एक फैसले से बच गया 600 परिवारों का आशियाना
केरल हाईकोर्ट का अहम निर्णय, वक्फ बोर्ड को लगी कड़ी फटकार
हाईकोर्ट ने पूछा, ताजमहल व लाल किला भी हड़प लोगे क्या?
मनमाने तरीके से सम्पत्तियों को वक्फ घोषित करना गैरकानूनी
तिरुअनंतपुरम, 11 अक्टूबर (एजेंसियां)। केरल हाईकोर्ट ने मुनंबम वक्फ भूमि विवाद पर सुनवाई करते हुए राज्य वक्फ बोर्ड को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने कहा कि अगर बिना सही प्रक्रिया के किसी सम्पत्ति को वक्फ घोषित करने की इजाजत दी गई, तो कल को कोई ताजमहल, लालकिला, विधानसभा भवन या यहां तक कि खुद हाईकोर्ट की इमारत को भी वक्फ सम्पत्ति बता सकता है। यह फैसला मुख्य न्यायाधीश एसए धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति श्याम कुमार वीएम की खंडपीठ ने सुनाया। हाईकोर्ट ने कहा कि मनमाने तरीके से सम्पत्तियों को वक्फ घोषित करना संविधान के अनुच्छेद 300-ए (सम्पत्ति के अधिकार), अनुच्छेद 19 (व्यवसाय की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और आजीविका का अधिकार) का उल्लंघन है। अदालत ने कहा कि कोई भी न्यायालय ऐसी काल्पनिक और अनुचित शक्ति को मंजूरी नहीं दे सकता।
मामला मुनंबम की उस जमीन से जुड़ा है जिसे 1950 में सिद्दीक सैद नामक व्यक्ति ने फारूक कॉलेज को दान में दी थी। उस समय यह जमीन करीब 404 एकड़ थी लेकिन समुद्री कटाव के कारण अब यह लगभग 135 एकड़ रह गई है। कॉलेज ने इस जमीन पर बसे लोगों को बाद में प्लॉट बेच दिए थे और सभी दस्तावेज़ों में इसे सामान्य दान की सम्पत्ति बताया गया था, वक्फ नहीं। हालांकि, लगभग 69 साल बाद, 2019 में केरल वक्फ बोर्ड ने अचानक इस जमीन को वक्फ सम्पत्ति घोषित कर दिया और पुराने सौदों को अवैध बता दिया। इससे करीब 600 परिवार प्रभावित हुए, जिन्होंने इसका विरोध किया।
राज्य सरकार ने नवंबर 2024 में न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सीएन रामचंद्रन नायर की अध्यक्षता में एक जांच आयोग बनाया था, जिसे वक्फ संरक्षण समिति ने अदालत में चुनौती दी। मार्च 2025 में एकल पीठ ने आयोग को रद्द कर दिया, जिसके बाद सरकार ने डिवीजन बेंच में अपील की। डिवीजन बेंच ने कहा कि यह भूमि दानपत्र के तहत दी गई थी, न कि वक्फ डीड के तहत। वक्फ बोर्ड ने केवल दस्तावेज के शीर्षक में वक्फ शब्द देखकर इसे वक्फ सम्पत्ति घोषित कर दिया, जबकि कानूनी शर्तें पूरी नहीं थीं। अदालत ने इसे दुर्भावनापूर्ण और स्वार्थपूर्ण कार्रवाई बताया और कहा कि बोर्ड ने यह कदम भूमि की बढ़ी हुई कीमत को देखकर उठाया है। अंत में अदालत ने स्पष्ट किया कि वक्फ घोषित करने की प्रक्रिया नागरिकों के अधिकारों को सीधे प्रभावित करती है, इसलिए अदालत इसकी वैधता की जांच करने के लिए पूरी तरह सक्षम है।
केरल हाईकोर्ट ने कहा कि केरल वक्फ बोर्ड का 2019 में मुनंबम की विवादित जमीन को वक्फ सम्पत्ति घोषित करने का फैसला गलत था। मोहम्मद सिद्दीक सैट द्वारा 1950 में फारूक कॉलेज मैनेजमेंट कमेटी के पक्ष में बनाया गया एंडोमेंट डीड वक्फ डीड नहीं था, बल्कि एक साधारण गिफ्ट डीड था। कोर्ट ने कहा कि इस दस्तावेज में कहीं भी यह नहीं दिखाया गया कि सम्पत्ति को हमेशा के लिए अल्लाह के नाम पर समर्पित किया गया था। इसलिए इसे वक्फ सम्पत्ति नहीं कहा जा सकता। हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार की दो याचिकाओं को स्वीकार कर लिया और सिंगल बेंच के पुराने आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें सरकार द्वारा गठित जांच आयोग को अवैध बताया गया था।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वक्फ की परिभाषा में स्थायी समर्पण (परमानेंट डेडिकेशन) का होना आवश्यक है। इसका मतलब यह होता है कि कोई व्यक्ति अपनी सम्पत्ति का स्वामित्व पूरी तरह से और हमेशा के लिए अल्लाह के नाम कर दे, ताकि उस सम्पत्ति का उपयोग केवल मजहबी, पाक या परोपकारी उद्देश्यों के लिए ही हो। हाईकोर्ट ने पाया कि सिद्दीक सैट द्वारा फारूक कॉलेज को दी गई सम्पत्ति में कॉलेज को यह अधिकार दिया गया था कि वह जमीन को बेच सकता है, लीज पर दे सकता है या अन्य किसी तरह उपयोग में ला सकता है। जब किसी सम्पत्ति को बेचने या ट्रांसफर करने की अनुमति दी जाती है, तो वह सम्पत्ति वक्फ नहीं रह जाती, बल्कि वह सार्वजनिक चैरिटेबल सम्पत्ति के रूप में मानी जाती है।
हाईकोर्ट ने कहा कि 1950 का यह दस्तावेज स्थाई समर्पण की भावना को प्रदर्शित नहीं करता, बल्कि इसमें सम्पत्ति के पुनः वापसी का प्रावधान था। इसमें लिखा था कि अगर सम्पत्ति का कोई हिस्सा बचा रह जाता है तो वह वापस दाता या उसके वारिसों को लौटाया जा सकता है। कोर्ट ने इसे वक्फ की मूल भावना के विपरीत बताया और कहा कि यह सिर्फ एक साधारण उपहार था, जिसे फारूक कॉलेज के प्रबंधन के लिए दिया गया था। इस फैसले में हाईकोर्ट ने केरल वक्फ बोर्ड की 2019 की कार्रवाई को भी कठोर शब्दों में फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि लगभग 69 साल तक न तो सिद्दीक सैट के वारिसों ने और न ही फारूक कॉलेज ने इस सम्पत्ति को वक्फ माना था। इसके बावजूद वक्फ बोर्ड ने 2019 में एकतरफा तरीके से इसे वक्फ सम्पत्ति घोषित कर दिया, जो पूरी तरह मनमानी और अवैध कार्रवाई थी। कोर्ट ने इसे भूमि हड़पने की कोशिश बताया। जजों ने टिप्पणी की कि वक्फ बोर्ड ने बिना किसी विधिक जांच या सभी हितधारकों को शामिल किए बिना यह कदम उठाया, जो न केवल अव्यवहारिक बल्कि असंवैधानिक भी है। हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को मुनम्बम भूमि विवाद की जांच के लिए आयोग गठित करने का पूरा अधिकार है। यह आयोग एक तथ्य खोजने वाली संस्था होगी, जिसका मकसद विवाद का समाधान निकालना है, न कि स्वामित्व या टाइटल पर फैसला देना। राज्य सरकार ने 27 नवंबर 2024 को रिटायर्ड जस्टिस सी एन रामचंद्रन नायर की अध्यक्षता में यह आयोग गठित किया था, ताकि इस लंबे समय से चल रहे विवाद का स्थायी समाधान निकाला जा सके।
मुनंबम भूमि विवाद केरल के एर्नाकुलम जिले में करीब 404 एकड़ जमीन से जुड़ा है। इस इलाके में लगभग 600 हिंदू और ईसाई परिवार दशकों से रह रहे हैं। वक्फ बोर्ड का दावा है कि यह जमीन 1950 में वक्फ सम्पत्ति के रूप में दर्ज की गई थी, जबकि स्थानीय निवासियों का कहना है कि उन्होंने यह जमीन फारूक कॉलेज से कानूनी रूप से खरीदी थी। यह विवाद अब एक राजनीतिक मुद्दे में बदल गया है। भाजपा नेताओं ने वक्फ बोर्ड पर सार्वजनिक और निजी जमीनों पर कब्जा करने का आरोप लगाया है। केंद्रीय मंत्री सुरेश गोपी ने इसे बर्बरता कहा और कहा कि संसद में ऐसे कदमों को रोकने के लिए नया कानून लाया जाएगा। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने भाजपा के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि उनकी सरकार मुनम्बम के लंबे समय से रह रहे लोगों के साथ है और उनकी सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए काम कर रही है।
दरअसल, वक्फ विवाद कोई नया विषय नहीं है। देशभर में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां वक्फ बोर्ड ने निजी या सरकारी सम्पत्तियों पर दावा ठोका है। इसमें तमिलनाडु के कुछ गांव, सूरत की सरकारी इमारतें, बेंगलुरु का ईदगाह मैदान, हरियाणा का जठलाना गांव और हैदराबाद का एक पांच सितारा होटल तक शामिल हैं। वक्फ द्वारा जमीनों पर कब्जा करने के तीन सामान्य तरीके हैं। किसी जमीन को कब्रिस्तान बताना, उस पर मजार या दरगाह बनाना और सार्वजनिक भूमि पर नमाज पढ़ना शुरू करना। जब किसी स्थान पर लगातार मजहबी गतिविधियां होने लगती हैं, तो वक्फ बोर्ड उस जगह को वक्फ सम्पत्ति के रूप में पंजीकृत करने की मांग कर देता है।
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