भाजपा को 'खा' रहे हैं राग दरबारी

संघ के खिलाफ बोलने पर भी भाजपा के माथे पर बैठे हैं नड्डा!

भाजपा को 'खा' रहे हैं राग दरबारी

शीर्ष नेताओं के चहेते हैं रेड्डी और नड्डा जैसे चाटुकार

शुभ-लाभ समीक्षा

पूरा देश यह देख चुका है कि जिस तरह क्षेत्रीय स्तर पर तेलंगाना के भाजपा नेता जी किशन रेड्डी ने गोशामहल विधानसभा सीट के विधायक टी राजा सिंह को खा लिया उसी तरह राष्ट्रीय स्तर पर जेपी नड्डा ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को खा लिया। अब लीपापोती करने के लिए धनखड़ के खिलाफ जो भी बातें कही जा रही हों या राजा सिंह के बारे में कही जा रही हों, वह सब मनगढ़ंत बातें हैं... संकट-प्रबंधन के ये सब हथकंडे हैं। लब्बोलुबाव यह है कि भाजपा के राग-दरबारी भाजपा को खा रहे हैं, लेकिन विडंबना यह है कि सत्ता-दंभी नेतृत्व को चाटुकार ही सुहा रहे हैं। तेलंगाना के चाटुकार भाजपा नेताओं ने भाजपा की क्या दुर्गति बनाई, यह जगजाहिर है। पिछले दिनों शुभ-लाभ ने इस पर थोड़ी चर्चा भी की थी। राष्ट्रीय स्तर पर चाटुकारों ने भाजपा की जो दुर्दशा कर रखी है, इस पर भी बात होनी चाहिए। भाजपा की तीन बार की ऐतिहासिक जीत ने भाजपा को शीर्ष पर पहुंचा दिया, लेकिन बहस इस बात की हो रही है कि भाजपा के कारण भाजपा जीती या मोदी के कारण भाजपा जीती। यह भी कुछ दिनों में साफ हो जाएगा, जब नरेंद्र मोदी का सक्रिय राजनीति से अवकाश होगा, तब यह साफ होगा कि भाजपा, भाजपा की वजह सके जीत रही थी या मोदी की वजह से। कोशिश भी इसी बात की है कि भाजपा की जीत का श्रेय केवल मोदी को जाए, तभी तो इतिहास में मोदी का नाम दर्ज होगा। भाजपा की मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के योगदान और अवदान को कमतर कर आंकने और षडयंत्रपूर्वक हाशिए पर डालने की गतिविधियां कोई छुपी हुई बात थोड़े ही रह गई है। सत्ता नेतृत्व को घेरे बैठे चाटुकार यही तो कर रहे हैं लगातार...

2024 के लोकसभा चुनाव के फ्लैशबैक में चलें। चुनाव पूरे परवान पर था। चार सौ पार पहुंचने का अतिरिक्त आत्मविश्वास ठाठे मार रहा था। उसी अति-आत्मविश्वास की धारा पर चाटुकार दल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अपनी औकात दिखाने का कुचक्र रच रहा था। जब भाजपा संगठन का अध्यक्ष जेपी नड्डा खुद बोले कि भाजपा को संघ की कोई जरूरत नहीं। भाजपा खुद में सक्षम है। तो आप नड्डा के उस बयान के निहितार्थ समझिए। क्या आप समझते हैं कि चाटुकार अपने आका के किसी इशारे के बिना कोई बात कहता है18 मई 2024 को अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को दिए साक्षात्कार में जेपी नड्डा ने कहा था, शुरुआत में हम अक्षम होंगेथोड़ा कम होंगेतब आरएसएस की जरूरत थी। आज हम बढ़ गए हैं। हम सक्षम हैं। भाजपा अपने आप को चलाती है। नड्डा ने साफ-साफ लाइन खींचते हुए कहा था, आरएसएस एक सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन है। जबकि भाजपा एक राजनीतिक दल है। सबकी अपनी-अपनी भूमिका है। नड्डा ने मथुरा और वाराणसी के मंदिर मुद्दे पर भी कहा था, भाजपा का ऐसा कोई विचारयोजना या इच्छा नहीं है। ...और नड्डा के इस बयान ने नतीजा दिखा दिया। चार सौ पार के बजाय वैतरणी पार करने में दिक्कत खड़ी हो गई और जेडीयू एवं टीडीपी के सहारे सरकार का गठन हो पाया। लोकसभा चुनाव में भाजपा अकेले बूते पर बहुमत भी नहीं ला सकी। भाजपा को सिर्फ 240 सीटें ही मिलीं। फिर भी चाटुकारों को शर्म नहीं आई। उनका धंधा जारी है।

राग दरबारियों का वर्चस्व पार्टी में इस कदर कायम है कि नड्डा अध्यक्ष पद से हटने का नाम नहीं ले रहे। नड्डा के नेतृत्व में या नड्डा के जरिए भाजपा नेतृत्व ने भाजपा को अत्यधिक केंद्रीकृत कर दिया है और चौकड़ी के बाहर खड़े नेताओं के लिए बहुत कम जगह बची है। नड्डा के आत्मसुहाती बयान पर तब कटाक्ष भी हुआ था कि संघ भाजपा की मां की तरह है लेकिन आज भाजपा अपनी मां को ही आंखें दिखाने लगी है।

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भौंडा बयान देने वाले नड्डा या बयान दिलवाने नेताओं को यह याद नहीं रहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद ही राजनीति में आने से पहले संघ के प्रचारक थे। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी संघ के प्रचारक रहे थे। पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने भी कहा था कि अगर उनके भीतर कोई गुण है तो वह इसका श्रेय संघ को ही देते हैं। लेकिन भाजपा इतनी निरंकुश और उद्दंड हो गई कि संघ पर आंखें तरेरने लगी।

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आप कुछ महत्वपूर्ण बयान देखिए। 1980 जब भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई उसके ठीक दो हफ्ते बाद पार्टी के प्रथम महासचिव लालकृष्ण अडवाणी ने गुजरात यूनिट के पहले सम्मलेन को संबोधित करते हुए कहा था कि भाजपा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ अपना संबंध कभी नहीं तोड़ेगी। वर्ष 2000 में प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी ने न्यूयॉर्क में कहा थामैं आज प्रधानमंत्री हो सकता हूंकल नहीं हो सकता लेकिन एक चीज जो मुझसे कोई नहीं छीन सकतावह है मेरा स्वयंसेवक होना। उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने भी सार्वजनिक मंच से कहा था, अगर मुझमें कोई सराहनीय गुण हैतो मैं इसका श्रेय आरएसएस को देता हूं। 2007 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने एक इंटरव्यू में कहा थामैं मूल रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक हूं। हमें राष्ट्र के लिए सोचने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। यह मेरी आरएसएस की परवरिश है। वही परवरिश मुझे जो भी काम सौंपा जाता है उसे अच्छे से करने में सक्षम बनाती है। संघ परिवार मेरी शाश्वत शक्ति है। आडवाणीअटल और मोदी के इन बयानों को सामने रख कर नड्डा के उद्दंडता से भरे बयान देखें तो भारतीय जनता पार्टी की स्खलन-यात्रा आपको साफ-साफ दिखेगी।

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लोकतांत्रिक भाजपा कितनी लोकतांत्रिक रह गई, इसका भी जायजा लेते चलें। लोकसभा चुनाव 2024 का परिणाम आने के बाद क्या आपको याद है कि नरेंद्र मोदी भाजपा संसदीय दल के नेता कैसे चुने गए? जब चुने ही नहीं गए तो आपको याद कैसे आएगा। संसदीय दल का नेता चुने बगैर नरेंद्र मोदी एनडीए के नेता बनकर प्रधानमंत्री बन गए। 1980 से 2020 के बीच यानी 40 साल के दौरान भाजपा का नेतृत्व कभी भी ऐसे पार्टी अध्यक्ष ने नहीं कियाजो कभी अपने करियर के शुरुआती दौर में संघ या उसके सहयोगियों से जुड़ा न रहा हो। जेपी नड्डा के रूप में भाजपा को ऐसा ही राष्ट्रीय अध्यक्ष मिला, जिसने अपनी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति उद्दंडता दिखाई, इसके बावजूद पार्टी नेतृत्व ने उसे अपने सिर पर बिठा रखा है।

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