पूरा सिस्टम ही बन गया है घोटाले का कारखाना
दिल्ली के बाद छत्तीसगढ़ और आंध्र का शराब घोटाला सुर्खियों में
राज्यों का शराब घोटाला दिखा रहा लोकतंत्र का कुरूप चेहरा
नई दिल्ली, 22 जुलाई (एजेंसियां)। दिल्ली की तत्कालीन आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा के गए भीषण आबकारी घोटाले ने पूरे देश में शराब घोटाले की श्रृंखला ही बना दी। छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश की पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा किया गया शराब घोटाला अभी सुर्खियों में है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस नेता भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल को पिछले दिनों प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गिरफ्तार कर लिया। इसी तरह आंध्र प्रदेश में वाइएसआरसीपी सरकार के समय हुए शराब घोटाले में पार्टी के सांसद मिधुन रेड्डी को भी ईडी ने गिरफ्तार किया। यह भी भेद खुला कि आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन रेड्डी को घोटाले के एवज में भारी रिश्वत मिल रही थी।
छत्तीसगढ़ का शराब व्यापार भारत के सबसे बड़े घोटालों में से एक बन गया है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल को गिरफ्तार करने के बाद बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया है। ईडी ने आरोप लगाया है कि 2019 से 2023 के बीच राज्य में शराब का पूरा व्यापार एक सरकारी जबरन वसूली रैकेट से कम नहीं था, जो नीतियों के आवरण में छिपा था और राजनीतिक ताकत से संचालित था। ईडी का दावा है कि इसके केंद्र में तत्कालीन मुख्यमंत्री का बेटा चैतन्य बघेल शामिल था, जो न केवल काले धन को रियल एस्टेट में लगा रहा था, बल्कि नकदी से संचालित प्रभाव का साम्राज्य बनाने के लिए भी सिस्टम को तार-तार कर रहा था।
छत्तीसगढ़ के शराब घोटाले पूरा एक सिंडिकेट शामिल था, जिसमें शामिल थे अनवर ढेबर, अनिल टुटेजा और अरुणपति त्रिपाठी जैसे कई लोग। रिटायर्ड आईएएस अधिकारी और राज्य के पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांड के संरक्षण में यह सिंडिकेट काम कर रहा था। ईडी का कहना है कि चैतन्य बघेल का रियल एस्टेट प्रोजेक्ट, विट्ठल ग्रीन अवैध शराब की कमाई को साफ पूंजी में बदलने का जरिया था।
बघेल की कंपनी को सहेली ज्वैलर्स नामक एक फर्जी फर्म से 5 करोड़ रुपए मिले, जिस पर घोटाले की आय को वैध बनाने का आरोप है। हालांकि इसे ऋण के रूप में प्रस्तुत किया गया था, लेकिन कोई ब्याज नहीं दिया गया, और 4.5 करोड़ रुपए बकाया रह गए, जिससे पता चलता है कि यह लेन-देन दिखावा था। इतना ही नहीं, किताबों में केवल 7.14 करोड़ रुपए दिखाए जाने के बावजूद, निर्माण की वास्तविक लागत 13 से 15 करोड़ रुपए के बीच आंकी गई थी और उसमें से कम से कम 4.2 करोड़ रुपए कथित तौर पर ठेकेदारों को नकद भुगतान किए गए थे। 2020 में एक ही दिन में, शराब कारोबारी त्रिलोक सिंह ढिल्लों के कर्मचारियों ने 19 फ्लैट खरीद लिए। ईडी का मानना है कि यह कदम पैसों के लेन-देन को छिपाने के लिए उठाया गया था। लेकिन शराब घोटाला सिर्फ छिपे हुए फ्लैटों और मनगढ़ंत किताबों की कहानी नहीं है। यह नौकरशाही की दादागिरी, पिछले दरवाजे से सौदेबाजी और व्यवस्थित गबन की एक गाथा है, जिसे तीन खौफनाक हिस्सों में अंजाम दिया गया। भाग-ए में डिस्टिलरी द्वारा प्रति शराब पेटी 75 रुपए कमीशन के रूप में दिए जाने की बात शामिल थी, जिसे अनिल टुटेजा (सेवानिवृत्त आईएएस) और अरुण पति त्रिपाठी (आईटीएस) जैसे उच्च पदस्थ अधिकारियों ने सुगम बनाया और कांग्रेस के कद्दावर नेता अनवर ढेबर ने इसकी देखरेख की। ईडी के अनुसार, अकेले इस चैनल से 319 करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई हुई।
शराब को नकली होलोग्राम का उपयोग करके सिस्टम के बाहर बेचा गया और सरकारी गोदामों को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया। इसे सीधे दुकानों तक पहुंचाया गया और नकद में बेचा गया। ईडी का कहना है कि अकेले 2022-23 में, आबकारी अधिकारियों की नाक के नीचे हर महीने 400 ट्रक अवैध शराब ले जाई गई। सिंडिकेट ने अनुमानित 3,000 रुपए प्रति केस कमाए, जिससे शराब तरल सोने में बदल गई। एफएल-10ए नामक एक फर्जी लाइसेंस प्रणाली के ज़रिए विदेशी शराब को निशाना बनाया गया। सिंडिकेट के मुखौटे वाली चुनिंदा कंपनियों को प्रीमियम आयातित ब्रांड बेचने के लिए विशेष लाइसेंस दिए गए। उन्होंने पिछले साल की सरकारी दर पर शराब खरीदी, लेकिन उपभोक्ताओं के लिए उसकी कीमत बढ़ा दी। लूट का माल आपस में बांट लिया गया और 60 प्रतिशत मुनाफा राजनीतिक गुट को दे दिया गया। घोटाले के इस हिस्से से 211 करोड़ रुपए कमाए गए।
बोतल निर्माताओं और सुरक्षा ठेकेदारों से लेकर आबकारी निरीक्षकों और यहां तक कि होलोग्राम प्रिंटर तक, इस भ्रष्टाचार में शामिल थे। प्रवर्तन निदेशालय का कहना है कि शराब की बिक्री को नियंत्रित करने वाली पूरी मशीनरी ही भ्रष्टाचार इंजन बन गई। प्रमुख अभियुक्त लक्ष्मी नारायण बंसल, जिसे पप्पू के नाम से जाना जाता है, ने ईडी को बताया कि उसने अकेले ही 1,000 करोड़ रुपए से ज़्यादा के घोटाले का प्रबंधन किया। उसने दावा किया कि चैतन्य बघेल के सीधे निर्देश पर उसने केके श्रीवास्तव नाम के एक व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से 80-100 करोड़ रुपए नकद पहुंचाए थे।
उधर, आंध्र प्रदेश में 3,500 करोड़ रुपए के शराब घोटाले में पुलिस ने आरोपपत्र दाखिल किया है, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी को हर महीने 50–60 करोड़ रुपए रिश्वत लेने वाला बताया गया है। हालांकि जगन रेड्डी को फिलहाल आरोपी नहीं बनाया गया है। आरोपपत्र में राजशेखर रेड्डी को मास्टरमाइंड बताया गया है। इस मामले में वाईएसआरसीपी सांसद मिधुन रेड्डी को गिरफ्तार किया जा चुका है। आरोपपत्र में कहा गया है कि यह रकम पहले केसिरेड्डी राजशेखर रेड्डी (आरोपी नंबर 1) को सौंपी जाती थी। फिर वह पैसा विजय साई रेड्डी (आरोपी नंबर 5), मिधुन रेड्डी (आरोपी नंबर 4) और बालाजी (आरोपी नंबर 33) को दिया जाता था, जो कि अंत में इसे पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी तक पहुंचाते थे। हर महीने औसतन 50-60 करोड़ रुपए इकट्ठा किए जाते थे। यह बात एक गवाह के बयान से भी साबित हुई है।
इसमें यह भी आरोप लगाया गया है कि राजशेखर रेड्डी इस पूरे घोटाले का मास्टरमाइंड और सह-साजिशकर्ता है। उसने आबकारी नीति में बदलाव करवाया और आपूर्ति के लिए आदेश (ओएफएस) की स्वचालित (ऑटोमेटिक) प्रणाली को हटाकर मैनुअल प्रक्रिया लागू करवाई। साथ ही, उसने आंध्र प्रदेश स्टेट बेवरेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एपीएसबीसीएल) में अपने भरोसेमंद लोगों की नियुक्ति करवाई। राजशेखर रेड्डी ने फर्जी डिस्टलरी (शराब बनाने का संयंत्र) बनवाईं और बालाजी गोविंदप्पा नाम के आरोपी के जरिए जगन को रिश्वत पहुंचाई। साथ ही, उसने पूर्व विधायक चेविरेड्डी भास्कर रेड्डी के साथ मिलकर वाईएसआरसीपी के लिए चुनावों में 250 से 300 करोड़ रुपए नकद दिए। यह रकम 30 से ज्यादा फर्जी कंपनियों के जरिए धनशोधन कर विदेश में जमीन, सोना और महंगी संपत्तियों में लगाई गई। कुछ निवेश दुबई और अफ्रीका में भी किए गए।
पुलिस का दावा है कि वाईएसआरसीपी सरकार के दौरान आरोपियों ने नई शराब ब्रांड बाजार में उतारी, ताकि आपूर्ति और बिक्री पर उनका पूरा नियंत्रण हो और 2019 से 2024 तक बड़ी मात्रा में कमीशन वसूला जा सके। आरोपपत्र में कहा गया है, आरोपियों ने मिलकर आबकारी नीति और उसकी प्रक्रिया को बदला, ताकि उन्हें मोटा कमीशन मिल सके। इस कमीशन का ज्यादातर हिस्सा नकद और सोने के रूप में लिया गया। जांच के दौरान यह भी सामने आया कि आरोपियों ने जानबूझकर उन ब्रांड/डिस्टिलरी को ओएफएस की मंजूरी नहीं दी, जो रिश्वत नहीं दे रहे थे। इस मामले की जांच कर रहे विशेष जांच दल (एसआईटी) ने शनिवार को वाईएसआरसीपी के लोकसभा सांसद पीवी मिधुन रेड्डी को पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया। इससे पहले मई महीने में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी इस शराब घोटाले को लेकर धनशोधन का मामला दर्ज किया था।
ईडी ने इस मामले की जांच के लिए धनशोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत एक ईसीआईआर दायर की है। मिधुन रेड्डी की गिरफ्तारी के बाद वाईएसआरसीपी नेताओं ने इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई बताया है। वाईएसआरसीपी की प्रेस विज्ञप्ति में पूर्व मंत्री बोचा सत्यनारायण, परणी वेंकटरमैया (नानी), अंबाती रामबाबू, मेरुगु नागार्जुन और पार्टी महासचिव जी श्रीकांत रेड्डी ने इस कार्रवाई की निंदा की है और कहा है कि मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू सत्ता का दुरुपयोग कर विपक्षी नेताओं को निशाना बना रहे हैं।
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