भारत बड़ा बाजार... इसलिए बन रहा बड़ा शिकार

साइबर अपराधों का वैश्विक केंद्र बनते जा रहे दक्षिण पूर्व एशिया के देश

भारत बड़ा बाजार... इसलिए बन रहा बड़ा शिकार

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से और बदतर हो रही हालत

 

वैष्णवी वंदना

मुंबई, 17 जुलाई। दक्षिण-पूर्व एशिया साइबर अपराधों का वैश्विक केंद्र बन गया हैजहां मानव तस्करी के जरिए लाए जाने वाले इंजीनियरों और तकनीकी जानकारों से उच्च तकनीक वाली धोखाधड़ी का धंधा चलाया जाता है। कंबोडिया, थाईलैंड, म्यांमार जैसे दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में अड्डा बना कर साइबर अपराधी वैश्विक पैमाने पर साइबर धोखाधड़ी का धंधा चला रहे हैं। इन अड्डों पर बाहरी तौर पर व्यापक रूप से सुअर काटने का कारोबार होता है, लेकिन उसकी आड़ में साइबर घोटालेबाजी का केंद्र चलता है, जहां से भारत के साथ-साथ विश्व के अन्य देशों के लोगों को साइबर धोखाधड़ी के जरिए ठगा जाता है। साइबर अपराधियों के सरगना चीन और हांगकांग में बैठ कर गिरोह का संचालन करते हैं और विभिन्न देशों से लूटा गया धन वहां मंगा कर उसका वारा न्यारा करते हैं। भारत बड़ा बाजार है, इसलिए भारत इन साइबर अपराधियों का बड़ा शिकार बन रहा है।

साइबर धोखाधड़ी का पैमाना चौंकाने वाला है। संयुक्त राष्ट्र की साइबर शाखा का अनुमान है कि इन धंधों से वैश्विक नुकसान 37 अरब डॉलर से अधिक का है। यह नुकसान जल्द ही और भी बदतर हो सकता है। इस क्षेत्र में साइबर अपराध के बढ़ने का असर राजनीति और सरकारी नीतियों पर पड़ रहा है। थाईलैंड में इस साल विदेशी पर्यटकों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई हैक्योंकि कई देशों के तकनीकी विशेषज्ञों का अपहरण कर उन्हें म्यांमार स्थित एक साइबर अपराध के अड्डे पर जबरन काम करने के लिए मजबूर किया गया। बैंकॉक अब पर्यटकों को यह समझाने के लिए तमाम जद्दोजहद कर रहा है कि वहां आना सुरक्षित है। सिंगापुर ने तो हाल ही में साइबर घोटाला विरोधी कानून पारित किया है जो कानून प्रवर्तन एजेंसियों को घोटाले के शिकार लोगों के बैंक खाते फ्रीज करने की अनुमति देता है। भारत से भी इंजीनियरों और तकनीकी विशेषज्ञों को नौकरी देने के नाम पर कंबोडिया, लाओस, म्यांमार ले जाया गया और उन्हें बंधक बना कर उनसे साइबर अपराध कराया जा रहा है। कई इंजीनियरों को छुड़ाने में कामयाबी मिली, लेकिन अब भी बड़ी तादाद में भारतीय साइबर अपराधियों के चंगुल में फंसे हैं।

धीरे-धीरे पूरा एशिया और खास कर दक्षिण पूर्व एशिया साइबर अपराध के लिए पूरी दुनिया में बदनाम और कुख्यात होता जा रहा है। सॉफ्टवेयर प्रबंधन की अंतरराष्ट्रीय कंपनी ओक्टा के एशिया-प्रशांत महाप्रबंधक बेन गुडमैन बताते हैं कि दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में साइबर क्राइम की अनोखी सुविधाएं हैं जो साइबर अपराध को अंजाम देने को आसान बनाती हैं। यह क्षेत्र मोबाइल उत्पाद का प्रथम बाजार है। जापान, चीन, हांगकांग, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और ताइवान में बड़ी पैमाने पर बनने वाले मोबाइल फोन सबसे पहले इन्हीं देशों के स्थानीय बाजारों और कंबोडिया, मलेशिया, थाईलैंड, म्यांमार के बाजारों में उतरते हैं। यहां व्हाट्सएपलाइन और वीचैट जैसे मोबाइल मैसेजिंग प्लेटफॉर्म घोटालेबाज गिरोहों को खुली और बेधड़क सुविधाएं प्रदान करते हैं और उसके जरिए गिरोह के लोग अपना शिकार तलाशते हैं और उन्हें लूट लेते हैं।

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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) एशिया की भाषाई विविधता का फायदा उठाने में साइबर अपराधियों की काफी मदद कर रहा है। गुडमैन बताते हैं कि एआई का अभूतपूर्व उपयोग होने के बावजूद यह लोगों को गलत लिंक पर क्लिक करने या किसी चीज को मंजूरी देने के लिए बड़ी आसानी से भ्रमित कर उकसा देता है। इस क्राइम में कई देश भी शामिल हो रहे हैं। मसलन, उत्तर कोरिया प्रमुख तकनीकी कंपनियों के भेदिया कर्मचारियों का इस्तेमाल खुफिया जानकारी इकट्ठा करने और अपने देश में जरूरी नकदी लाने के लिए कर रहा है। यही काम कंबोडिया, वियतनाम, म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया जैसे अन्य छोटे दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में हो रहा है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) साइबर क्राइम के धंधेबाजों को आम लोगों के अकाउंट में घुसने की सुविधाएं दे देता है। यह एआई के इस्तेमाल का बड़ा जोखिम है। निगरानी के बिना एआई मॉडल तक पहुंचने के लिए निजी खातों का उपयोग करना खतरनाक है। गुडमैन बताते हैं कि कोई व्यक्ति किसी व्यावसायिक समीक्षा के लिए अपना प्रेजेंटेशन तैयार करने की प्रक्रिया में अपने निजी अकाउंट से चैटजीपीटी की मदद ले रहा हो तो वह अनजाने में अपनी गोपनीय जानकारी सार्वजनिक एआई प्लेटफॉर्म पर अपलोड कर सकता है। इससे सूचना लीक होने की पूरी संभावना रहती है।

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इस तरह एआई व्यक्तिगत और व्यावसायिक पहचान के बीच की सीमाओं को धुंधला और भ्रमित कर सकता है। उदाहरण के लिएआपने कारपोरेट ईमेल के बजाय व्यक्तिगत ईमेल का इस्तेमाल किया तो उससे जुड़ी सूचनाएं बाहर लीक हो सकती हैं, या बाहर से कोई उसमें सेंधमारी कर सकता है। गुडमैन कहते हैं, एक कारपोरेट उपयोगकर्ता के रूप में मेरी कंपनी मुझे उपयोग करने के लिए एक एप्लिकेशन देती है और वह यह नियंत्रित करना चाहती है कि मैं इसका उपयोग कैसे करूं तो कंपनी मुझे बताती है और गाइड करती है। मैं कभी भी अपनी व्यक्तिगत प्रोफाइल का उपयोग किसी कारपोरेट सेवा के लिए नहीं करता और मैं कभी भी अपनी कारपोरेट प्रोफाइल का उपयोग व्यक्तिगत सेवा के लिए नहीं करता। गुडमैन चेतावनी देते हैं कि अगर कभी आपकी मानवीय पहचान चुरा ली जाती हैतो आपसे पैसे चुराने या आपकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए जो कुछ भी किया जा सकता हैउसका दायरा बहुत बड़ा भी हो सकता है।

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भारत में साइबर क्राइम के भुक्तभोगियों की तादाद लगातार बढ़ती ही जा रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की साइबर शाखा आई4सी ने रिपोर्ट है कि मात्र 10 महीने में साइबर अपराधियों ने करीब 2,140 करोड़ रुपए हड़प लिए। इस दरम्यान 92334 डिजिटल अरेस्ट की वारदातें हुईं। साइबर अपराधियों के कारण प्रतिदिन करीब 214 करोड़ रुपए का नुकसान देश को हो रहा है। केंद्र सरकार की आई4सी की रिपोर्ट के अनुसार ठग लोगों को फोन करके उन्हें प्रवर्तन निदेशालयसीबीआईपुलिस और आरबीआई जैसी भारतीय एजेंसियों के नाम से पहले तो डराते हैं। इसके बाद मामले के सेटलमेंट के नाम पर लोगों से मोटी रकम हड़प लेते हैं। सच्चाई से अनजान लोग इन अपराधियों के बिछाए जाल में आसानी से फंस भी जाते हैं। बताया गया है कि अपराधियों ने इसी तरह से लोगों से विदेशी खातों में पैसे ट्रांसफर करवाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी साइबर ठगी पर चिंता जाहिर कर चुके हैं। डिजिटल ठगी का रैकेट दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों से अधिक ऑपरेट हो रहा है। लेकिन खास बात ये है कि इनमें 30-40 फीसदी लोग भारतीय ही होते हैं। थाइलैंडकंबोडियालाओसवियतनाम जैसे कई देशों से इस तरह के रैकेट्स संचालित हो रहे हैं। ये स्कैमर्स अक्सर कंबोडिया स्थित चीनी स्वामित्व वाले कैसीनो होते हैंजहां से इस तरह के गोरखधंधों को संचालित किया जा रहा है।

1000 से ज्यादा लोगों को डिजिटल अरेस्ट करके पैसे एंठने वाला गिरोह पिछले दिनों अहमदाबाद में पकड़ा गया। गिरोह के 18 सदस्य गिरफ्तार किए गए, जिसमें ताइवान के चार नागरिक शामिल थे। इस गैंग ने 5000 करोड़ से ज्यादा पैसे चीन और ताइवान ट्रांसफर किए थे। गिरोह के चार ताइवानी सदस्य टूरिस्ट वीजा पर भारत आए थेलेकिन वे एक भी टूरिस्ट स्पॉट पर नहीं गए थे। ताइवानी नागरिक और गिरोह का मुख्य सूत्रधार मार्क इससे पहले दो बार भारत आ चुका था। वांग चुन वेइ और शेन वेइ तीन से चार बार भारत आया था। जबकि चांग हाव यून पहली बार भारत आया था। वांग चुन और शेन वेइ बेंगलुरु के डार्क रूम चलाते थे।

पूछताछ में पता चला कि गिरोह एक एप्लिकेशन तैयार करता थाजिसे लैपटॉप में ओपन किया जाता। इसके साथ दो सिमकार्ड वाले कम से कम 20 रूटेड मोबाइल फोन कनेक्ट किया जाता था। हर एक मोबाइल का एक सिमकार्ड अकाउंट धारक के अकाउंट के साथ लिंक्ड नम्बर वाला होता था। जिसकी वजह से पैसे का ट्रांजैक्शन करने के लिए उसी नंबर पर ओटीपी आता था। लैपटॉप में एप्लीकेशन के साथ स्क्रीन के ऊपर बैंक अकाउंट नंबर और ओटीपी दिखने पर उसमें जमा होने वाले पैसे तुरंत ही आगे के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर कर दिए जाते थे। जहां से वह पैसा अलग-अलग बैंक अकाउंट में और वहां से क्रिप्टो करेंसी में ट्रांसफर करके चीन और ताइवान भेज दिए जाते थे। बाद में चीन और ताइवान में वॉलेट में से वह पैसा उठा लिया जाता था।

पूरे रैकेट को अंजाम देने के लिए गिरोह ने अलग-अलग ग्रुप बना रखा था। एक ग्रुप प्री एक्टिव सिम कार्ड खरीदने का काम करता था। दूसरा ग्रुप बैंक अकाउंट खोलने का काम करता था। तीसरा ग्रुप डार्क वेब और पब्लिक डोमेन से लोगों की जानकारी एकत्रित करता था। चौथा ग्रुप एक्सपर्ट की टीम का हिस्सा था। पांचवा ग्रुप टेक्निकल टीम का हिस्सा था और छठा ग्रुप कॉल सेंटर में नौकरी करने के लिए लोगों को भर्ती करता था। इस तरह अलग-अलग ग्रुप बनाकर काम किया जाता था। ताइवान और चीन में बैठे हुए माफिया डार्क रूम पर लगातार नजर बनाए रखते थे। अगर कोई डार्क रूम में लगाए हुए सिस्टम का एक भी मोबाइल 4 घंटे से ज्यादा समय तक बंद दिखे तो वह समझ जाते थे कि पुलिस ने छापा मारा है। फिर वे अन्य शहरों में चल रहे डार्क रूम तत्काल बंद करा देते थे, ताकि पुलिस वहां नहीं पहुंच पाए।

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