हंसी के सम्राट सतीश शाह: हर किरदार में जान फूंक देने वाले हास्य कलाकार को सलाम!

हंसी के सम्राट सतीश शाह: हर किरदार में जान फूंक देने वाले हास्य कलाकार को सलाम!

मुंबई, 25 अक्टूबर (वार्ता)। हिंदी सिनेमा और टेलीविजन की दुनिया में अगर किसी अभिनेता ने अपनी जबरदस्त हास्य प्रतिभा, संवेदनशील अभिनय और टाइमिंग के जादू से दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई, तो वह हैं सतीश शाह। वह ऐसे कलाकार हैं, जिन्होंने हर बार दर्शकों को हंसाया, गुदगुदाया और भावनाओं के संगम में डुबोया। चाहे फिल्मों का पर्दा हो या टीवी का छोटा मंच — सतीश शाह ने हर जगह अपनी छाप छोड़ी।


🎬 शुरुआत एक संयोग से, पर बना जीवन का मार्ग

25 जून 1951 को जन्मे सतीश शाह का परिवार मूल रूप से गुजरात के मांडवी का रहने वाला था। पिता मुंबई में छोटा-सा व्यवसाय चलाते थे। बचपन में उन्हें अभिनय से नहीं बल्कि खेल-कूद से लगाव था। क्रिकेट, बेसबॉल, हाई जंप और लॉन्ग जंप में वह अपने स्कूल के चैंपियन थे।

एक बार स्कूल के वार्षिक समारोह में कलाकारों की कमी होने पर हिंदी शिक्षक ने उन्हें नाटक में शामिल कर लिया। वह घबरा गए, पर शिक्षक के कहने पर उन्होंने दर्शकों की ओर देखे बिना संवाद बोले — और नाटक खत्म होते ही उन्हें स्टैंडिंग ओविएशन मिला। इसी क्षण उन्होंने तय कर लिया कि अब अभिनय ही उनका जीवन बनेगा।


🎭 एफटीआईआई से निखरी कला, बड़े पर्दे की ओर कदम

कॉलेज के दौरान उन्होंने नाटकों में काम जारी रखा और फिर पहुंचे पुणे के फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) में, जहां उनकी अभिनय कला को नई ऊंचाई मिली।
सतीश शाह ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 1970 में “भगवान परशुराम” से की। शुरुआती फिल्में गमन (1979), अरविंद देसाई की अजीब कहानी (1978) और उमराव जान (1981) जैसी गंभीर फिल्मों से हुईं।

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लेकिन असली पहचान उन्हें मिली 1983 में प्रदर्शित क्लासिक फिल्म “जाने भी दो यारों” से। इस फिल्म में उनका मृतक व्यक्ति वाला किरदार कोरबस्ट ह्यूमर का प्रतीक बन गया। इसके बाद तो उन्होंने 200 से अधिक फिल्मों में अपनी हास्य प्रतिभा से दर्शकों को दीवाना बना दिया।

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📺 छोटे पर्दे पर भी कमाल का जादू

दूरदर्शन के स्वर्ण युग में उन्होंने ‘ये जो है जिंदगी’ (1984) से इतिहास रच दिया। इस शो के 55 एपिसोड्स में 55 अलग-अलग किरदार निभाना किसी भी कलाकार के लिए असंभव-सा था, लेकिन सतीश शाह ने यह कर दिखाया।

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इसके बाद ‘साराभाई वर्सेज साराभाई’ ने उन्हें एक कल्ट कॉमेडी आइकन बना दिया। इंद्रवदन साराभाई का उनका किरदार आज भी दर्शकों की स्मृतियों में ज़िंदा है।

टीवी शो ‘घर जमाई’ और कॉमेडी सर्कस में जज की भूमिका में उन्होंने दर्शकों को खूब हंसाया।


🎞️ सिनेमा में हास्य का गंभीर पक्ष

सतीश शाह का जादू फिल्मों में भी निरंतर बरकरार रहा। उन्होंने दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे, हम आपके हैं कौन, हम साथ साथ हैं, मैं हूं ना, फना, कल हो ना हो, ओम शांति ओम और मालामाल जैसी सुपरहिट फिल्मों में अपनी उपस्थिति से हर दृश्य को जीवंत बना दिया।

उनकी खासियत थी — हर किरदार में सहजता और सच्चाई
वह कभी ओवरएक्ट नहीं करते थे, बल्कि अपनी नेचुरल एक्सप्रेशन और वाक्य-टाइमिंग से दर्शकों को हंसा जाते थे।


❤️ निजी जीवन में सादगी, प्रोफेशन में अनुशासन

सतीश शाह ने वर्ष 1972 में मधु शाह से शादी की। दोनों की लव मैरिज हुई थी और यह जोड़ी हमेशा मनोरंजन जगत में अनुशासन और आदर का उदाहरण बनी रही।

सतीश शाह ने अभिनय को कभी सिर्फ पेशा नहीं, बल्कि आनंद और साधना का माध्यम माना। उनके लिए हंसी सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि जीवन जीने का दर्शन थी।


🌟 विरासत जो अमर है

हिंदी सिनेमा और टीवी जगत में सतीश शाह ने जो विरासत छोड़ी है, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणास्रोत है।
उनके हास्य में संवेदना थी, अभिनय में सच्चाई थी, और संवादों में जीवन की सहजता

आज भी जब दर्शक ‘साराभाई वर्सेज साराभाई’ या ‘जाने भी दो यारों’ देखते हैं, तो हंसी के साथ एक बात ज़रूर कहते हैं —

“सतीश शाह जैसा कोई नहीं!”

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