2027 के राजनीति समीकरण का संकेत तो नहीं..!
महज संयोग नहीं है इन तीन राजनीतिक देवियों का एक साथ होना
राजेश पटेल
नई दिल्ली/लखनऊ, 28 जुलाई। सियासी गलियारे से तस्वीरें तो बहुत आती हैं, लेकिन इनमें कुछ ऐसी आ जाती हैं, जो सियासत में नई बहस या नई संभावनाओं के उदय को जन्म देती हैं। कुछ ऐसी दुर्लभ तस्वीरें कभी-कभी भविष्य की राजनीति का संकेत भी देती हैं। संसद के मानसूत्र सत्र के दौरान ऐसी ही एक फोटो सामने आई, जिसने तरह-तरह की संभावनाओं पर सोचने के लिए विवश किया। यह फोटो है संसद भवन परिसर की, जहां अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल, समाजवादी पार्टी की सांसद डिंपल यादव और प्रिया सरोज की। डिंपल यादव सपा प्रमुख अखिलेश यादव की पत्नी हैं, यह तो सब जानते ही हैं। लेकिन सब यह नहीं जानते-समझते कि राजनीतिक जगत की इन तीन देवियों की एक साथ खींची गई तस्वीर महज एक संयोग है या सोचा-समझा हुआ संयोजन।
कहने को तो अनुप्रिया पटेल केंद्र में राज्य मंत्री हैं, लेकिन भाजपा के साथ उनके समीकरण फिलहाल डांवाडोल स्थिति में हैं। अनुप्रिया पटेल के पति आशीष पटेल उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। लेकिन जैसे-जैसे 2027 नजदीक आ रहा है, तल्खी बढ़ती जा रही है। अभी तक तो आशीष पटेल ही मुखर थे। एसटीएफ और 1700 करोड़ के सूचना विभाग के बजट विवाद को उठाकर आशीष पटेल सुर्खियों में रहे हैं। इसके अतिरिक्त अपना दल (एस) पार्टी की पिछली समीक्षा बैठक में अनुप्रिया पटेल ने भी इशारों-इशारों में बहुत कुछ कह डाला। इससे जाहिर हुआ कि गठबंधन की गांठ से अपना दल (एस) धीरे-धीरे ही सही, खुल कर सरक रही है।
इसका कारण भी है। अनुप्रिया पटेल अपनी पार्टी के सामाजिक न्याय के मुद्दों को एक-एक कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सुलझवाती जा रही हैं। विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती में 13 प्वाइंट रोस्टर का मामला रहा हो या केंद्रीय और सैनिक विद्यालयों में प्रवेश में ओबीसी बच्चों के लिए 27 फीसदी आरक्षण की बात हो। मांग पूरी हो गई। कहा तो यह भी जाता है कि जातीय जनगणना की भी घोषणा मोदी ने सामाजिक न्याय की विचारधारा की राजनीति के दबाव में ही की। उनको डर था कि यदि यह घोषणा नहीं करते तो ओबीसी का बड़ा वोट बैंक उनसे छिटक सकता था।
इसके ठीक उलट अनुप्रिया पटेल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से 69 हजार शिक्षक बहाली में ओबीसी अभ्यर्थियों तक को न्याय नहीं दिलवा पा रही हैं। इसके लिए उन्होंने विभिन्न मंचों के माध्यम से कई बार योगी आदित्यनाथ से अपील की, लेकिन योगी आदित्यनाथ ने उनकी नहीं सुनी। इसके अलावा भी ओबीसी के कई मुद्दे हैं, जिनको सिर्फ इसलिए नहीं सुलझाया जा रहा है कि इनको अपना दल (एस) ने उठाया है। एनडीए के सबसे पुराने सहयोगी अपना दल (एस) को मजबूत बनाने के बजाए उत्तर प्रदेश में उसे कमजोर करने की कोशिशें सरकार के स्तर से बार-बार की जा रही हैं। अपना दल (एस) के विरोधियों के कंधों पर बंदूक रखकर योगी बाबा निशाना लगाने का प्रयास करते हैं, हालांकि अपना दल (एस) की सावधानी के कारण निशाना हर बार चूक जाता है।
अपना दल (एस) के रास्ते में हर कदम पर बारूदी सुरंगें बिछाई जा रही हैं। इनसे कब तक बचा जा सकता है। सावधानी हटी कि दुर्घटना घटी। योगी सरकार और अपना दल (एस) के बीच का यह शीतयुद्ध सार्वजनिक हो गया है। ऐसे में जब इस तरह की फोटो सामने आएगी तो बहस का मुद्दा बनेगी ही। क्या 2927 के लिए सामाजिक न्याय की विचारधारा वाली पार्टियां एक साथ आने जा रही हैं? यह फोटो उसका संकेत तो नहीं है? चर्चाओं को इसलिए भी पंख लग रहे हैं कि इस तरह की फोटो पहली बार सामने आई है। हालांकि उसी दिन एक और फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुई, जिसमें कई दलों की महिला सांसद हैं। वह तो सामान्य शिष्टाचार हो सकता है, लेकिन अनुप्रिया पटेल, डिंपल यादव और प्रिया सरोज की इस फोटो के कई अर्थ और कई निहितार्थ हैं। कोई इसे भविष्य का गठबंधन बता रहा है तो कोई 2027 के लिए नई गोलबंदी। हालांकि 2022 में विधानसभा चुनाव के पहले समाजवादी पार्टी और अपना दल (एस) के गठबंधन को लेकर पूछे गए सवाल पर अखिलेश यादव ने कहा था कि उनके यहां हाउसफुल है। इधर अनुप्रिया पटेल कहती रहती हैं कि राजनीति संभावनाओं का खेल है। यहां न कोई स्थाई दोस्त होता है और न स्थाई दुश्मन।
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