उपराष्ट्रपति धनखड़ ने दे दिया इस्तीफ़ा
मानसून सत्र के पहले ही दिन पड़ा ‘ओला’
नई दिल्ली, 21 जुलाई (एजेंसी)। संसद का मानसून सत्र शुरू होते ही सहमंडल में एक राजनीतिक तूफ़ान खड़ा हो गया, जब भारत के उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति डॉ. जगदीप धनखड़ ने अचानक अपना पद छोड़ने का ऐलान कर दिया। इस फैसले ने संसद में उपस्थित सांसदों, मंत्रियों एवं विपक्ष को चौंका दिया। प्रारंभिक तौर पर उन्होंने अपने इस्तीफे की वजह स्वास्थ्य को बताया, लेकिन इसकी समय‑सीमा और सत्र की पहली ही तारीख पर इस्तीफा देने से विभिन्न राजनीतिक विश्लेषणों को जन्म मिला है।
डॉ. धनखड़ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू宛 अपने त्यागपत्र में लिखा, “मैं अपनी स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने और चिकित्सकीय सलाह का पालन करने हेतु तत्काल प्रभाव से उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देता हूँ, संविधान के अनुच्छेद 67 (ए) के अनुसार।” उन्होंने इस पत्र में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मंत्रिपरिषद तथा संसद सदस्यों के प्रति आभार व्यक्त किया और कहा कि उन्होंने अपने कार्यकाल में लोकतंत्र, आर्थिक प्रगति और देश की उन्नति के दौर का प्रत्यक्ष साक्षी बनकर जो अमूल्य अनुभव प्राप्त किया, वे उन्हें जीवन भर स्मरण रहेंगे।
डॉ. धनखड़ का यह इस्तीफा संसद के मानसून सत्र की शुरुआत में, इसी दिन के शुरुआती घंटों में दायर किया गया। यह सत्र पहले दिन से ही गरम था, क्योंकि राज्यसभा में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की पत्नी के भ्रष्टाचार से संबंधित संसदीय जांच समितियां बनाने की याचिका पर गंभीर बहस की तैयारी थी। वास्तव में, धनखड़ ने दिनभर सभापति के रूप में 62 मिनट तक सदन चलाया, नए सांसदों को शपथ दिलाई, व्यापार सलाहकार समिति की बैठक की अध्यक्षता की और संसद में विपक्ष की याचिका का हवाला दिया। लेकिन शाम तक वे अचानक त्याग‑पत्र देने लगे।
इस अचानक फैसले पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा, “यह अचानक इस्तीफा स्वास्थ्य कारणों से हो सकता है, लेकिन इसमें ‘और भी बहुत कुछ’ है, जो अभी स्पष्ट नहीं।” उन्होंने कहा कि उन्होंने शाम 5 बजे धनखड़ से बातचीत की थी और सात बजे रात में इस्तीफे की ख़बर आई — इसलिए लगता नहीं कि यह केवल स्वास्थ्य सम्बंधी निर्णय था। कांग्रेस ने प्रधानमंत्री मोदी से राशि को मनाने एवं इस इस्तीफे पर पुनर्विचार कराने की अपील की है।
हालांकि, डॉ. धनखड़ ने स्वास्थ्य के कारण इस्तीफा देने का स्पष्ट संकेत दिया है। मार्च में उन्हेंदिल में दिक्कत के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था और एंजियोप्लास्टी करवाई गई थी। इसके बाद उन्होंने सक्रिय शून्य कायवाही जारी रखी लेकिन जनवरी–फरवरी में अचानक बिगड़ी तबीयत के चलते चिकित्सकों ने आराम की सलाह दी थी।
भले ही इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य का कारण बताया गया हो, लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि धनखड़ के इस्तीफे से देश की संसद के संचालन एवं उच्च न्यायपालिका‑संसद के बीच संतुलन भी प्रभावित होगा। अब इस पद की रिक्तता को भरने के लिए चुनाव छह महीनों के भीतर होना है, और तब तक राज्यसभा की कार्यवाही डिप्टी चेयरमैन संचालित करेंगे।
अन्य राजनीतिक विश्लेषकों ने टिप्पणी की है कि इसका समय संवेदनशील है। संसदीय मामलों के जानकारों के अनुसार, इस्तीफे के बाद राज्यसभा की सुनियोजित रणनीतियों, जैसे न्यायमूर्ति वर्मा के विरुद्ध प्रस्ताव, चुनाव‑संबंधी विधेयक या अन्य संवैधानिक मसलों में देरी या संशय की स्थिति बन सकती है। साथ ही उपराष्ट्रपति की भूमिका में अचानक बदलाव शुरू हो सकता है, जिससे कुछ मंत्रियों या विधायकों को असमंजस का सामना करना पड़ सकता है।
राजनीति विशेषज्ञ मानते हैं कि डॉ. धनखड़ का इस्तीफा भारतीय लोकतांत्रिक संस्थानों की अखंडता पर विचार करने का निमंत्रण है। पिछले दशक में उपराष्ट्रपति पदाधिकारियों के इस्तीफों में यह एक ऐसा मामला है जो “राजनीतिक एवं स्वास्थ्य” दोनों पहلوओं को जोड़कर देखा जा रहा है। वे तीसरे उपराष्ट्रपति हैं जिन्होंने कार्यकाल पूरा किए बिना पद छोड़ा — पहले वी.वी. गिरी और आर. वेंकटारमण इस पद से इस्तीफा देकर राष्ट्रपति हुए थे। लेकिन धनखड़ किसी राष्ट्रपति चुनाव की तैयारी में नहीं थे।
डॉ. धनखड़ के इस्तीफे से संसद, राजनेता और न्यायपालिका पर भी सवाल खड़े हो गए हैं — क्या उन्हें किसी दबाव या परिस्थिति ने मजबूर किया? क्या आगे और विस्तृत राजनैतिक चर्चाएं होंगी? वहीं, उनका इस्तीफा संविधान के अनुच्छेद 67(a) के अनुसार स्वीकार किया गया। राष्ट्रपति ने अभी तक इसका संवैधानिक रूप से समर्थन नहीं दिया है, लेकिन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
अब राजनीतिक दलों, विशेषकर विपक्ष, का ध्यान इस ओर है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी स्वयं धनखड़ को रुकने के लिए आमंत्रित करेंगे या नए उपराष्ट्रपति के चुनाव में संसदीय समीकरण बदलेंगे। चूंकि अगले राष्ट्रपति चुनाव और उपराष्ट्रपति चुनाव में रणनीतिक भूमिका निभाई जाती है, इसलिए इस रिक्तता से सत्ता‑संतुलन प्रभावित हो सकता है। देखें तो कदम राजनीति में भविष्य के लिए किया गया एक बड़ा संकेत हो सकता है।
अंततः, डॉ. धनखड़ का इस्तीफा देश के लोकतांत्रिक इतिहास में एक अनूठा अध्याय जोड़ गया है। उन्होंने अपने त्यागपत्र में स्वास्थ्य को तर्क घोषित किया, लेकिन समय, प्रक्रिया और सत्र की शुरुआत में इस घोषणा से राजनीतिक सेतु और संवैधानिक चर्चाओं में उथल‑पुथल मच गई। संसद की कार्यवाही, न्यायिक समीकरण और नए उपराष्ट्रपति की तलाश अगले सप्ताह मुख्य चर्चा में रहेंगे।
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