स्वयंसेवकों की हत्या के 15 साल बाद भी नहीं मिला न्‍याय

आरएसएस के स्वयंसेवकों का कत्लगाह बना केरल, सैकड़ों मारे गए

स्वयंसेवकों की हत्या के 15 साल बाद भी नहीं मिला न्‍याय

हत्याकांड में शामिल अब्बास और शमील समेत 14 आरोपी बरी

कन्नूर (केरल), 10 अक्टूबर (एजेंसियां)। केरल में पंद्रह साल पहले आरएसएस के दो कार्यकर्ताओं की हत्या के मामले ने राज्य की कानून-व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया था। अब इसी मामले में अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। कन्नूर के थालास्सेरी अतिरिक्त सत्र न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सरकार अभियोजन पक्ष ठोस सबूत पेश करने में विफल रही। अब सवाल उठता है कि आखिर ये सभी हत्‍याकांड में शामिल नहीं थे तो हत्‍या किसने कीक्‍या पुलिस ने गलत नाम एफआईआर में दर्ज किएयदि ऐसा है तो पुलिस पर कार्रवाई के निर्देश अदालत ने क्‍यों नहीं दिए और क्‍यों नहीं राज्‍य सरकार की इस मामले में जिम्‍मेदारी तय कीकोर्ट का निर्णय बुधवार को सामने आया है।

इस हत्याकांड में 16 आरोपी थे जिसमें से दो की मौत ट्रायल के दौरान हो चुकी हैजबकि बाकी 14 आरोपी केके मुहम्मद शफीके शिनोजटी सुजीतटीके सुमेशराहुलकेवी विनेशपीवी विजिथफैसलसारिशटीपी शमीलएके शम्मासकेके अब्बासएनके सुनील कुमार उर्फ कोडी सुनीऔर टीपी सजीर अब अदालत से बरी कर दिए गए हैं।

राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ताओं विजित और शिनोज पर 28 मई 2010 को पल्लूर में हमला हुआ था। वे माहे की एक अदालत में पेश होकर घर लौट रहे थे। दोनों पर बम से हमला किया गया था। सामने आया था कि यह हमला सीपीएम से जुड़े कार्यकर्ताओं ने संघ के प्रति नफरत और बदले की भावना से किया था। इस संबंध में विश्‍व हिन्‍दू परिषद की प्रतिक्रिया सामने आई है। विहिप के राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता विनोद बंसल ने कहाकेरल से सामने आया ये निर्णय न्‍यायालय से अधिक तंत्र की विफलता की पोल खोलता हैयह राज्‍य पर जिहादियों और कम्‍युनिस्टों के शिकंजे का भी द्योतक है। अदालत ने कहापुलिस सही साक्ष्‍य प्रस्‍तुत करने में विफल रही हैजबकि साक्ष्‍य प्रस्‍तुत करना सरकारी तंत्र का काम हैजिसमें कि यहां देखा गया कि जानबूझकर उदासीनता बरती गई और अपराधी मुक्‍त हो गए। उन्‍होंने कहाअब राज्‍य सरकार को अविलम्‍ब इसके विरुद्ध केरल हाईकोर्ट में अपील फाइल करके दोषियों को मुत्‍यु दंड दिलाकर पीड़‍ित परिवारों के साथ खड़े होने का काम करना चाहिए। इससे ऐसे निर्मम कांड करनेवालों के मन में डर पैदा होगा। वहीं सरकार और न्‍यायव्‍यवस्‍था के प्रति भी विश्‍वास को बहाल किया जा सकेगा।

इस प्रकरण में केरल में रह रहे वीएचपी के राष्‍ट्रीय पदाधिकारी वेंकटेश कुमार का कहना है कि राज्‍य में लगातार स्‍वयंसेवकों को निशाना बनाया जा रहा हैविशेषकर उत्‍तर केरल में ऐसी घटनाएं आए दिन हो रही हैं। आरएसएस कार्यकर्ताजिसकी पहचान शाजू के रूप में हुईएक मंदिर उत्सव में जाते समय हमला किया गया। संघ के कार्यकर्ता श्रीनिवासन की हत्या पलक्कड़ जिले में हुई। केरल के अलाप्पुझा के वायलार ग्राम पंचायत के नागमकुलंगरा में 22 वर्षीय आरएसएस शाखा मुख्य शिक्षक आर नंदू उर्फ नंदू कृष्णा की हत्या की गई। रंजीत श्रीनिवासन की बेहरमी से हत्या कर दी गई थी।

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चित्तरिप्परम्बा निवासी 17वीं मील शाखा के मुख्य शिक्षक श्यामा प्रसाद की कोमेरी स्थित बकरी फार्म के पास मार दिया गया। इसी तरह त्रिशूर में बाइक से आईटीआई कॉलेज से लौटते समय आनंदन की चार सीपीआईएम के कार्यकर्ताओं ने बेरहमी से पिटाई की।पुलिस अस्पताल ले गईजहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। केटी जयकृष्‍ण मास्‍टर को तो स्‍कूल में पढ़ाते वक्‍त बच्‍चों के सामने ही मार दिया गया था! पुलिस साक्ष्‍य ठीक ढंग से नहीं रखतीइसलिए ज्‍यादातर मामलों में अपराधी न्‍यायालय से छूट जाते हैं। उन्‍होंने कहा कि इस मामले में भी यही हुआ हैअपराधी साक्ष्‍यों के अभाव में छोड़ दिए गएहम इस मामले को ऊपरी अदालत में लेकर जाएंगे।

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केरल में राज्य पुलिसमानव अधिकार संगठनों और कई स्वतंत्र जांच के रिकॉर्ड बताते हैं कि 1970-1990 के बीच लगभग 60 आरएसएस कार्यकर्ताओं की हत्या की गई। 1990-2010 के दौरान 140 से अधिक राजनीतिक हत्याएं हुईं। 2010-2025 के बीच तकरीबन 100 नई वारदातें रिकॉर्ड की गईंजिनमें आरएसएस और भाजपा कार्यकर्ता थे। न्यायालयों में अधिकांश मामलों में साक्ष्य की कमीगवाहों के मुकरने और राजनीतिक दबाव के चलते सजा का प्रतिशत बेहद कम है। सरकारी आंकड़ों के अनुसारराजनीतिक हत्या के 80 प्रतिशत मामलों में आरोपियों को बरी कर दिया गया है।

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पीड़ित परिवारों और समर्थकों का कहना है कि अदालत का यह फैसला न केवल हत्या के दोषियों को राहत देता है बल्कि राज्य की न्याय प्रणाली पर भी गहरा प्रश्नचिह्न लगाता है। कन्नूर से लेकर कोच्चि तक इस पर प्रश्न उठ रहे हैं कि अगर इन 16 लोगों ने हत्या नहीं कीतो फिर हमारे भाइयों को किसने माराकई लोगों ने इसे प्रणालीगत विफलता कहा है। उनका कहना है कि पिछले 50 वर्षों से हमारे सैकड़ों कार्यकर्ता मारे जा चुके हैंलेकिन दोष सिद्ध होने की घटनाएं गिनी-चुनी हैं। पिछले 50 वर्षों में 300 से अधिक संघ स्‍वयंसेवकों की हत्यासैकड़ों मुकदमेऔर बार-बार के बरी आदेश यह सब एक बड़े संवैधानिक प्रश्न की ओर इशारा करते हैंक्या राज्य न्याय देने में विफल रहा है या राजनीति ने न्याय को अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया हैयह सवाल अनुत्तरित है कि अगर इन हत्याओं को किसी ने अंजाम नहीं दियातो फिर मरने वाले स्‍वयंसेवकों को किसने और क्‍यों मारा?

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