लोकतंत्र का दम घुटने की सनद है धनखड़ का इस्तीफा
जगदीप धनखड़ का इस्तीफा मंजूर, पीएम मोदी ने कर दिया बाई-बाई
राग-दरबारियों की जय, सिद्धांतवादियों की क्षय
शुभ-लाभ चिंता
देश के उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे से केंद्र सरकार कठघरे में आ गई है। स्पष्ट है कि धनखड़ का इस्तीफा स्वास्थ्य कारणों से नहीं हुआ है। इस्तीफे के अंदरूनी कारण इतने गहरे हैं कि उसे दबा कर रखने में ही सरकार का हित और हिफाजत दोनों है। अब लोगों को राजनीति से रत्ती भर भी नीति और नैतिकता, चाल और चरित्र की अपेक्षा रखना बंद कर देना होगा। ये शब्दावलियां केवल आम लोगों के अनुपालन और नेताओं के भाषण के लिए रह गई हैं। धनखड़ के इस्तीफे को लेकर मानसून सत्र के दूसरे दिन भी दोनों सदनों में हंगामा चलता रहा। विपक्ष इस मसले पर सरकार से जवाब मांग रहा है तो सत्ता पक्ष संदेहास्पद चुप्पी साधे बैठा है। संसदीय गतिविधियों के विशेषज्ञ मानते हैं कि सोमवार को जब राज्यसभा के अंदर सभा धनखड़ की मौजूदगी में केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा बिल्कुल सभापति की शैली में विपक्षी नेताओं को हड़का रहे थे और निर्देश दे रहे थे कि केवल उनकी ही बातें रिकॉर्ड में रखी जाएंगी और विपक्षी नेताओं की बातें रिकॉर्ड में नहीं रखी जाएंगी, उसी समय समझ में आ रहा था कि सदन में आसीन सभापति के समानांतर एक भद्दी लाइन खींची जा रही है। नड्डा की इस बदतमीजी पर कोई हिसाब नहीं मांग सकता, क्योंकि वे सत्ता शीर्ष पर बैठे नेताओं के राग-दरबारी हैं। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने बिल्कुल सही कहा कि इस्तीफे का जो कारण बताया जा रहा है, वह असलियत नहीं है।
धनखड़ के इस्तीफे के पीछे घूसखोर जज यशवंत वर्मा को हटाने का राज्यसभा में लिए गए प्रस्ताव को भी प्रमुख कारण बताया जा रहा है। सत्ता शीर्ष पर बैठे नेताओं का दंभ इतना हावी है कि उन्हें राज्यसभा में लिया गया प्रस्ताव रास नहीं आया, इसलिए सभापति का फौरन इस्तीफा ले लिया। कहा गया कि सभापति जगदीप धनखड़ ने सरकार को राज्यसभा में जज वर्मा के खिलाफ लिए जाने वाले प्रस्ताव की कोई जानकारी नहीं दी थी। जगदीप धनखड़ ने अपने आसन से ऐलान कर दिया और तकनीकी तौर पर जज वर्मा को हटाने का प्रस्ताव राज्यसभा में आ गया, जबकि सरकार ने इसे लोकसभा में रखने की रणनीति बनाई थी और इसके लिए विपक्ष को भी भरोसे में लिया था। लोकसभा में लाए गए प्रस्ताव पर विपक्षी सांसदों के भी हस्ताक्षर लिए गए थे। उच्च सदन के सभापति जगदीप धनखड़ की घोषणा का सम्मान करने के बजाय निम्न सदन के नेता ने धनखड़ से इस्तीफा मांग लिया। शीर्ष सत्ता चौपाल में बताया गया कि धनखड़ ने सीमा लांघी है।
बहरहाल, जगदीप धनखड़ का इस्तीफा राष्ट्रपति द्वारा स्वीकार कर लिया गया है। मानवीयता और सिद्धांतों को ताक पर रखकर सियासत का नृशंस खेल चलता रहेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईश्वर से जगदीप धनखड़ के स्वास्थ्य की शुभकामनाएं दे ही दीं, यानि उन्हें अलविदा कह ही दिया। धनखड़ पूरे अनुशासन और विनम्रता के साथ मौजूदा घटिया राजनीति के मुंह पर इस्तीफे का तमाचा जड़ा और चल दिया। कांग्रेस नेता नीरज डांगी ने कल ही कह दिया था कि जगदीप धनखड़ का इस्तीफा दबाव देकर लिया गया है। बिहार के सांसद पप्पू यादव ने कहा, इस्तीफे के पीछे गेम कुछ और ही है।
उल्लेखनीय है कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार की देर शाम राष्ट्रपति मुर्मू को अपना त्यागपत्र भेज दिया था। उनका इस्तीफा दो मंगलवार को स्वीकार किया गया, लेकिन उपराष्ट्रपति के एक्स हैंडल से उनकी प्रोफाइल कल शाम को आनन फानन में हटा ली गई थी। सरकार को धनखड़ का अस्तित्व भी अचानक इतना नागवार लगने लगा था। उपराष्ट्रपति के पद छोड़ने के साथ ही राज्यसभा के सभापति का पद भी रिक्त हो गया है। अब मानसून सत्र में राज्यसभा की पूरी कार्यवाही उपसभापति हरिवंश चलाएंगे। इसके अलावा राष्ट्रपति की ओर से अधिकृत सदस्य को भी यह जिम्मेदारी दी सकती है। उपराष्ट्रपति पद का चुनाव जल्द ही कराया जाएगा। जेपी नड्डा भी उपराष्ट्रपति पद के संभावित उम्मीदवार हो सकते हैं।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। विपक्ष इसे एक बड़ा राजनीतिक कदम मान रहा है और इस त्यागपत्र के अलग ही मायने निकाल रहा है। यहां भी सबसे ज्यादा चर्चा भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा की हो रही है। पूरा विपक्ष इस समय जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद जेपी नड्डा को ही खलनायक बता रहा है।
पूरा विपक्ष धनखड़ के इस्तीफे को लेकर नड्डा को निशाने पर ले रहा है। यह विवाद सोमवार को शुरू हुए मानसून सत्र से जुड़ा है। राज्यसभा में जेपी नड्डा की विपक्षी सांसदों के साथ कहासुनी हुई थी। संसद की कार्यवाही के दौरान विपक्ष लगातार हंगामा कर रहा था। ऐसे में जेपी नड्डा ने कहा था, मैं जो बोल रहा हूं, वहीं ऑन रिकॉर्ड जाएगा, बाकी कुछ नहीं जाएगा। अब इसी बयान को विपक्ष ने एक बड़ा मुद्दा बना लिया। विपक्ष के नेताओं का तर्क है कि जेपी नड्डा ने इस बयान से सीधे-सीधे सभापति के आसन का अपमान किया है। विपक्ष कह रहा है कि इसी वजह से जगदीप धनखड़, जेपी नड्डा से खफा हो गए। इसके ऊपर बिजनेस एडवाइजरी की जो मीटिंग सोमवार शाम को होनी थी, उसमें जेपी नड्डा ने हिस्सा नहीं लिया। जगदीप धनखड़ बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की बैठक में न्यायपालिका से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण घोषणा करने वाले थे। लेकिन वह घोषणा रहस्य में लिपटी हुई ही रह गई। विपक्ष ने इसे भी मुद्दा बना लिया है और इसे भी धनखड़ की नाराजगी और अपमान से जोड़कर देख रहा है।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, जगदीप धनखड़ का अचानक इस्तीफा जितना चौंकाने वाला है, उतना ही अकल्पनीय भी है। उनके इस बिल्कुल अप्रत्याशित इस्तीफे के पीछे जो दिखाई दे रहा है, उससे कहीं अधिक है। जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से यह भी आग्रह किया था कि वे त्यागपत्र वापस लेने के लिए धनखड़ से आग्रह करें। लेकिन प्रधानमंत्री धनखड़ के दीर्घायु होने के शुभकामना देते हुए उन्हें गुडबाय ही कह दिया। कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने धनखड़ के इस्तीफे पर कहा, वह पूरे दिन संसद भवन में थे। सिर्फ एक घंटे में ऐसा क्या हो गया कि उन्हें इस्तीफा देना पड़ा? मैं इसका कारण नहीं समझ पा रहा हूं। कांग्रेस सांसद नीरज डांगी ने कहा, यह बहुत चौंकाने वाली और हैरान करने वाली खबर है। शाम को अचानक सूचना आई। धनखड़ साहब ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है, लेकिन जहां तक स्वास्थ्य की बात है, उन्होंने दिल की समस्या के बावजूद 3-4 दिन में पिछला सत्र दोबारा शुरू कर दिया था। ऐसे में अचानक स्वास्थ्य कारणों का सामने आना कई सवाल खड़े करता है। यह सरकार के दबाव में दिया गया इस्तीफा लगता है। शायद सरकार ने ही उन पर यह फैसला थोपा हो। यह देश और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए ठीक नहीं है। उन्होंने कहा, भारत के इतिहास में पहली बार किसी उपराष्ट्रपति ने इस तरह इस्तीफा दिया है। चाहे कोई भी पद हो, सरकार इस देश को मनमाने तरीके से चलाना चाहती है और यह सबके सामने है। सांसद पप्पू यादव ने कहा, यह पूरी तरह से राजनीतिक इस्तीफा है। इस इस्तीफे के पीछे अवश्य कोई भीतर का गेम है।
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