तू उनके दिखाए स्वर्ग को उतार ला जमीन पर...

भले नहीं शरीर हो, पर रूह बा'बुलंद है, इसमें तू यकीन कर

तू उनके दिखाए स्वर्ग को उतार ला जमीन पर...

शुभ-लाभ शपथ

प्रभात रंजन दीन

मशहूर गीतकार शैलेंद्र ने लिखा था... तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत में यकीन कर, कहीं भी हो स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर। शुभ-लाभ प्रकाशन समूह के अभिभावक परम श्रद्धेय श्री गोपाल जी अग्रवाल के व्यक्तित्व को प्रतिमा की तरह साक्षात सामने रख कर उनकी स्मृतियों को साक्षी बनाएं तो शैलेंद्र की उन पंक्तियों में स्वाभाविक बदलाव कुछ यूं हो जाता है... तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत में यकीन कर / भले नहीं शरीर हो, पर रूह बा'बुलंद है, इसमें तू यकीन कर तू उनके दिखाए स्वर्ग को उतार ला जमीन पर...

श्री गोपाल जी अग्रवाल से मेरी मुलाकात वर्ष 2021 में अक्टूबर महीने के उत्तरार्ध में हैदराबाद के एक रेस्तरां में हुई थी। उन्होंने दिल्ली प्रवास के दौरान शुभ-लाभ अखबार में पत्रकारीय-बेहतरी की चिंता अपने एक पत्रकार मित्र रजत अमरनाथ से साझा की थी। रजत ने उन्हें मेरा नाम सुझाया। गोपाल जी ने मुझे फोन किया और मुझे हैदराबाद बुलाया... सब कुछ ऐसे हुआ कि जैसे प्रकृति ने पहले से इसका आयोजन कर रखा हो। आज गोपाल जी नहीं हैं और रजत भाई उनके पहले ही प्रयाण कर चुके। हैदराबाद के चटनी रेस्टोरेंट के कक्ष में आदरणीय गोपाल जी से परिचय की औपचारिकता के बाद मैंने उनसे बेसाख्ता पूछा था, अखबार तो घाटे का व्यापार होता है, तो किस शत्रु ने आपको अखबार निकालने की सलाह दी थी? मेरी पत्रकारीय-विधा ने उन्हें कुरेदा और मुझे उसी पल गोपाल जी के विराट व्यक्तित्व की झलक मिल गई। उन्होंने कहा, अखबार निकालना मेरा व्यापार नहीं, मेरा सरोकार है, मेरा जुनून है जिसे अंग्रेजी में पैशन कहते हैं। उनका ध्यान से कहना जारी था और मेरा ध्यान से सुनना... उन्होंने कहा, अगर यह जुनून न हो तो भावी पीढ़ियां जान ही नहीं पाएंगी कि अखबार क्या होता है। सुबह-सुबह अखबार पढ़ने का संस्कार ही समाज से विलुप्त हो जाएगा। पीढ़ियों को सूचित और शिक्षित करने का प्रथम दायित्व तो अखबार का ही होता है। सुबह अखबार पढ़ना और अखबार के जरिए देश-दुनिया और समाज के साथ-साथ साहित्य को जानना हमने अपने बुजुर्गों से ही तो सीखा है! फिर वह दायित्व हम कैसे छोड़ दें! मैंने तत्काल और तत्क्षण यह निर्णय ले लिया कि मुझे गोपाल जी के साथ काम करना है... और मैंने उन्हें फौरन ही अपना निर्णय सुना भी दिया।

इस तरह हिंदी दैनिक शुभ-लाभ, अंग्रेजी दैनिक सिटिजंस ईवनिंग और तेलुगु दैनिक ध्वनि के साथ मेरी यात्रा शुरू हो गई। वही प्रतिबद्धता, वही अनुशासन, वही जुनून जो गोपाल जी में था, मैंने उसे अखबार में हूबहू उतारने की कोशिश की। वह कोशिश आदरणीय गोपाल जी के दिवंगत होने के बाद भी जारी है। यह एक मशाल है जो एक के बाद दूसरे में फिर तीसरे में और क्रमानुसार हस्तांतरित होती हुई अपनी प्रकाश-यात्रा जारी रखती है। मैंने अपने पत्रकारीय जीवन में तमाम बड़े और मझोले अखबारों में काम करने के अनुभव बटोरे हैं। तमाम पदों की जिम्मेदारियां सीखी हैं। कई अखबारों के शुभारंभ का यज्ञ किया है और दर्जनों अखबारों के मालिकों का संरक्षण और विश्वास जीता है... लेकिन आदरणीय गोपाल जी अग्रवाल की तो बात ही अलग रही। अखबार में खबरों के चयन से लेकर विज्ञापन के स्थान-चयन तक का सम्पूर्ण दायित्व आज के युग में कौन चैयरमैन किसे सौंपता है! खबरों को लेकर साहस इतना कि वे कहते, मैं जेल जाने को तैयार हूं... राष्ट्र और धर्म को लेकर उनकी व्यापक विचारधारा शुभ-लाभ प्रकाशन समूह के अखबारों की प्राण-ऊर्जा के रूप में प्रकाशित और प्रसारित हो रही है।

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स्वस्थ हों या अस्वस्थ, गोपाल जी सदैव एक जैसे रहे। स्वस्थ में भी मस्त और अस्वस्थ में और भी ज्यादा मस्त... ताकि दूसरों के मनोबल में कोई कमी न रहे। उनकी किडनियों ने जब काम करना बंद कर दिया, तब भी गोपाल जी ने अपना काम नहीं रोका, बल्कि काम की गति और बढ़ा दी। हैदराबाद के साथ-साथ दिल्ली, बेंगलुरु, तिरुपति, गुवाहाटी, लखनऊ और पटना से शुभ-लाभ का संस्करण शुरू करने को लेकर योजना-बैठकों का सिलसिला चलने लगा। लखनऊ से शुभ-लाभ टाइटल को जिला प्रशासन और दिल्ली स्थित समाचार पत्रों के महानिबंधक की औपचारिक मंजूरी भी मिल गई। बेंगलुरु प्रशासन ने भी औपचारिक मंजूरी देकर उसे पंजीयन के लिए दिल्ली भेज दिया। दिल्ली से तो प्रकाशन शुरू भी हो गया। हैदराबाद से शुभ-लाभ के साथ-साथ अंग्रेजी दैनिक सिटिजंस ईवनिंग और तेलुगु दैनिक ध्वनि का भी प्रकाशन साथ-साथ गतिमान रहा। गोपाल जी डायलिसिस कराते और निकल पड़ते। कभी दिल्ली, कभी मुंबई, कभी बेंगलुरु, कभी तिरुपति, कभी राजस्थान तो कभी नागपुर। हां, नागपुर से भी शुभ-लाभ का संस्करण निकालने के लिए गोपाल जी बड़े उत्साही दिखते और कहते, नागपुर मेरी ससुराल है, वहां से भी संस्करण निकालना है।

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देश-दुनिया की खबरों को लेकर गोपाल जी की संलग्नता आत्मिक स्तर पर दिखती। कभी किसी मसले पर अत्यंत उत्तेजित होकर कहते इसे खूब हाईलाइट करिए और कभी अपने अखबार में प्रकाशित खास खबर या विश्लेषण पर प्रसन्न होकर फोन करते और उत्साह बढ़ाते। अपने अखबारी सहकर्मियों का मनोबल बनाए रखने के लिए गोपाल जी उनकी व्यक्तिगत आवश्यकताओं का भी ख्याल रखते। अखबार के सहकर्मियों की जरूरत के समय उनकी आर्थिक मदद करने का जज्बा तो देश के तमाम अखबार मालिकों को सीखना चाहिए। यहां तक कि अखबार छोड़ कर जा चुके पूर्व सहयोगी भी उनसे आर्थिक मदद मांगने से नहीं शर्माते थे और गोपाल जी उनकी मदद करने से नहीं चूकते थे। व्यक्तिगत स्तर से लेकर सांगठनिक स्तर तक गोपाल जी समाजसेवा के विभिन्न आयामों से बेहद सक्रिय तौर पर जुड़े रहे और समर्थ लोगों को सेवाधर्म के प्रति प्रोत्साहित (मोटिवेट) करते रहे।

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आदरणीय गोपाल जी ने 20 अगस्त की रात को दफ्तर से वर्चुअल मीटिंग की। मैं लखनऊ में था। संपादकीय विभाग के सारे स्टाफ उस मीटिंग में मौजूद थे। उसमें भी गोपाल जी के सामने अखबार का प्रकाशन ही मुद्दा था। वे प्रिंटिंग के समय को लेकर कुछ परिवर्तन चाहते थे। अखबार के विभिन्न पृष्ठों के समाचार-संयोजन से लेकर उसकी बनावट पर लगने वाले समय पर बात की, अपने सुझाव दिए और मेरे सुझाव सुने। विस्तृत वार्ता के बाद फिर एक सुस्पष्ट समय-नीति (डेड-लाइन) निर्धारित हुई। 21 अगस्त की रात को भी गोपाल जी के साथ कुछ नए संपादकीय सहयोगियों को लाने के मसले पर बात हुई। ...और गोपाल जी एवं मेरे भौतिक शरीर के बीच वही आखिरी बात हुई। यानि, गोपाल जी का जज्बा उनकी जिजिविषा के साथ अन्योन्याश्रित था। 22 अगस्त को आदरणीय गोपाल जी ने अपना भौतिक शरीर त्याग दिया... अचानक मिली इस खबर ने हम सबको झकझोर कर रख दिया। भौतिक रूप से माता-पिता और अभिभावक का होना कितना जरूरी होता है, यह उनके विदा होने के बाद अनुभव होता है और बहुत सालता है। हम उसी अनुभव के व्यथा-काल से गुजर रहे हैं। शुभ-लाभ परिवार के हम सभी सदस्य श्री गोपाल जी अग्रवाल के प्रति अपनी आत्मिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उनकी मशाल को हमेशा प्रज्जवलित रखना हम सब का समवेत संकल्प हो... इसे व्यवहार में उतारना ही उस ग्रैंड-गार्डियन के प्रति सच्ची और नैष्ठिक श्रद्धांजलि होगी...

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