएमके की सरकार थी तभी 1974 में कच्चातिवु श्रीलंका को सौंप दिया गया था। डीएमके ने 14 साल तक केंद्र में सत्ता साझा की, लेकिन तब इस मुद्दे पर कुछ नहीं किया। उल्टा हमने अपनी सरकार में यह सुनिश्चित किया है कि श्रीलंकाई नौसेना कोई गोलीबारी न करेजबकि कांग्रेस के शासन में लगभग 1,000 मछुआरे मारे गए थे। श्रीलंका द्वारा जब्त की गई भारतीय मछुआरों की नौकाओं की नीलामी और भारतीय मछुआरों की आजीविका को नुकसान पहुंचाने के सवाल पर नारायण तिरुपति ने कहा, वार्ता जारी है। हमने प्रभावित श्रीलंकाई तमिल मछुआरों और भारतीय तमिल मछुआरों के बीच कई दौर की बातचीत की है। लेकिन जब तक आप उनसे बात करके कोई समाधान नहीं निकालेंगेयह समस्या समाप्त नहीं होगी। 

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कच्चातिवु पाक जलडमरूमध्य में एक छोटा सा द्वीप हैजो बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है। 285 एकड़ हरित क्षेत्र 1976 तक भारत का था। साल 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने समकक्ष श्रीलंकाई राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के साथ 1974-76 के बीच चार समुद्री सीमा समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे। इन्हीं समझौते के तहत कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया गया। यह द्वीप सामरिक महत्व का था और इसका उपयोग मछुआरे करते थे। हालांकि इस द्वीप पर श्रीलंका लगातार दावा जताता रहा। यह मुद्दा तब उभरा जब भारत-श्रीलंका ने समुद्री सीमा समझौते पर हस्ताक्षर किए। साल 1974 में 26 जून को कोलंबो और 28 जून को दिल्ली में दोनों देशों के बीच इस द्वीप के बारे में बातचीत हुई। इन्हीं दो बैठकों में कुछ शर्तों के साथ इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया।

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तब शर्त यह रखी गई कि भारतीय मछुआरे अपना जाल सुखाने के लिए इस द्वीप का इस्तेमाल कर सकेंगे और द्वीप में बने चर्च में भारत के लोगों को बिना वीजा के जाने की अनुमति होगी। समझौतों ने भारत और श्रीलंका की अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा चिन्हित कर दी। हालांकिइस समझौते का तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने कड़ा विरोध किया था।

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श्रीलंका में अलगाववादी समूह लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) के सक्रिय वर्षों के दौरानश्रीलंकाई सरकार ने सैन्य अभियानों के मुद्दों को उठाते हुए पानी में श्रीलंकाई मछुआरों की आसान आवाजाही को प्रतिबंधित कर दिया था। 2009 में श्रीलंका ने पाक जलडमरूमध्य में अपनी समुद्री सीमा की कड़ी सुरक्षा शुरू कर दी। 2010 में एलटीटीई के साथ संघर्ष की समाप्ति के साथ श्रीलंकाई मछुआरों ने फिर से पाक खाड़ी में अपना आंदोलन शुरू कर दिया और अपने खोए हुए क्षेत्र को दोबारा हासिल कर लिया।

तमिलनाडु की तमाम सरकारें 1974 के समझौते को मानने से इन्कार करती रहीं और श्रीलंका से द्वीप को दोबारा प्राप्त करने की मांग उठाती रहीं। 1991 में तमिलनाडु विधानसभा द्वारा समझौते के खिलाफ एक प्रस्ताव लाया गया जिसके जरिए द्वीप को पुनः प्राप्त करने की मांग की गई थी। 2008 में तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता केंद्र के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं और कच्चातिवु समझौतों को रद्द करने की अपील की। उन्होंने कहा था कि श्रीलंका को कच्चातिवु उपहार में देने वाले देशों के बीच दो संधियां असंवैधानिक हैं। इसके अलावा साल 2011 में जयललिता ने एक बार फिर से विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराया। मई 2022 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने पीएम मोदी की मौजूदगी में एक समारोह में मांग की थी कि कच्चातिवु द्वीप को भारत में पुनः प्राप्त किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि पारंपरिक तमिल मछुआरों के मछली पकड़ने के अधिकार अप्रभावित रहेंइसलिए इस संबंध में कार्रवाई करने का यह सही समय है।

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