भारत ने तैयार की 300 प्रोडक्ट की सूची, रूस कभी नहीं भूलेगा यह रणनीतिक ‘दोस्ती का एहसान’

भारत ने तैयार की 300 प्रोडक्ट की सूची, रूस कभी नहीं भूलेगा यह रणनीतिक ‘दोस्ती का एहसान’

नई दिल्ली, 15 दिसम्बर,(एजेंसियां)। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के हालिया भारत दौरे के बाद भारत ने एक ऐसा रणनीतिक कदम उठाया है, जो आने वाले वर्षों में भारत–रूस व्यापारिक रिश्तों की दिशा ही बदल सकता है। भारत ने रूस को निर्यात करने के लिए 300 से अधिक हाई-पोटेंशियल उत्पादों की एक विस्तृत सूची तैयार कर ली है। यह पहल सिर्फ व्यापार बढ़ाने की कोशिश नहीं है, बल्कि इसके पीछे डॉलर-आधारित वैश्विक व्यवस्था से बाहर निकलने, स्थानीय मुद्राओं में व्यापार और दोनों देशों के बीच बढ़ते ट्रेड असंतुलन को कम करने की स्पष्ट रणनीति भी शामिल है।

भारत और रूस की दोस्ती को अक्सर “पुरानी और भरोसेमंद” कहा जाता है। रक्षा क्षेत्र से लेकर ऊर्जा और कूटनीति तक, रूस ने कई मौकों पर भारत का साथ दिया है। बदलते वैश्विक समीकरणों और पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बीच यह साझेदारी और भी अहम हो गई है। पुतिन का भारत दौरा केवल औपचारिक राजनयिक मुलाकात नहीं था, बल्कि इसके बाद उठाए गए कदमों ने साफ कर दिया है कि दोनों देश अपने रिश्तों को अगले स्तर पर ले जाने की तैयारी में हैं।

पुतिन के भारत से रवाना होते ही भारत की वाणिज्य मंत्रालय (कॉमर्स मिनिस्ट्री) पूरी तरह एक्शन मोड में आ गई। मंत्रालय ने उन क्षेत्रों की पहचान की है, जिनमें रूस की भारी मांग है और जहां वह फिलहाल अन्य देशों पर निर्भर है। इनमें इंजीनियरिंग गुड्स, फार्मास्यूटिकल उत्पाद, कृषि उत्पाद और केमिकल सेक्टर प्रमुख हैं। इन क्षेत्रों में भारत की उत्पादन क्षमता मजबूत है और लागत भी प्रतिस्पर्धी मानी जाती है। यही वजह है कि भारत अब सीधे रूस के इंपोर्ट बास्केट में अपनी जगह बनाने की तैयारी कर रहा है।

आंकड़े इस रणनीति की जरूरत को साफ तौर पर दिखाते हैं। मौजूदा समय में भारत इन कैटेगरी के उत्पादों में रूस को करीब 1.7 बिलियन डॉलर का ही निर्यात करता है, जबकि रूस इन्हीं क्षेत्रों में लगभग 37.4 बिलियन डॉलर का आयात करता है। यानी करीब 35 बिलियन डॉलर का ऐसा गैप है, जिसे भारत भर सकता है। यही वह अवसर है, जिस पर अब नई रणनीति के तहत फोकस किया जा रहा है।

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भारत और रूस ने यह लक्ष्य तय किया है कि वर्ष 2030 तक दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार को 100 बिलियन डॉलर तक पहुंचाया जाएगा। लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत का निर्यात बढ़ना बेहद जरूरी है। फिलहाल भारत का रूस के साथ व्यापार घाटा लगभग 59 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है। रूस से कच्चा तेल और अन्य ऊर्जा संसाधनों का भारी आयात इस घाटे की बड़ी वजह है। जैसे-जैसे भारत रूस को ज्यादा उत्पाद निर्यात करेगा, शिपमेंट बढ़ेगी और स्थानीय मुद्राओं में भुगतान होगा, वैसे-वैसे यह ट्रेड डेफिसिट घटने की उम्मीद है।

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रूस इस समय भारत के कुल क्रूड ऑयल इंपोर्ट का करीब 21 प्रतिशत सप्लाई करता है। इसके उलट रूस के कुल इंपोर्ट बास्केट में भारत की हिस्सेदारी महज 2.3 प्रतिशत है। यह आंकड़ा बताता है कि रूस के बाजार में भारत के लिए कितनी बड़ी संभावनाएं मौजूद हैं। पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण कई सेक्टरों में रूस की सप्लाई चेन कमजोर पड़ी है और भारत इसी खाली जगह को भरने की रणनीति पर काम कर रहा है।

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कॉमर्स मिनिस्ट्री की योजना साफ है—उन उत्पादों पर फोकस करना जिनकी रूस को तत्काल जरूरत है, उन सेक्टरों में एंट्री करना जहां पश्चिमी सप्लायर्स पीछे हट चुके हैं, रुपये–रूबल आधारित लोकल करेंसी ट्रेड को बढ़ावा देना और लॉजिस्टिक्स व शिपिंग रूट्स को मजबूत करना। इससे न सिर्फ व्यापार बढ़ेगा, बल्कि दोनों देशों की आर्थिक निर्भरता भी संतुलित होगी।

कुल मिलाकर, 300 हाई-पोटेंशियल उत्पादों की यह सूची भारत–रूस रिश्तों में एक नया अध्याय खोलने जा रही है। यह कदम भारत को वैश्विक सप्लाई चेन में मजबूत करेगा और रूस के लिए एक भरोसेमंद साझेदार के रूप में भारत की भूमिका को और पुख्ता करेगा। रणनीतिक, आर्थिक और राजनीतिक—तीनों स्तरों पर यह फैसला आने वाले वर्षों में दूरगामी असर डालने वाला साबित हो सकता है।