भारत नहीं, चीन है रूस के तेल का सबसे बड़ा खरीदार

 विदेश मंत्री जयशंकर ने बेनकाब किया डोनाल्ड ट्रंप का झूठ

भारत नहीं, चीन है रूस के तेल का सबसे बड़ा खरीदार

भारत नहीं, यूरोपीय संघ है एलपीजी का बड़ा खरीदार

रूस के डिप्टी पीएम एवं विदेश मंत्री से मिले जयशंकर

मॉस्को, 21 अगस्त (एजेंसियां)। रूस के साथ तेल व्यापार को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा फैलाए गए भ्रम को भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने बड़े ही तथ्यात्मक तरीके से पूरी दुनिया के सामने धो दिया। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहाहम रूसी तेल के सबसे बड़े खरीदार नहीं हैं। रूस से तेल का सबसे बड़ा खरीदार चीन है। एलएनजी का सबसे बड़ा खरीदार भी भारत नहीं हैबल्कि वह खुद यूरोपीय संघ है। 2022 के बाद रूस के साथ व्यापार में सबसे तेज बढ़त भी हमारे साथ नहीं हुईबल्कि दक्षिण के कुछ अन्य देशों के साथ हुई है।

जयशंकर ने कहाहम एक ऐसा देश हैंजिसे अमेरिकी प्रशासन खुद कहता आया है कि हमें वैश्विक ऊर्जा बाजार को स्थिर करने के लिए हर जरूरी कदम उठाने चाहिएजिसमें रूस से तेल खरीदना भी शामिल है। वैसेहम अमेरिका से भी तेल खरीदते हैं और वह मात्रा बढ़ रही है। इसलिएईमानदारी से कहूं तो जो तर्क दिया गया हैवह हमें पूरी तरह से उलझाने वाला और अस्पष्ट लगता है। अमेरिका द्वारा 50 फीसदी टैरिफ लगाए जाने के बीच भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रूस के साथ व्यापार बढ़ाने पर जोर दिया। विदेश मंत्री ने रूसी कंपनियों से अपने भारतीय समकक्षों के साथ गहराई से जुड़ने की अपील की। विदेश मंत्री ने भारत सरकार की मेक इन इंडिया जैसी पहल और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का हवाला देते हुए कहा कि भारत में विदेशी कंपनियों के लिए काफी संभावनाएं हैं।

एस जयशंकर इन दिनों रूस दौरे पर हैंजहां उन्होंने रूसी विदेश मंत्री से मुलाकात की। एक कार्यक्रम में जयशंकर ने कहा कि भारत की जीडीपी 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से ज्यादा है और 7 प्रतिशत की दर से विकास करने वाले भारत को विश्वसनीय स्रोतों से बड़े संसाधनों की जरूरत है। जिनमें उर्वरकरसायन और मशीनरी की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है। भारत में तेजी से बढ़ता बुनियादी ढांचा उद्यमों के लिए बेहतर व्यवसायिक अवसर प्रदान करता है। विदेश मंत्री ने कहा कि भारत और रूस के संबंध सबसे स्थिर रहे हैंलेकिन दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग में बहुत ज्यादा सहयोग नहीं हुआ। हाल के वर्षों में इसमें तेजी आई हैलेकिन साथ ही व्यापार घाटा भी बढ़ा है। उन्होंने दोनों देशों के बीच व्यापार में और विविधता लाने और संतुलन बनाने की जरूरत पर बल दिया।

भारतीय विदेश मंत्री ने विकास को बढ़ावा देने और तेजी से आगे बढ़ने के लिए निवेशसंयुक्त उद्यम और अन्य सहयोग की इच्छा व्यक्त की। साथ ही कहा कि यह एक स्थायी रणनीतिक साझेदारी में एक मजबूत और टिकाऊ आर्थिक घटक होना चाहिए। जयशंकर ने रूस के साथ व्यापार बढ़ाने की पहल ऐसे समय की हैजब अमेरिका ने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया है। यह टैरिफ रूस से तेल खरीदने के लिए लगाया गया है। अमेरिका के टैरिफ के बाद भारत और रूस के संबंधों में फिर से गर्मजोशी दिखाई दे रही है। रूस के प्रथम उप-प्रधानमंत्री डेनिस मांतुरोव व से मुलाकात के दौरान जयशंकर ने कहा कि उन्हें व्यापार और निवेश संबंधों का पूर्ण उपयोग करना चाहिए। उप प्रधानमंत्री डेनिस मांतुरोव ने कहा कि रूस से तेल और ऊर्जा संसाधनों का भारत में प्रवाह जारी है और मॉस्को को एलएनजी निर्यात की संभावनाएं नजर आ रही हैं। मांतुरोव ने कहाहम कच्चे तेल और तेल उत्पादोंतापीय और कोयले सहित ईंधन का निर्यात जारी रखे हुए हैं। हम रूसी एलएनजी के निर्यात की संभावना देखते हैं। नेता ने कहाहम शांतिपूर्ण परमाणु क्षेत्र में व्यापक सहयोग का विस्तार करने की उम्मीद करते हैंजिसमें कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र निर्माण परियोजना के सफल अनुभव के आधार पर सहयोग भी शामिल है।

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विदेश मंत्री एस जयशंकर और उनके रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव के बीच भी गुरुवार को मास्को में बैठक हुई। इस बैठक में राजनीतिकव्यापारिक और रणनीतिक सहयोग पर चर्चा हुई। लावरोव ने भारत-रूस संबंधों को विशेष रणनीतिक साझेदारी बताया और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सहयोग को जरूरी बताया। लावरोव ने कहामुझे उम्मीद है कि आज हमें राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा का अवसर मिलेगा। हम अपने संबंधों को विशेष रणनीतिक साझेदारी के रूप में देखते हैं और हमें उम्मीद है कि हम इन संबंधों को पूरी तरह सही ठहराएंगे। उन्होंने कहाहम अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक नई व्यवस्था बनते हुए देख रहे हैंजो एक बहुध्रुवीय व्यवस्था है। इसमें शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ)ब्रिक्स और जी20 की भूमिका बढ़ती जा रही है और निश्चित रूप से संयुक्त राष्ट्र एक ऐसा मंच हैजहां सभी मौजूदा और भविष्य के शक्तिकेंद्र देश आपस में सहयोगसमझौते और संतुलित दृष्टिकोण से काम कर सकते हैं। रूस ऐसे संतुलित दृष्टिकोण का समर्थन करता है। मुझे आपसे मिलकर खुशी हो रही है और मुझे आज की चर्चाओं से अच्छे परिणाम की उम्मीद है।

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विदेश मंत्री जयशंकर ने कहाआज की बैठक हमारे लिए एक अवसर है कि हम अपने राजनीतिक संबंधों पर चर्चा करें। साथ अपनी द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा भी करें। जयशंकर ने कहामैं राजनीतिव्यापारनिवेशरक्षाविज्ञान और प्रौद्योगिकी और लोगों के आपसी संबंधों पर विचारों के आदान-प्रदान की उम्मीद करता हूं। हमारे नेताओं ने पिछले साल जुलाई में 22वें वार्षिक शिखर सम्मेलन में और फिर कजान में मुलाकात की थी। अब हम साल के अंत में होने वाले वार्षिक शिखर सम्मेलन की तैयारी कर रहे हैं। हमारे नेताओं ने हमेशा हमें विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने का मार्गदर्शन दिया है। जैसा कि आपने भी जिक्र किया कि कल हमारी (रूसी उप प्रधानमंत्री) डेनिस मांतुरोव के साथ अंतर-सरकारी आयोग की बहुत कामयाब बैठक रही। हमने द्विपक्षीय सहयोग के कई मुद्दों पर चर्चा की और कई समाधान भी निकाले। जयशंकर ने कहाद्वितीय विश्व युद्ध के बाद से भारत और रूस के संबंध दुनिया के सबसे स्थिर और मजबूत संबंध रहे हैं। उन्होंने कहाऊर्जा के क्षेत्र में व्यापार और निवेश के जरिए सहयोग बनाए रखना भी बहुत जरूरी है।

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उल्लेखनीय है कि रूस के प्रभारी राजदूत रोमन बाबुश्किन ने भी बुधवार को कहा था कि रूस से तेल खरीदने के कारण भारत पर दिया जा रहा अमेरिकी दबाव अनुचित है। उन्होंने यह भी कहा था कि रूस के पास भारत की ओर से रूसी कच्चे तेल की खरीद के लिए अमेरिकी टैरिफ से पैदा हुई किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए एक खास रणनीति है।

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