डिजिटल हवाला के जरिए जुटा रहे हैं धन
ऑपरेशन सिंदूर में तबाह आतंकी संगठन फिर खड़े हो रहे
आतंकी ठिकाने बनाने की फिराक में मसूद अजहर
नई दिल्ली, 24 अगस्त (एजेंसियां)। ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान में तबाह हुए आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद समेत कुछ अन्य आतंकी संगठन फिर से उठने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए पूरी दुनिया के कट्टरपंथी इस्लामिक देशों, संगठनों और हस्तियों से जैश ए मोहम्मद को तेजी से धन मिलना शुरू हुआ है। केंद्रीय खुफिया एजेंसियों को इसके कई महत्वपूर्ण सुराग मिले हैं। खुफिया एजेंसियों को पता लगा है कि जैश का सरगना मसूद अजहर 300 से अधिक मरकज बनाने के लिए 390 करोड़ रुपए जुटाने में लगा है। एफएटीएफ से बचने के लिए मसूद अजहर डिजिटल वॉलेट्स का इस्तेमाल कर रहा है। यानि, डिजिटल हवाला के जरिए जैश ए मोहम्मद के पास विदेशों से धन पहुंच रहा है।
उल्लेखनीय है कि भारत ने ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान में कई आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया था। इनमें आतंकी मसूद अजहर के संगठन जैश-ए-मोहम्मद के ठिकाने भी शामिल थे। अब मसूद अजहर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ मिलकर फिर से आतंकी ठिकाने को खड़ा करने में लगा है। इसके लिए 3.9 बिलियन (390 करोड़) पाकिस्तानी रुपए इकट्ठा करने का योजना पर काम चल रहा है।
इस बार इन आतंकियों और उनके आकाओं ने अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की पकड़ में आने से बचने के लिए पैसे इकट्ठा करने का नया तरीका खोजा है। आतंकी इस बार किसी बैंक खाते में नहीं बल्कि डिजिटल वॉलेट में पैसा जुटा रहे हैं। डिजिटल वॉलेट्स परंपरागत बैंकिंग से अलग वॉलेट-टू-वॉलेट और वॉलेट-टू-कैश ट्रांसफर की सुविधा देते हैं। खुफिया एजेंसी ने गृह मंत्रालय को रिपोर्ट दी है कि जैश ए मोहम्मद धन जुटाने के लिए ईजीपैसा और साडापे जैसे पाकिस्तानी डिजिटल वॉलेट्स का इस्तेमाल कर रहा है।
पाकिस्तान आतंकियों की फंडिंग के लिए दुनिया भर में कुख्यात है। इसके चलते वह लंबे समय तक फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ग्रे लिस्ट में था। इससे बचने के लिए पाकिस्तान ने जो योजना पेश की उसमें जैश-ए-मोहम्मद पर लगाम लगाना शामिल था। पाकिस्तान ने दावा किया कि वह आतंकियों को पैसे नहीं देता है और इसके लिए उसने मसूद अजहर, उसके भाई रऊफ असगर और उसके सबसे छोटे भाई तल्हा अल सैफ के बैंक खातों पर निगरानी रखने की बात कही थी।
पाकिस्तान को इन चालों के जरिए 2022 में एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से निकलने में तो सफलता मिली लेकिन उसकी चालें कम-से-कम भारत से छिपी नहीं थीं। जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन पाकिस्तान में खूब फलते फूलते रहे और आतंक का कारोबार बिल्कुल धीमा नहीं हुआ। आतंकियों को अपना खर्च चलाने के लिए पैसे की जरूरत थी और बैंक खातों की निगरानी के चलते यह काम मुश्किल होता जा रहा था। इसके लिए अब ईजीपैसा और साडापे जैसे पाकिस्तानी डिजिटल वॉलेट्स का सहारा लिया जा रहा है।
आईएसआई और जैश 300 मस्जिदों और मरकजों के निर्माण के नाम पर 3.9 बिलियन पाकिस्तानी रुपए इकट्ठा करने की कोशिश में जुटे हैं। ऐसे ही मरकजों का इस्तेमाल आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा किया करता था। भारत की एजेंसियों का मानना है कि इस पैसे के बड़े हिस्से का इस्तेमाल आतंकियों के पालन-पोषण और आतंक के लिए हथियार खरीदने में किया जाता है। जैश का लक्ष्य है कि वह इस पैसे के जरिए 313 नए कैंप खोल दे। सैकड़ों की तादाद में नए कैंप खोलने का मकसद भारत का डर भी है। जिस तरह ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने जैश के ठिकानों को उड़ाया है, ऐसे में वो भारत को कन्फ्यूज करने के लिए बड़ी संख्या में नए कैंप खोल रहा है।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में किए गए ऑपरेशन सिंदूर में जैश के हेडक्वार्टर मरकज सुभानअल्लाह को भी उड़ा दिया गया था। साथ ही, जैश के चार अन्य ट्रेनिंग कैप मरकज बिलाल, मरकज अब्बास, महमोना जोया और सरगल भी नष्ट कर दिए गए थे। भारत के इस ऑपरेशन में 100 से अधिक आतंकी मारे गए थे।
यह पैसा आतंकी के मसूद अजहर के परिवार के सदस्यों के नाम पर बने डिजिटल वॉलेट के जरिए इकट्ठा किया जा रहा था। बैंकों के जरिए लेन-देन ना होने पर पाकिस्तान यह कहकर अपनी जान छुड़ा सकता था कि जैश को मिलने वाले धन में कटौती हो गई है जबकि असल में भारी संख्या में पैसा आतंकियों के पास पहुंच रहा है। खुफिया एजेंसियों को पांच ऐसे वॉलेट का पता चला है जिसका जैश से सीधा संबंध है। एक साडापे का खाता मसूद अजहर के भाई तल्हा अल सैफ (तल्हा गुलजार) के नाम पर था, जो पाकिस्तानी मोबाइल नंबर +92 3025xxxx56 से जुड़ा था। यह नंबर जैश के हरिपुर जिला कमांडर अफताब अहमद के नाम पर रजिस्टर्ड था। मसूद अजहर के बेटे अब्दुल्ला अजहर के मोबाइल नंबर +92 33xxxx4937 से भी एक इजीपैसा वॉलेट जुड़ा हआ था। वहीं, गाजा में मदद के नाम पर भी एक वॉलेट चलाया जा रहा था। यह वॉलेट +92xxxx195206 नंबर से चलाया जा रहा था और खालिद अहमद के नाम पर था। जबकि इसे मसूद अजहर का बेटा हम्माद अजहर संचालित कर रहा था।
ऑनलाइन पैसा लेने के अलावा जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी जुमे की नमाज के दौरान भी मस्जिदों से पैसा इकट्ठा कर रहे हैं। इन्हें इस तरह दिखाया जाता है कि इस पैसे का इस्तेमाल गाजा में मदद के लिए किया जाएगा लेकिन असल में इस पैसे को जैश अपने आतंकी इरादों को पूरा करने के लिए ही जुटा रहा था। जैश के कमांडर वसीम चौहान (उर्फ वसीम खान) का एक वीडियो भी सामने आया था जिसमें वह एक जुमे की नमाज के बाद इकट्ठा हुए पैसे को गिन रहा था। मसूद अजहर और उसके करीबियों द्वारा चलाया जाने वाला एक ट्रस्ट अल-रहमत भी आतंकी फंडिग के इस अभियान में एक अहम कड़ी बन गया है। यह ट्रस्ट गुलाम मुर्तजा के नाम से संचालित नेशनल बैंक ऑफ पाकिस्तान के एक खाते (खाता नंबर 105XX9) के जरिए धन इकट्ठा कर रहा था। यह ट्रस्ट हर साल जैश के फंड में करीब 100 करोड़ पाकिस्तान रुपए का योगदान देता है।
मसूद अजहर का परिवार एक समय में 7 से 8 वॉलेट्स ऑपरेट करता है और हर 4 महीने बाद उन्हें बदल देता है। जब किसी वॉलेट में बड़ी रकम इकट्ठी हो जाती है तो उसे छोटे-छोटे हिस्सों में बांटकर नकद निकाल लिया जाता है। बताया जा रहा है कि हर महीने करीब 30 नए वॉलेट्स खोले जाते हैं। ये डिजिटल वॉलेट्स डिजिटल हवाला की तरह काम करते हैं, जो बिना बैंकिंग नेटवर्क के पैसों का लेनदेन संभव बनाते हैं। यही कारण है कि जैश का यह नेटवर्क जांच एजेंसियों और अंतरराष्ट्रीय निगरानी संस्थाओं की पकड़ से बच निकलता है। मौजूदा वक्त में डिजिटल वॉलेट्स के जरिए जैश ए मोहम्मद का लेनदेन करीब 80 से 90 करोड़ पाकिस्तानी रुपए का हुआ है।
खुफिया एजेंसियों को मिली जानकारी के मुताबिक, जैश ने अपने सक्रिय गुर्गों और प्रॉक्सी नेटवर्क को पूरी तरह से एक्टिव कर दिया है और अब फेसबुक, व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म्स के जरिए भी धन उगाही की योजना बनाई गई है। इन प्लेटफॉर्म्स पर जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े प्रॉक्सी अकाउंट्स और सीधे इसके कमांडरों द्वारा संचालित अकाउंट्स से लगातार पोस्टर, उकसाने वाले वीडियो और यहां तक कि मसूद अजहर द्वारा लिखी गई चिट्ठी भी शेयर की जा रही है। इन पोस्ट्स में यह दावा किया जा रहा है कि जैश-ए-मोहम्मद 313 मरकज का निर्माण कर रहा है। ऐसे हर मरकज के लिए 12.5 मिलियन पाकिस्तानी रुपए की जरूरत बताई है। यह फंड रेजिंग केवल पाकिस्तान तक सीमित नहीं है। जैश-ए-मोहम्मद ने विदेशों में बसे पाकिस्तानी नागरिकों से भी पैसे देने की मांग की है। जाहिर है कि इस रकम का इस्तेमाल आतंकियों की ट्रेनिंग, हथियारों की सप्लाई और नेटवर्क फैलाने पर ही खर्च किया जाएगा।
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