नई दिल्ली, 13 दिसम्बर,(एजेंसियां)। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के मंच पर कई बार शब्दों से ज़्यादा इशारे, समय और प्राथमिकताएं बोलती हैं। तुर्कमेनिस्तान की राजधानी अशगाबात में आयोजित अंतरराष्ट्रीय शांति और विश्वास मंच में कुछ ऐसा ही देखने को मिला, जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने बिना एक भी तीखा बयान दिए पाकिस्तान की कूटनीतिक हैसियत पर करारा प्रहार कर दिया। न कोई मंचीय भाषण, न प्रेस बयान—बस 40 मिनट का इंतज़ार, और पाकिस्तान की साख दुनिया के सामने तार-तार।
इस सम्मेलन में दुनिया के कई बड़े नेता मौजूद थे। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ को उम्मीद थी कि उन्हें रूसी राष्ट्रपति से मुलाकात का अवसर मिलेगा। इस मुलाकात को इस्लामाबाद में एक बड़ी डिप्लोमैटिक उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा था। लेकिन उम्मीदों का यह महल तब धराशायी हो गया, जब तय समय पर पुतिन नहीं पहुंचे और शहबाज़ शरीफ अपने मंत्रियों के साथ पूरे 40 मिनट तक इंतज़ार करते रह गए।
सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरों और वीडियो में साफ दिखा कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री एक कोने में खड़े होकर बार-बार समय की ओर देखते रहे। यह केवल इंतज़ार नहीं था, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक प्रधानमंत्री की असहजता और बेबसी का प्रदर्शन था। कूटनीति की भाषा में इसे स्पष्ट संदेश माना जा रहा है—रूस की प्राथमिकताओं की सूची में पाकिस्तान फिलहाल कहीं पीछे है।
मामला यहीं खत्म नहीं हुआ। जब तय समय पर पुतिन नहीं पहुंचे, तो शहबाज़ शरीफ ने खुद उस हॉल की ओर बढ़ने का फैसला किया, जहां रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन की बैठक चल रही थी। यह दृश्य अपने आप में अभूतपूर्व था। एक प्रधानमंत्री का इस तरह दर-दर भटकना और बिना तय प्रोटोकॉल के बैठक में दाखिल होने की कोशिश करना, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में शायद ही पहले देखा गया हो।
सूत्रों के मुताबिक, शहबाज़ शरीफ लगभग 10 मिनट तक अंदर रहे, लेकिन कोई ठोस बातचीत नहीं हो सकी। इसके बाद वे बाहर निकल आए। इस घटनाक्रम ने यह साफ कर दिया कि पाकिस्तान की कोशिशों के बावजूद रूस ने उसे तवज्जो देना जरूरी नहीं समझा। यही नहीं, जब पुतिन बैठक से बाहर निकले तो उन्होंने पत्रकारों की ओर देखकर आंखों से इशारा किया, जिसे कई लोग एक डिप्लोमैटिक सिग्नल के तौर पर देख रहे हैं। भारत में सोशल मीडिया पर इसे “असली धुरंधर स्टाइल” बताया जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह पूरी घटना सिर्फ व्यक्तिगत अपमान नहीं थी, बल्कि इसके पीछे भूराजनीतिक संकेत छिपे हैं। रूस, जो लंबे समय से भारत का रणनीतिक साझेदार रहा है, आज भी नई वैश्विक व्यवस्था में अपनी प्राथमिकताएं स्पष्ट कर रहा है। यूक्रेन युद्ध के बाद बदले अंतरराष्ट्रीय समीकरणों में रूस उन देशों को तरजीह दे रहा है, जो विश्वसनीय, स्थिर और रणनीतिक रूप से मजबूत हैं। पाकिस्तान, जो एक तरफ अमेरिका की ओर झुकता है और दूसरी तरफ चीन पर अत्यधिक निर्भर है, रूस की नजर में शायद एक अनिश्चित और अवसरवादी साझेदार बनकर रह गया है।
यह पहला मौका नहीं है जब शहबाज़ शरीफ को अंतरराष्ट्रीय मंच पर इस तरह की फजीहत झेलनी पड़ी हो। इससे पहले चीन के तियानजिन में आयोजित SCO समिट के दौरान भी पाकिस्तान को अपेक्षित महत्व नहीं मिला था। उस समय भी इस्लामाबाद की ओर से बड़ी उम्मीदें थीं, लेकिन नतीजा वही रहा—औपचारिकता से आगे कोई ठोस समर्थन नहीं।
अशगाबात की घटना ने पाकिस्तान की उस रणनीति पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं, जिसमें वह खुद को बड़े वैश्विक खिलाड़ियों के बीच सेतु के रूप में पेश करता रहा है। हकीकत यह है कि आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और आतंकवाद के आरोपों से घिरे पाकिस्तान की डिप्लोमैटिक विश्वसनीयता कमजोर होती जा रही है। जब बड़े नेता मुलाकात के लिए समय तक नहीं देते, तो संदेश साफ होता है।
भारत में इस पूरे घटनाक्रम को अलग नज़र से देखा जा रहा है। जानकारों का कहना है कि रूस का यह रुख अप्रत्यक्ष रूप से भारत की कूटनीतिक स्थिति को मजबूत करता है। भारत और रूस के बीच दशकों पुराने रिश्ते, रक्षा सहयोग और रणनीतिक साझेदारी आज भी कायम हैं। पुतिन का व्यवहार यह दिखाता है कि नई विश्व व्यवस्था में भी रूस अपने पुराने भरोसेमंद साझेदारों को नहीं भूलता।
कूटनीति में कई बार खामोशी सबसे तेज़ आवाज़ होती है। अशगाबात में पुतिन ने यही किया। बिना किसी बयान के, बिना किसी विवादित टिप्पणी के, उन्होंने 40 मिनट के इंतज़ार के जरिए पाकिस्तान को यह जता दिया कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर सम्मान मांगने से नहीं, हैसियत से मिलता है।
कुल मिलाकर, यह घटना पाकिस्तान के लिए एक चेतावनी है। दुनिया तेजी से बदल रही है और अब केवल बयानबाज़ी, विक्टिम कार्ड या पुरानी रणनीतियों से काम नहीं चलेगा। अगर पाकिस्तान को वैश्विक मंच पर सम्मान चाहिए, तो उसे पहले आर्थिक स्थिरता, राजनीतिक परिपक्वता और आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई दिखानी होगी। वरना ऐसे “40 मिनट” बार-बार उसकी कूटनीतिक कहानी लिखते रहेंगे।

