ट्रंप की खतरनाक चाल! यूरोप को तोड़कर नई दुनिया रचने की तैयारी, एशिया बनेगा ताकत का केंद्र
लीक अमेरिकी सुरक्षा दस्तावेज का दावा—भारत, चीन और रूस के साथ ‘कोर फाइव’ गठबंधन, यूरोप होगा पूरी तरह साइडलाइन
नई दिल्ली, 15 दिसम्बर,(एजेंसियां)। दुनिया की भू-राजनीति में एक बार फिर उथल-पुथल मच गई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लेकर सामने आई एक रिपोर्ट ने यूरोप से लेकर एशिया तक चिंता की लकीरें खींच दी हैं। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में दावा किया जा रहा है कि ट्रंप प्रशासन एक ऐसी नई वैश्विक रणनीति पर काम कर रहा है, जिसका उद्देश्य यूरोपीय संघ को रणनीतिक रूप से कमजोर करना और वैश्विक शक्ति संतुलन को एशिया की ओर मोड़ना है। अगर ये दावे सही साबित होते हैं, तो आने वाले वर्षों में दुनिया की मौजूदा व्यवस्था पूरी तरह बदल सकती है।
ब्रिटेन के प्रतिष्ठित अखबार द टेलीग्राफ ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि उसे अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रैटेजी (NSS) का एक लीक ड्राफ्ट दस्तावेज मिला है। इस कथित दस्तावेज में अमेरिकी विदेश नीति को लेकर कई चौंकाने वाले लक्ष्य सामने आए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका न केवल यूरोपीय संघ को कमजोर करने की रणनीति बना रहा है, बल्कि एक बिल्कुल नई “कोर फाइव” वैश्विक व्यवस्था की नींव रखने की तैयारी में है।
इस प्रस्तावित “कोर फाइव” समूह में अमेरिका के साथ भारत, चीन, रूस और जापान को शामिल किए जाने की बात कही जा रही है। यानी एशिया की बड़ी शक्तियों को वैश्विक निर्णय प्रक्रिया के केंद्र में लाया जाएगा, जबकि यूरोप की भूमिका धीरे-धीरे सीमित और गौण होती जाएगी। यह बदलाव द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बनी अमेरिकी-यूरोपीय साझेदारी के अंत की ओर इशारा करता है।
यूरोप में इस रिपोर्ट को लेकर बेचैनी साफ नजर आ रही है। जर्मनी के चांसलर फ्रेडरिक मर्ज़ ने हाल ही में स्वीकार किया कि “पैक्स अमेरिकाना” यानी अमेरिकी सुरक्षा छत्र का दौर अब समाप्त हो चुका है। उनके मुताबिक, यूरोप को अब यह समझ आ गया है कि अमेरिका पहले जैसा भरोसेमंद सुरक्षा सहयोगी नहीं रहा और वह यूरोप की सुरक्षा पर भारी खर्च करने के लिए तैयार नहीं है।
लीक बताए जा रहे एनएसएस दस्तावेज में यूरोप को एक “पतनशील महाद्वीप” के रूप में चित्रित किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, इसमें दावा किया गया है कि अगर मौजूदा रुझान जारी रहे तो अगले 20 वर्षों में यूरोप की सामाजिक, आर्थिक और सैन्य स्थिति पूरी तरह बदल सकती है। सवाल यह भी उठाया गया है कि क्या भविष्य में कुछ यूरोपीय देश इतने सक्षम रहेंगे कि वे अमेरिका के विश्वसनीय रणनीतिक साझेदार बने रह सकें।
हालांकि, यह भी सच है कि इन दावों को लेकर फिलहाल व्हाइट हाउस की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। अमेरिकी प्रशासन ने न तो लीक दस्तावेज की पुष्टि की है और न ही इसका खंडन किया है। ऐसे में यह स्पष्ट नहीं है कि यह रणनीति वास्तव में अमेरिकी नीति का हिस्सा है या फिर इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अमेरिका अब एक एशिया-केंद्रित वैश्विक व्यवस्था की ओर बढ़ना चाहता है। “कोर फाइव” गठबंधन का आधार वैश्विक शक्ति, सैन्य क्षमता, आर्थिक प्रभाव और जनसंख्या होगा। इस ढांचे में यूरोपीय देशों की भूमिका सीमित कर दी जाएगी और वे वैश्विक फैसलों में निर्णायक भूमिका नहीं निभा पाएंगे।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अमेरिका सचमुच इस दिशा में कदम बढ़ाता है, तो यह नाटो जैसे संगठनों के भविष्य पर भी गंभीर सवाल खड़े करेगा। साथ ही, यूरोपीय देशों को अपनी रक्षा और विदेश नीति के लिए अमेरिका पर निर्भरता कम कर आत्मनिर्भर होने की दिशा में मजबूर होना पड़ेगा।
भारत के संदर्भ में देखें तो इस कथित नई व्यवस्था में उसकी भूमिका काफी अहम मानी जा रही है। एशिया की बड़ी शक्ति होने के नाते भारत अमेरिका, रूस और चीन के साथ एक संतुलनकारी भूमिका निभा सकता है। हालांकि, भारत के लिए यह भी एक कूटनीतिक चुनौती होगी कि वह इस नए समीकरण में अपने हितों को कैसे सुरक्षित रखता है।
कुल मिलाकर, ट्रंप प्रशासन की कथित इस रणनीति ने वैश्विक राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। क्या अमेरिका वाकई यूरोप को साइडलाइन कर एशिया को नई धुरी बनाना चाहता है, या यह सिर्फ कयास और अटकलें हैं—इसका जवाब आने वाला वक्त ही देगा। लेकिन इतना तय है कि अगर यह योजना साकार होती है, तो दुनिया की मौजूदा व्यवस्था में ऐतिहासिक बदलाव देखने को मिल सकता है।

