सीमा क्षेत्र में जाली परमिट वाली बसें जब्त होंगी
भारत- नेपाल सीमा क्षेत्र में अवैध गतिविधियां रोकने की कवायद
लखनऊ, 17 जुलाई (एजेंसियां)। भारत–नेपाल सीमा पर कुछ निजी बसों द्वारा कूटरचित (जाली) परमिट के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय मार्ग पर अवैध रूप से संचालन पर योगी सरकार ने सख्ती दिखाई है। इन गंभीर मामलों को संज्ञान में लेते हुए परिवहन आयुक्त ने त्वरित कड़े कदम उठाए हैं। भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र में जाली परमिट वाली बसें अब जब्त कर ली जाएंगी। एफआरआरओ लखनऊ तथा एसएसबी ने सूचित किया कि कई बसों द्वारा नेपाल सीमा पर ऐसे परमिट प्रस्तुत किए गए हैं, जो सतही रूप से संभागीय परिवहन प्राधिकरण द्वारा जारी प्रतीत हो रहे थे, किंतु जांच में यह पूर्णतः जाली या वैधानिक अधिकार क्षेत्र से परे पाए गए। इस पर सख्त योगी सरकार ने कड़ा रुख अख्तियार किया।
परिवहन आयुक्त ब्रजेश नारायण सिंह ने बताया कि अब तक तीन जनपदों (अलीगढ़, बागपत व महराजगंज) में स्पष्ट रूप से जाली परमिट की पुष्टि हो चुकी है। यहां संबंधित एआरटीओ ने प्रमाणित किया कि ऐसा कोई परमिट कार्यालय से निर्गत नहीं किया गया। इस संबंध में एफआईआर दर्ज कराने के साथ दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई को कहा गया। इसके अतिरिक्त गोरखपुर, इटावा एवं औरैया जैसे जनपदों में भी ऐसे परमिट प्रस्तुत किए गए हैं, जो प्रथम दृष्टया भारत–नेपाल यात्री परिवहन समझौता-2014 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं। गोरखपुर प्रकरण में विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू कर दी गई है। मामले की गंभीरता को देखते हुए परिवहन आयुक्त ने पुलिस महानिदेशक उत्तर प्रदेश को पत्र भेजा है, जिसमें तीन जिलों में दर्ज प्रकरणों की एसटीएफ से जांच कराए जाने का अनुरोध किया गया है।
परिवहन आयुक्त ने बताया कि मोटरयान अधिनियम 1988 की धारा 88(8) एवं भारत–नेपाल समझौते के अनुच्छेद 3 (5) एवं 3 (11) के अनुसार अंतरराष्ट्रीय मार्ग पर संचालन के लिए सिर्फ गंतव्य देश की दूतावास/कांसुलेट द्वारा फॉर्म-सी में निर्गत परमिट ही वैध होता है। राज्य स्तर पर एसआर-30 अथवा एसआर-31 फॉर्म में जारी परमिट भारत–नेपाल मार्ग हेतु वैधानिक नहीं हैं। भारत–नेपाल यात्री यातायात समझौता-2014 के अनुच्छेद 3 (5) एवं फॉर्म-सी के नोट-4 के अनुसार नेपाल के लिए यात्रियों के साथ निजी बस संचालन हेतु परमिट केवल गंतव्य देश की दूतावास/कांसुलेट द्वारा ही फॉर्म-सी में जारी किया जाना वैध है। इस परिप्रेक्ष्य में आरटीओ द्वारा एसआर-30 अथवा एसआर-31 फॉर्म में जारी कोई भी परमिट अंतरराष्ट्रीय सीमा पार करने हेतु वैधानिक रूप से अमान्य है। यह स्पष्टता इसलिए आवश्यक है ताकि कोई भ्रम की स्थिति न रहे और सभी संबंधित एजेंसियां नियमों की सही व्याख्या करें।
गौरतलब है कि इन मामलों में कुछ परमिट ऐसे भी हैं जो वाहन 4.0 पोर्टल की ऑटो अप्रूवल प्रणाली के माध्यम से जारी हुए प्रतीत होते हैं, जिसमें वाया कॉलम को मैनुअली भरने की छूट होने से नेपाल जैसे स्थान दर्ज किए गए हैं। परिवहन विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा पूर्व में एनआईसी को स्पष्ट दस्तावेज भेजे गए थे, जिसमें निर्देश दिया गया था कि ऐसे कॉलम में केवल पूर्व-निर्धारित ड्रॉपडाउन सूची के विकल्प ही चयनित हो सकें, किन्तु यह व्यवस्था आंशिक रूप से ही लागू की गई। इससे ऐसे परमिट पोर्टल से स्वतः जनरेट हो सके, जो अब गंभीर दुरुपयोग की श्रेणी में आ गए हैं। विभाग इस खामी को दूर करने हेतु एनआईसी से पुनः अनुरोध कर रहा है। साथ ही फेसलेस प्रणाली की वैधानिक पुनरसंरचना की प्रक्रिया भी प्रारंभ की गई है। परिवहन आयुक्त ने भारत सरकार को पत्र भेजते हुए अनुरोध किया है कि भारतीय एवं नेपाली दूतावासों द्वारा निर्गत सभी फॉर्म-सी परमिटों की सूची सभी प्रवर्तन एजेंसियों को समय पर साझा किया जाए। साथ ही एनआईसी के माध्यम से ऐसा पोर्टल विकसित किया जाए, जिसमें भारत–नेपाल सीमा पर प्रस्तुत परमिटों की रीयल-टाइम जांच की जा सके। मोर्थ द्वारा यह स्पष्ट किया जाए कि केवल फॉर्म-सी ही वैध अंतरराष्ट्रीय परमिट है। परिवहन आयुक्त ने कहा, जाली दस्तावेजों के माध्यम से राष्ट्रीय सुरक्षा और सीमा नियंत्रण के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। दोषियों के विरुद्ध सख्त कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी। साथ ही फेसलेस परमिट प्रणाली की कार्यप्रणाली में भी आवश्यक तकनीकी सुधार की प्रक्रिया शुरू करने के लिए भारत सरकार को लिखा गया है।