भारतीय नौसेना का मल्टी रोल गेमचेंजर बनेगा राफेल मरीन
नई दिल्ली, 30 अप्रैल (एजेंसियां)। हाल के वर्षों में भारत की सामरिक रणनीति में समुद्री क्षेत्र पर जोर देना स्पष्ट संकेत है कि देश अब केवल भूमि आधारित खतरों पर ही नहीं बल्कि समुद्री सीमाओं पर भी अपने प्रभुत्व को सुदृढ़ करना चाहता है। भारत की समुद्री शक्ति को और अधिक धार देने तथा हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी रणनीतिक पकड़ को सशक्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए भारत ने फ्रांस के साथ एक ऐतिहासिक रक्षा समझौता किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीएस) ने भारतीय नौसेना के लिए फ्रांस से 26 राफेल-एम मरीन फाइटर जेट की खरीद को हरी झंडी दी है।
यह सौदा लगभग 63 हजार करोड़ रुपए (करीब 7.9 अरब डॉलर) का है, जिसे भारत की अब तक की सबसे महत्वपूर्ण नौसेना डील के रूप में देखा जा रहा है। भारतीय नौसेना को इस सौदे के तहत 26 अत्याधुनिक राफेल मरीन लड़ाकू विमान मिलेंगे, जिन्हें विमानवाहक पोतों से संचालित किया जाएगा। यह सौदा न केवल भारत की समुद्री सुरक्षा नीति के केंद्र में स्थित है बल्कि इसके पीछे एक दीर्घकालिक रणनीतिक उद्देश्य भी छिपा है, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन को अपने पक्ष में बनाए रखना और चीन तथा पाकिस्तान जैसे प्रतिद्वंद्वियों के बढ़ते नौसैनिक प्रभाव को प्रभावी रूप से जवाब देना। भारत के लिए यह सौदा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारतीय रक्षा खरीद प्रणाली में निरंतर परिपक्वता और पारदर्शिता की ओर बढ़ते हुए कदमों का संकेत देता है। यह सौदा सरकार से सरकार के स्तर पर किया गया है, जिससे इसकी पारदर्शिता और रणनीतिक महत्त्व दोनों सुनिश्चित होते हैं।
पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान के साथ बढ़े तनाव के बीच इस डील का स्पष्ट संदेश है कि भारत अब वायुसेना और सेना के साथ अपनी नौसेना को भी पूरी मजबूती प्रदान करने को संकल्पबद्ध है। भारत-फ्रांस के बीच इस समझौते में केवल विमान खरीदने तक ही बात सीमित नहीं है बल्कि इसमें एक व्यापक औद्योगिक और तकनीकी सहयोग का भी प्रावधान है। भारत और फ्रांस के बीच हुए इस समझौते में राफेल मरीन पर भारत में विकसित एस्ट्रा बियॉन्ड विजुअल रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल को एकीकृत करने की योजना है, जिससे भारत की स्वदेशी हथियार प्रणालियों को बढ़ावा मिलेगा और आत्मनिर्भरता की दिशा में यह एक ठोस कदम होगा। साथ ही, विमान के विभिन्न घटकों के निर्माण, रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल के लिए भारत में एमआरओ (मेंटेनेंस, रिपेयर, ओवरहोल) सुविधाओं की स्थापना भी की जाएगी, जिससे न केवल घरेलू रक्षा उद्योग को गति मिलेगी बल्कि बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। समझौते में यह भी तय किया गया है कि डिलीवरी अनुबंध की तारीख से 37 महीने बाद शुरू होगी और 66 महीनों के भीतर पूरी कर दी जाएगी। इस प्रकार, पहला राफेल मरीन विमान 2028 के मध्य तक भारत पहुंच जाएगा और 2030 तक सभी विमानों की आपूर्ति पूरी कर ली जाएगी। 26 विमानों में से 22 सिंगल सीटर होंगे, जो ऑपरेशनल मिशन में इस्तेमाल होंगे जबकि चार ट्विन सीटर ट्रेनिंग वर्जन होंगे, जो नौसैनिक पायलटों को प्रशिक्षण देने के लिए उपयोग में लाए जाएंगे। यह महत्वपूर्ण है कि ट्विन सीटर ट्रेनर जेट्स को विमानवाहक पोत से संचालित नहीं किया जाएगा क्योंकि वे तकनीकी दृष्टिकोण से वाहक संगत नहीं होते।
भारत का यह कदम न केवल एक सैन्य अधिग्रहण है बल्कि एक कूटनीतिक संदेश भी है। इस डील जिस समय पर हस्ताक्षर हुए, ठीक उसी समय पाकिस्तान ने अपने नौसेना बेड़े में चीन से प्राप्त चार युद्धपोतों को शामिल किया था। इसके अलावा चीन अपनी नौसैनिक शक्ति को लगातार बढ़ा रहा है, विशेष रूप से हिंद महासागर क्षेत्र में उसकी मौजूदगी चिंता का विषय बन चुकी है। चीन के पास अब तीन से अधिक विमानवाहक पोत हैं और वह भारत की समुद्री सीमाओं के आसपास उपस्थिति बनाए रखने की कोशिश करता रहा है। ऐसे समय में राफेल मरीन का अधिग्रहण भारत की एक ठोस प्रतिक्रिया है, जिससे स्पष्ट संदेश जाता है कि भारत अपनी समुद्री सीमाओं की रक्षा के लिए तैयार है और वह आधुनिक हथियारों, उच्च तकनीक तथा प्रभावी रणनीति के साथ क्षेत्र में अपनी स्थिति को सुदृढ़ बनाए रखेगा। यह डील भारत और फ्रांस के बीच बढ़ते रक्षा सहयोग का भी प्रतीक है। इससे पहले भारत ने फ्रांस से 36 राफेल विमान वायुसेना के लिए खरीदे थे, जिनकी डिलीवरी समय पर और बिना किसी विवाद के की गई। इस सहयोग की सफलता ने नौसेना के लिए भी फ्रांस को एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में स्थापित कर दिया है। यह द्विपक्षीय रक्षा संबंधों की मजबूती का प्रमाण है कि भारत और फ्रांस ने अब सिर्फ उपकरणों की खरीद-बिक्री तक खुद को सीमित नहीं रखा है बल्कि प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, संयुक्त उत्पादन, और सामरिक साझेदारी की ओर भी कदम बढ़ा दिए हैं। आने वाले वर्षों में दोनों देशों के बीच नौसेना अभियानों में सहयोग, संयुक्त युद्धाभ्यास और इंटेलिजेंस साझेदारी भी बढ़ने की संभावना है।
वर्तमान में भारतीय नौसेना दो प्रमुख विमानवाहक पोतों (आईएनएस विक्रमादित्य और आईएनएस विक्रांत) का संचालन कर रही है। इन पोतों से मिग-29के विमान संचालित किए जा रहे हैं, जो अब तकनीकी रूप से पुराने हो चुके हैं और उनकी परिचालन क्षमता भी समय के साथ घट रही है। इन परिस्थितियों में नौसेना के लिए एक उन्नत, बहुआयामी लड़ाकू विमान की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी। राफेल मरीन इसी आवश्यकता को पूरा करने के लिए सबसे उपयुक्त साबित होगा। डसॉल्ट एविएशन द्वारा निर्मित यह विमान पहले से ही भारतीय वायुसेना के बेड़े में अपनी उपयोगिता और विश्वसनीयता साबित कर चुका है। अब इसके मरीन वर्जन को नौसेना में शामिल करना रणनीतिक रूप से तार्किक कदम है। राफेल मरीन की सबसे बड़ी विशेषता इसका मल्टी-रोल क्षमताओं से लैस होना है। यह विमान हवा से हवा में, हवा से जमीन पर और हवा से समुद्र में लक्ष्य भेदने में सक्षम है। इसमें मेटियोर मिसाइल, स्कैल्प क्रूज मिसाइल, हैमर स्मार्ट बम जैसे आधुनिक हथियार तैनात किए जा सकते हैं। राफेल मरीन हवा में ईंधन भरने की क्षमता, स्टील्थ तकनीक, उन्नत एवियोनिक्स, एक्टिव इलैक्ट्रॉनिक स्कैन एरे रडार और सटीक लक्ष्यान्वेषण प्रणाली जैसी विशेषताओं से सुसज्जित है। यह विमान अत्यधिक संकरी जगहों से भी उड़ान भर सकता है और बहुत कम रनवे पर लैंड कर सकता है, जो एक विमानवाहक पोत पर संचालन के लिए अत्यंत आवश्यक विशेषता है। साथ ही यह विभिन्न मौसमों में ऑपरेशन के लिए उपयुक्त है और उच्च समुद्री परिस्थितियों में भी अपनी मारक क्षमता बनाए रखता है।
राफेल मरीन विमान विशेष रूप से लंबी दूरी तक लक्ष्यों को भेदने में सक्षम है, जिससे भारत की स्ट्राइक क्षमता बढ़ेगी। यह 3700 किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है और हवा में ही ईंधन भर सकता है। इसकी यह क्षमता इसे दूरदराज के समुद्री क्षेत्रों में भी ऑपरेशन करने में सक्षम बनाती है। यह चीन की तथाकथित पर्ल ऑफ स्ट्रिंग्स नीति को प्रभावी तरीके से जवाब देने का एक रणनीतिक औजार भी है, जिसके अंतर्गत चीन ने श्रीलंका, पाकिस्तान, मालदीव और म्यांमार जैसे देशों में नौसैनिक आधार विकसित करने की कोशिश की है। राफेल मरीन की क्षमताओं की तुलना जब मिग-29के से की जाती है तो स्पष्ट होता है कि यह विमान तकनीकी, सामरिक और ऑपरेशनल दृष्टिकोण से बहुत अधिक उन्नत है। मिग-29के की सीमित रेंज, कम मिसाइल कैरिंग क्षमता और अपेक्षाकृत कम अविश्वसनीयता के कारण इसे अब धीरे-धीरे सेवा से बाहर किया जा रहा है। इसके विपरीत, राफेल मरीन में दुश्मन के रडार से बच निकलने की क्षमता, सटीक टारगेटिंग सिस्टम और लंबी रेंज के हथियार इसे एक घातक समुद्री फाइटर बनाते हैं। इसके जरिए भारत अब अपने विमानवाहक पोतों को एक बार फिर से संपूर्ण रूप से युद्ध-तैयार बना सकेगा। राफेल मरीन के आने से भारतीय नौसेना की संयुक्त संचालन क्षमता में वृद्धि होगी। भारतीय वायुसेना पहले से ही राफेल विमान संचालित कर रही है, जिससे दोनों बलों के बीच ऑपरेशनल तालमेल आसान हो जाएगा। इससे लॉजिस्टिक सपोर्ट, प्रशिक्षण, रखरखाव और स्पेयर पार्ट्स की आपूर्ति जैसी चीजें साझा हो सकेंगी, जिससे लागत कम होगी और प्रभावशीलता बढ़ेगी। यह समन्वय भारत के तीनों सैन्य अंगों के एकीकृत संचालन की दिशा में भी एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
राफेल मरीन डील के समांतर भारत अमेरिका से भी 3.5 बिलियन डॉलर के समझौते के तहत 31 एमक्यू-9बी प्रीडेटर ड्रोन खरीद रहा है, जिनमें से 15 नौसेना के लिए होंगे। इन दोनों समझौतों के एक साथ अमल में आने से भारतीय नौसेना को आसमान और समुद्र दोनों में निगरानी और हमला करने की अद्वितीय शक्ति प्राप्त होगी। आने वाले समय में भारत को अपनी समुद्री रणनीति को और अधिक समग्र बनाने की आवश्यकता है। ऐसे में राफेल मरीन जैसे लड़ाकू विमान उस रणनीति का महत्वपूर्ण स्तंभ बन सकते हैं लेकिन इसके साथ-साथ देश को अपने स्वदेशी परियोजनाओं पर भी ध्यान देना होगा। डीआरडीओ द्वारा विकसित किया जा रहा ट्विन इंजन डेक-बेस्ड फाइटर इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसे 2032 तक संचालन के लिए तैयार करने की योजना है। यदि यह परियोजना सफल होती है तो भारत अपनी नौसेना के लिए पूरी तरह से स्वदेशी विमान विकसित करने वाले चुनिंदा देशों में शामिल हो जाएगा।
कुल मिलाकर, राफेल सौदा भारत की आत्मनिर्भरता की नीति के अनुरूप भी है। जहां एक ओर फ्रांस से विमान खरीदे जा रहे हैं, वहीं इसके साथ भारत में एमएसएमई सेक्टर को जोड़ने, तकनीकी हस्तांतरण और स्वदेशी हथियार प्रणालियों के एकीकरण की योजना भी सुनिश्चित की गई है। इससे मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसी पहल को मजबूती मिलेगी। भारत धीरे-धीरे एक ऐसे रक्षा खरीद मॉडल की ओर बढ़ रहा है, जो विदेशी सहयोग के साथ-साथ घरेलू निर्माण को भी प्रोत्साहित करता है। राफेल मरीन डील केवल एक सैन्य खरीद नहीं है बल्कि भारत की भविष्य की रक्षा रणनीति, उसकी भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं और तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में एक निर्णायक कदम है। इससे भारत की नौसेना को न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा करने में सक्षम बनाया जाएगा बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र में एक प्रभावी शक्ति के रूप में उभरने में भी सहायता मिलेगी। आने वाले वर्षों में यह सौदा भारत के समुद्री भविष्य की नींव साबित होगा।