हमले के बाद यूनुस के मंत्री लश्कर सरगना से मिले
पाकिस्तान के साथ-साथ बांग्लादेश से भी जुड़े पहलगाम हमले के तार
पहलगाम नरसंहार के बाद ढाका में हुई गोपनीय बैठक
कानून मंत्रालय के ढाका दफ्तर आया लश्कर सरगना
नई दिल्ली, 26 अप्रैल (एजेंसियां)। जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले और हिंदुओं के नरसंहार के फौरन बाद बांग्लादेश सरकार के कानून मंत्री डॉ. आसिफ नजरुल ने लश्करे तैयबा के बांग्लादेश के सरगना हारुन इजहार से गोपनीय मुलाकात क्यों की, इसे लेकर खुफिया एजेंसियों ने भारत सरकार को आगाह किया है। खुफिया एजेंसियों का मानना है कि पहलगाम हमले में पाकिस्तान के साथ-साथ बांग्लादेश की भी भूमिका है। बांग्लादेश सरकार के कानून मंत्री और लश्कर सरगना की गोपनीय बैठक ढाका स्थित कानून मंत्रालय के दफ्तर में हुई। खुफिया एजेंसियों की यह सूचना न केवल भारत बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के सुरक्षा गलियारे में सनसनी फैलाने वाली सूचना है।
लश्कर सरगना और बांग्लादेश के कानून मंत्री की गोपनीय बैठक होने की आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है। इस मुलाकात ने विनाशकारी पहलगाम हमले के परिप्रेक्ष्य में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस से लेकर कानून मंत्री डॉ. आसिफ नजरुल एवं अन्य उच्च पदस्थ हस्तियों और कट्टरपंथी चरमपंथियों के बीच मिलीभगत की भी पुष्टि की है। लश्करे तैयबा का बांग्लादेशी सरकना हारुन इजहार वर्ष 2009 में ढाका स्थित भारतीय दूतावास को बम से उड़ाने के षडयंत्र में शामिल था। वह लंबे समय से हिफाजत-ए-इस्लाम बांग्लादेश से भी जुड़ा हुआ है, जो एक अति-रूढ़िवादी इस्लामी समूह है, जिसका विभिन्न रूपों में कट्टरपंथ को भड़काने का रिकॉर्ड है। इजहार ने तौहीदी जनता और कारा मुक्ति आंदोलन जैसे उग्रवादी मोर्चों के बैनर तले भी काम किया है, जिन्होंने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को खत्म करने और धार्मिक विद्रोह भड़काने की कोशिश की है।
बांग्लादेश के कानून मंत्री से मिलने के कुछ ही देर पहले लश्कर सरगना ने अपने फेसबुक अकाउंट पर विवादास्पद संदेश पोस्ट किया, जिसमें भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल पर पहलगाम हत्याकांड की साजिश रचने का उसने आरोप लगाया। यह पाकिस्तान की शैतानी पर पर्दा डालने की सोची-समझी करतूत थी, जिसके बारे में बांग्लादेश सरकार पहले से जानती थी। बांग्लादेश में सुरक्षा अधिकारियों ने कानून मंत्री और लश्कर सरगना के बीच हुई बैठक की निगरानी की और उसे रिकॉर्ड भी किया, लेकिन उसे गोपनीय रखा गया है।
लश्कर सरगना इजहार की कट्टरपंथी गतिविधियां बांग्लादेशी सीमाओं से कहीं आगे और बाहर तक फैली हुई हैं। 26/11 मुंबई हमलों के एक योजनाकार डेविड कोलमैन हेडली से पूछताछ के बाद अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने उसे भी चिन्हित किया था। 2013 में इजहार को उसके मदरसे में एक घातक ग्रेनेड विस्फोट के बाद गिरफ्तार किया गया था, जिसमें तीन लोग मारे गए थे और विस्फोटकों का जखीरा बरामद हुआ था। पाकिस्तान में अपनी शिक्षा के दौरान इजहार ने लश्कर के प्रमुख नेताओं के साथ गहरे संबंध बनाए, जिससे बाद में उसे हिफाजत-ए-इस्लाम के गुटों को कट्टरपंथी बनाने में मदद मिली। उसके वैचारिक प्रभाव ने इन समूहों को धार्मिक उग्रवाद के साधन में बदल दिया। वह कई बड़ी लामबंदी के पीछे भी था, जिसमें 2021 में प्रधानमंत्री मोदी की ढाका यात्रा के दौरान हिंसक विरोध प्रदर्शन शामिल हैं, जिसमें व्यापक अशांति देखी गई थी।
बांग्लादेश के पूर्व सूचना मंत्री मोहम्मद अराफात ने बांग्लादेश के वर्तमान राजनीतिक माहौल के बारे में गंभीर आशंका व्यक्त की है। उन्होंने कहा, मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार कट्टरपंथ को बढ़ावा दे रही है। जब प्रशासन में सलाहकार की भूमिका निभाने वाले डॉ. नजरुल जैसे व्यक्ति चरमपंथी सरगना के साथ मिलते-जुलते हैं, तो यह कट्टरपंथ की ओर एक खतरनाक संस्थागत बदलाव का खुला संकेत है। उन्होंने कहा, यह चिंताजनक घटना न केवल बांग्लादेश के आतंकवाद निरोधी तंत्र की कमजोरी उजागर करती है, बल्कि राजनीतिक मिलीभगत के जरिए चरमपंथी नेटवर्क को वैधता दिए जाने खतरे को भी रेखांकित करती है।
क्षेत्रीय चिंता को और गहरा करने वाली बात यह है कि पाकिस्तान का सैन्य नेतृत्व, खास तौर पर पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर और बांग्लादेश के अंतरिम मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के बीच एक अघोषित रणनीतिक गठबंधन है। खुफिया एजेंसियां बताती हैं कि बांग्लादेश में यूनुस के नेतृत्व वाला प्रशासन धीरे-धीरे चरमपंथी विचारकों और गुर्गों के प्रति अधिक अनुकूल होता जा रहा है, जिनमें से कई का पाकिस्तान के डीप स्टेट से सीधा और वैचारिक संबंध है। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के पूर्व महानिदेशक जनरल असीम मुनीर ने लश्कर ए तैयबा और टीआरएफ जैसे आतंकी समूहों से संबंध काफी प्रगाढ़ बना लिए हैं। अफगानिस्तान में तालिबान के फिर से उभरने के बाद जनरल मुनीर ने इसमें और तेजी लाई। मुनीर की यह रणनीति कश्मीर में कट्टरपंथी उबाल बनाए रखने और बांग्लादेश में अस्थिरता बढ़ावा देते रहने की है।
खास बात यह है कि पहलगाम हमले के ठीक पहले पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल मुनीर ने लश्कर के गुर्गों को रसद और वित्तीय सहायता बढ़ाने की व्यक्तिगत रूप से मंजूरी दी थी। इसमें एन्क्रिप्टेड संचार और फर्जी एनजीओ के माध्यम से धन भेजना और कश्मीर और बांग्लादेश में क्षेत्रीय संचालकों को सक्रिय करना शामिल था। हिंदू नागरिकों पर हमला, अधिकतम मनोवैज्ञानिक प्रभाव करने, भारत की आंतरिक स्थिरता को बाधित करने और विदेशी जुड़ाव को पटरी से उतारने के लिए इसे डिजाइन किया गया था।
उधर, मुहम्मद यूनुस की अंतरिम बांग्लादेश सरकार ने अनौपचारिक रूप से अपने सैन्य प्रतिष्ठानों में चुनिंदा पाकिस्तानी सेनाधिकारियों के लिए चैनल खोल दिए हैं। असीम मुनीर-यूनुस गठजोड़ कागज पर औपचारिक रूप से भले ही न हो, लेकिन इसके निहित परिणाम जमीन पर सामने आ रहे हैं। पहलगाम नरसंहार एक अलग घटना नहीं है, बल्कि एक बड़े और अधिक खतरनाक भू-राजनीतिक खेल का एक फ्लैशपॉइंट है, इसे आप फिल्म का ट्रेलर भी मान सकते हैं।