सावधान! देश में बढ़ते जा रहे हैं पगड़ी वाले ईसाई

नेपाल के रास्ते यूपी उत्तराखंड में जड़ें जमा रहा धर्मांतरण सिंडिकेट

 सावधान! देश में बढ़ते जा रहे हैं पगड़ी वाले ईसाई

 देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक : खुफिया एजेंसियां

देश में बड़ी तेजी से पगड़ी वाले ईसाईयों की तादाद बढ़ रही है। सिखों का धर्मांतरण कराने वाले ईसाई पादरियों ने दक्षिण भरत के केरल, तेलंगाना, कर्नाटक से लेकर पंजाब और सीमापार नेपाल तक अपना अड्डा बना लिया है। नेपाल से आने वाले पादरी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सिखों का बेतहाशा धर्मांतरण करा रहे हैं। अकेले उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में कुछ ही अर्से में 3000 से अधिक सिखों को ईसाई धर्म में शामिल कराया गया। पीलीभीत के कई गांवों में सिखों के घरों पर क्रॉस के निशान लगे मिल जाएंगे। उत्तर प्रदेश के पीलीभीत, शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी और उत्तराखंड के उधमसिंह नगर, काशीपुर, रुद्रपुर, गदरपुर से लेकर हल्द्वानी तक के क्षेत्रों में सिखों का ईसाईकरण तेजी से हो रहा है। सिखों को विदेश भेजने और पैसे का लालच देकर उनका धर्म बदलवाया जा रहा है।

इस इलाके में नेपाल के ईसाई पादरियों द्वारा सिखों का धर्मांतरण कराने का धंधा वर्ष 2012 से ही चल रहा है। विदेशी ताकतों के इशारे पर सिखों को निशाना बनाया जा रहा ह। खुफिया एजेंसियां कहती हैं कि यह केवल धार्मिक मामला नहींबल्कि देश की आंतरिक सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है। उत्तर प्रदेश का सिख बहुल जिला पीलीभीत भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है। यहां सिख बहुल गांवों में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण का मामला सामने आ रहा है। यह मुद्दा न केवल धार्मिक पहचान से जुड़ा हैबल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संचालित एक सुनियोजित साजिश का भी संदेश देता है। ऑल इंडिया सिख पंजाबी वेलफेयर काउंसिल के अनुसारबीते कुछ अर्से में केवल पीलीभीत में 3,000 से ज्यादा सिखों का धर्मांतरण कर उन्हें ईसाई बनाया गया।

पीलीभीत के हजारा थाना क्षेत्र के कई गांव मसलन बैल्हाटाटरगंजबम्मनपुरा भगीरथ और सिंघाड़ा में सिख समुदाय की बड़ी आबादी निवास करती है। इन गांवों में लगभग 20,000 से 30,000 सिख रहते हैंजो मुख्य रूप से खेती और छोटे-मोटे व्यवसायों पर निर्भर हैं। स्थानीय लोगों और सिख संगठनों के अनुसारवर्ष 2020 से नेपाल सीमा से सटे इन क्षेत्रों में धर्मांतरण की गतिविधियां तेज हुई हैं। इन गतिविधियों का केंद्र नेपाल से आए प्रोटेस्टेंट पादरी और उनके द्वारा बनाए गए कुछ स्थानीय पास्टर हैंजो आर्थिक प्रलोभनविदेश प्रवास की गारंटी, अंधविश्वास और रोग निवारण सभाओं के जरिए सिखों को ईसाई मजहब अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

इस बार मामले का आधिकारिक तौर पर खुलासा तब हुआ जब बैल्हा गांव की सिख महिला मंजीत कौर ने 13 मई 2025 को पीलीभीत के हजारा थाने में शिकायत दर्ज कराई। मंजीत ने आरोप लगाया कि उसके पति को पहले ही बहला-फुसलाकर ईसाई बनाया जा चुका है। अब उस पर और उसके बच्चों पर भी धर्म परिवर्तन का दबाव डाला जा रहा है। उसने बताया कि जब उसने धर्म परिवर्तन से इन्कार कियातो उसके खेतों को नुकसान पहुंचाया गया और बच्चों के साथ मारपीट की गई। मंजीत कौर के अनुसारआरोपियों ने सरकारी योजनाओं का लाभ और दो लाख रुपए का लालच दियालेकिन कोई वादा पूरा नहीं किया गया। इस शिकायत के आधार पर पुलिस ने आठ नामजद और दर्जनों अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है।

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ऑल इंडिया सिख पंजाबी वेलफेयर काउंसिल के प्रदेश अध्यक्ष हरपाल सिंह जग्गी ने इस मामले को गंभीरता से उठाया। उन्होंने स्थानीय गुरुद्वारा श्री सिंह सभा में प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की। जग्गी ने बताया कि पीलीभीत के सिख बहुल गांवों में करीब 3,000 से अधिक सिखों का धर्म परिवर्तन हो चुका है। उन्होंने जिला प्रशासन को 160 परिवारों की सूची सौंपीजिनके धर्म परिवर्तन की पुष्टि हुई है। जग्गी ने कहा कि नेपाल से आए पादरी और कुछ स्थानीय पास्टर गरीबीअशिक्षा और अंधविश्वास का फायदा उठाकर सिखों को ईसाई बना रहे हैं। उन्होंने यह भी दावा किया कि कुछ परिवारों के घरों पर क्रॉस के निशान बनाए गए हैंजो धर्मांतरण का प्रतीक माने जा रहे हैं। हालांकिप्रशासनिक सख्ती के बाद कई परिवारों ने इन निशानों को हटा लिया हैलेकिन वे अब भी ईसाईयत का पालन कर रहे हैं। जग्गी ने कहा कि यह सिख समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान पर हमला है और इसके पीछे विदेशी ताकतों का हाथ हैजो नेपाल के रास्ते इस साजिश को अंजाम दे रही हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथउपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक और जिला प्रशासन से सख्त कार्रवाई की मांग की।

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बैल्हा गांव के सिखों ने बताया कि नेपाल से आने वाले पास्टर और पंजाब के कुछ मिशनरी लोग चंगाई प्रार्थना सभाओं के जरिए सिखों को लुभा रहे हैं। ये सभाएं सिख युवकों को विदेश भेजने, उनकी आर्थिक स्थिति ठीक करने, बुजुर्गों की बीमारी ठीक करने और उन्हें आर्थिक मदद देने का वादा करती हैंजिससे गरीब और अशिक्षित लोग आसानी से प्रभावित हो जाते हैं। परमिंदर सिंह ने बताया कि मिशनरी लोग बाहरी तौर पर यह नहीं दिखाते कि कोई धर्म परिवर्तन कर चुका है। वे सिखों को उनकी पारंपरिक वेशभूषा और नाम बरकरार रखने की सलाह देते हैंताकि धर्मांतरण का पता न चले। फिर भी कई लोग उपचार सत्रों और आर्थिक लालच के कारण ईसाईयत की ओर झुक रहे हैं। हालांकि लखविंदर सिंह और बलजीत सिंह जैसे लोग धर्म परिवर्तन के बाद घर वापसी कर सिख धर्म में लौट आए हैं। लखविंदर ने बताया कि उनके बेटे की बीमारी ठीक न होने पर वे प्रार्थना सभाओं में गएलेकिन कोई फायदा नहीं हुआजिसके बाद उन्होंने सिख धर्म में वापसी कर ली।

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गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने बताया कि अब तक 160 परिवारों की घर वापसी कराई जा चुकी है। इसके लिए कमेटी ने अमृतपान जैसे धार्मिक कार्यक्रम शुरू किए हैं। साथ ही नौ ऐसे लोगों की सूची सार्वजनिक की गई हैजो सिख से ईसाई बनकर अब दूसरों को धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इन लोगों का सामाजिक बहिष्कार करने के लिए गुरुद्वारे में उनकी सूची लगाई गई है।

पीलीभीत की भौगोलिक स्थिति इस मामले को और जटिल बनाती है। नेपाल सीमा से सटे होने के कारण यह क्षेत्र लंबे समय से सीमापार गतिविधियों का केंद्र रहा है। जांच एजेंसियां बताती हैं कि नेपाल से संचालित कुछ एनजीओ और मिशनरी संगठन धर्मांतरण की गतिविधियों में लिप्त हैं। हरपाल सिंह जग्गी ने दावा किया कि 2012 से नेपाल के पादरी इस क्षेत्र में सक्रिय हैं और विदेशी ताकतों के इशारे पर सिखों को निशाना बनाया जा रहा है। उनका कहना है कि यह केवल धार्मिक मामला नहींबल्कि देश की आंतरिक सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है। स्थानीय सिख नेताओं ने शिक्षा की कमी और गरीबी को धर्मांतरण का प्रमुख कारण बताया। उनका कहना है कि आर्थिक रूप से कमजोर और सामाजिक रूप से हाशिए पर रहने वाले लोग आसानी से प्रलोभनों का शिकार हो जाते हैं। कई पीड़ितों ने शपथपत्र देकर बताया कि उन्हें दो लाख रुपएआवासशौचालय और अन्य सरकारी योजनाओं का लालच दिया गयालेकिन बाद में कोई लाभ नहीं मिला।

पीलीभीत प्रशासन ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। डीएम संजय कुमार सिंह ने बताया कि एक विशेष जांच टीम (एसआईटीगठित की गई हैजो मामले की तह तक जाएगी। एसपी अभिषेक यादव ने कहा कि मंजीत कौर की शिकायत पर आठ नामजद और दर्जनों अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। साथ ही एक अवैध चर्च को भी हटाया गया है। प्रशासन ने उन गांवों में काउंसलिंग कैंप शुरू किए हैंजहां धर्मांतरण की शिकायतें मिली हैं। हालांकिपूरनपुर तहसील के एसडीएम अजीत प्रताप सिंह का कहना है कि बड़े पैमाने पर सुनियोजित धर्मांतरण की खबरें तो मिल रही हैं, लेकिन सिखों की वेशभूषा बनाए रखने के कारण धर्मांतरण का ठोस सबूत नहीं मिल पा रहा है। हालांकि कुछ सिख समुदाय के लोगों के शपथपत्र और गुरुद्वारा कमेटी की सूची एसडीएम के इस दावे को झूठा साबित करती है।

खुफिया एजेंसियों और ऑल इंडिया सिख पंजाबी वेलफेयर काउंसिल की सूचना पर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मामले का संज्ञान लिया है। सीएम योगी ने सभी सीमावर्ती जिलों में सतर्कता बढ़ाने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश धर्म स्वतंत्रता कानून के तहत सख्त कार्रवाई का आदेश दिया हैजिसके तहत जबरन या प्रलोभन के जरिए धर्मांतरण पर रोक लगाई गई है। सिख संगठनों का कहना है कि यह मामला उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान पर हमला है। वे मांग कर रहे हैं कि जिन लोगों ने खुद अपनी मर्जी से धर्मांतरण किया हैउन्हें अपने दस्तावेजों में धर्म बदलने की जानकारी दर्ज करानी चाहिए। साथ ही वे दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई और उच्चस्तरीय जांच की मांग कर रहे हैं। गुरुद्वारा कमेटियों ने घर वापसी के लिए बड़े पैमाने पर धार्मिक जागरूकता अभियान शुरू किया है।

यह उजागर हो चुका है कि कैसे नेपाल से सटे सीमावर्ती जिलों में ईसाई मिशनरियां धर्मांतरण का जाल फैला रही हैं। नेपाल से सटे सीमावर्ती जिलों में ईसाई धर्मांतरण के मामलों के मामलों पर कार्रवाई भी हो चुकी है। बीते साल यूपी से लोगों को नेपाल ले जाने का मामला सामने आया थाजिसमें हिंदू संगठनों ने आरोपी पादरियों को पकड़कर न सिर्फ पीटा थाबल्कि उनके चेहरों पर कालिख भी पोत दी थी। ईसाई मिशनरियों का जाल अयोध्या तक फैलता जा रहा है।

ईसाई प्रचारक स्थानीय धार्मिक संवेदनशीलताओं को अनुकूलित करने के लिए सोच-समझ कर चर्चों के बजाय प्रार्थना कक्ष और आश्रम जैसे शब्दों का उपयोग करते हैं और हिंदुओं और सिखों के लिए परिचित प्रतीकों और अनुष्ठानों को अपनाते हैं। सिख समुदायों मेंईसाई मिशनरियों ने कथित तौर पर ऐसे पादरी नियुक्त किए हैं जो पगड़ी और कृपाण सहित पारंपरिक सिख पोशाक पहनते हैंजिससे उनके प्रभाव का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। इनमें से कुछ मिशनरीहिंदू नाम होने के बावजूदहिंदू विरोधी गतिविधियों में गहराई से शामिल हैं। उदाहरण के लिएजौनसार क्षेत्र मेंसुंदर सिंह चौहान नामक एक स्थानीय युवक को कथित तौर पर ईसाई धर्म में परिवर्तित कर दिया गया और बाद में चर्च द्वारा पादरी के रूप में नियुक्त किया गया। वह अब स्थानीय आबादी के बीच धर्मांतरण के प्रयासों में सक्रिय रूप से लगा हुआ है। क्षेत्र के कई लोक गायक भी ईसाई मिशनों के प्रभाव में काम कर रहे हैं। खुफिया रिपोर्ट के अनुसारहरबर्टपुर अस्पताल और हल्द्वानी में एक ग्रामीण अस्पताल जैसे विशिष्ट ईसाई संस्थान और अस्पताल मिशनरी गतिविधियों के केंद्र के रूप में उभरे हैं। एक महत्वपूर्ण संस्थानैनीताल में मेथोडिस्ट चर्चजो अब सत्तल आश्रम के नाम से संचालित होती हैइन धर्मांतरण अभियानों में भूमिका निभाने के लिए संदेह के घेरे में है।

सितारगंज मेंरमेश कुमार नामक एक स्थानीय निवासीजिसे अब रमेश मैसी के नाम से जाना जाता हैकथित तौर पर ईसाई मिशन के रैंकों के माध्यम से एक प्रमुख पादरी बन गया है। मैसी ने विधान सभा के लिए चुनाव भी लड़ा और अब उसे चल रहे धर्मांतरण प्रयासों में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में देखा जाता है। राणा आदिवासी समुदाय के अन्य प्रभावशाली व्यक्तिजैसे दान सिंह राणा और गोपाल राणाको भी कथित तौर पर अपने लोगों के बीच ईसाई धर्म को बढ़ावा देने के लिए शामिल किया गया है। झाझरा क्षेत्र मेंडॉ. चंदना नामक एक पादरी ने धर्म के प्रचार में अपनी भूमिका के लिए प्रमुखता प्राप्त की है।

मोदी सरकार के तहत मिशनरी संगठनों को विदेशी सहायता में कमी के बावजूदइन गतिविधियों का जारी रहनाखास तौर पर उत्तराखंड के आदिवासी क्षेत्रों मेंएक बड़ी चुनौती है। थारू बुक्सा जनजाति के 40 प्रतिशत से ज्यादा लोग पहले ही धर्म परिवर्तन कर चुके हैंस्थानीय नेता चिंता जता रहे हैं कि इन समुदायों की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान खतरे में है। इन प्रयासों के पीछे स्थानीय धर्मांतरित लोगों को प्रेरक शक्ति के रूप में इस्तेमाल करना और हिंदू और सिख परंपराओं के साथ ईसाई शिक्षाओं का मिश्रण करना इस मुद्दे को और भी जटिल और संबोधित करना मुश्किल बना देता है।

तराई मेंजहां पंजाब के बाहर सिखों की सबसे बड़ी आबादी रहती हैईसाई मिशनरियों ने अपना धंधा तेज कर दिया है। खास तौर पर अनुसूचित जाति समूहराईख सिख समुदाय के बीच। यह विशेष रूप से चिंताजनक हैक्योंकि इस क्षेत्र का सिख धर्म से गहरा संबंध हैजिसका प्रतीक पवित्र गुरुद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब है। सिख समुदाय की अपने धर्म के प्रति लंबे समय से चली आ रही आस्था के बावजूदईसाई मिशनरी सफलतापूर्वक घुसपैठ कर रहे हैंमिशनरी केंद्रों पर रविवार की प्रार्थनाएं थारू और राईख सिखों दोनों को आकर्षित करती हैं।

सितारगंज में अनुग्रह आश्रम नामक सबसे बड़े धर्मांतरण केंद्रों में से एक मेंरविवार की प्रार्थना सभाओं में थारू और राईख सिख समुदायों के बहुत से लोग आते हैं। मिशनरी उनकी कमज़ोरियों का फ़ायदा उठाते हैंउन्हें ईसाई धर्म में शामिल करने के लिए वित्तीय सहायता और घरेलू सामान की पेशकश करते हैं। बताया जाता है कि प्रार्थना के घंटों बाद उपस्थित लोग पादरी से मिलते हैं जो उन्हें सलाह देते हैं और ईसा मसीह के प्रति समर्पण के ज़रिए जीवन की चुनौतियों से राहत दिलाने का वादा करते हैं। यह पहुंच बच्चों तक भी फैली हुई हैजिन्हें विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में ईसाई मूल्यों की शिक्षा दी जाती हैउन्हें किताबेंस्टेशनरी और ऑनलाइन सीखने के लिए मोबाइल फ़ोन जैसी मुफ्त आपूर्ति का लालच दिया जाता है।

इन मिशनरियों का प्रभाव सितारगंजखटीमा और आस-पास के गांवों जैसे थारू बघोरीपैरपुरापिंडारी और सजनी के थारू-बहुल इलाकों में बढ़ रहा है। निःशुल्क शिक्षा प्रदान करने की आड़ मेंईसाई संस्थाएं व्यवस्थित रूप से बच्चों को ईसा मसीह के जीवन और बाइबिल की कहानियों के बारे में पढ़ा रही हैंजो भविष्य में धर्मांतरण के लिए आधार तैयार कर रही हैं। इनमें से कई बच्चेउच्च शिक्षा तक पहुंचने तकईसाई धर्म में पूरी तरह से एकीकृत हो जाते हैं।

उल्लेखनीय रूप सेनेपाल सीमा के पास स्थित खटीमा विधानसभा क्षेत्र में अमाऊ चर्च की गतिविधियां बढ़ी हैं। मिशनरी संगठन कथित तौर पर भारत और नेपाल के बीच बिना निगरानी के आवाजाही में शामिल हैइसके वाहन अक्सर सीमा पार करते हैं। नेपाल के माओवादी विद्रोह के बादईसाई मिशनरियों के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने भारत-नेपाल सीमा के साथ-साथ वन गांवों में पैर जमा लिए हैंजिनमें रनसाली और कडापानी जैसे क्षेत्र शामिल हैं। मिशनरी नेटवर्क उत्तराखंड के कई अन्य क्षेत्रों तक फैला हुआ हैजिसमें मोहम्मदपुर भुड़ियालोहियापुलउमरकलाफुलैयामझोला और पोलीगंज के गांव शामिल हैंजहां उनके संचालन को ट्रैक करना मुश्किल होता जा रहा है। ये नेटवर्क इतने मजबूत हो गए हैं कि मिशनरी झुग्गी-झोपड़ियों में प्रार्थना केंद्र भी बना रहे हैं। खास बात यह है कि ये मिशनरी अपने पीछे बहुत कम या कोई ऐसा दस्तावेज नहीं छोड़ते जो कानूनी तौर पर धर्म परिवर्तन को साबित कर सकेजिससे उनकी गतिविधियों के दायरे को ट्रैक करना लगभग असंभव हो जाता है। आजधर्म परिवर्तन के बाद नाम भी नहीं बदले जाते हैंजिससे नए ईसाई धार्मिक अल्पसंख्यकों और आदिवासी समूहों को दी जाने वाली कानूनी सुरक्षा का लाभ उठाते रहते हैं।

खुफिया रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि ईसाई मिशनरियों ने उत्तराखंड में नेपाल मूल के गरीब निवासियों को धर्मांतरित करने के लिए लक्षित प्रयास शुरू किए हैं। इन नए धर्मांतरित व्यक्तियों के माध्यम सेमिशनरी प्रभाव पड़ोसी नेपाल में घुसपैठ करना शुरू कर दिया है। इस ऑपरेशन का अधिकांश हिस्सा खटीमा और सितारगंज के केंद्रों से समन्वित किया जाता हैजिससे इस मुद्दे की जटिलता और सीमा पार आयाम बढ़ जाते हैं।

कानून व्यवस्था के लिए खतरा है धर्मांतरण: हाईकोर्ट

प्रयागराज, 22 मई (एजेंसियां)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर सामूहिक धर्म परिवर्तन जबरदस्तीप्रलोभन या धोखाधड़ी से किया जा रहा होतो पुलिस अधिकारी बिना किसी पीड़ित या उनके रिश्तेदार की शिकायत के बगैर भी एफआईआर दर्ज कर सकते हैं और कार्रवाई कर सकते हैं। हाईकोर्ट ने वर्ष 2024 में इस कानून में हुए संशोधन का जिक्र करते हुए कहा कि अब तो कोई भी व्यक्ति इस तरह के अपराध की शिकायत कर सकता है। हाईकोर्ट ने इसे स्पष्ट करने वाला संशोधन माना और कहा कि यह पुराने मामलों पर भी लागू होता है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में गैरकानूनी धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए बनाए गए कानून उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के तहत यह अहम फैसला सुनाया है। यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस विनोद दिवाकर की बेंच ने सुनाया और जौनपुर जिले में दर्ज एक एफआईआर को रद्द करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। दुर्गा यादव नाम के आरोपी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उस पर आरोप है कि उसने जौनपुर के विक्रमपुर में एक चर्च में गरीब ग्रामीणों को मुफ्त इलाज और पैसे का लालच देकर ईसाई मजहब अपनाने के लिए प्रेरित किया। यह काम ईसाई प्रार्थना सभाओं के नाम पर किया जा रहा था। इस मामले में थाने के थानाध्यक्ष ने एफआईआर दर्ज की थीजिसमें दुर्गा यादव और कुछ अन्य लोगों पर गैरकानूनी धर्मांतरण के आरोप लगाए गए थे।

दुर्गा यादव के वकील ने दलील दी कि 2021 के कानून की धारा 4 के तहत केवल पीड़ित व्यक्ति या उनके नजदीकी रिश्तेदार ही शिकायत दर्ज कर सकते हैं। उसका कहना था कि एसएचओ द्वारा दर्ज एफआईआर गैरकानूनी हैक्योंकि वह इस मामले में पीड़ित व्यक्ति नहीं है। जस्टिस विनोद दिवाकर ने इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 4 में किसी भी पीड़ित व्यक्ति का मतलब केवल पीड़ित या उनके रिश्तेदारों तक सीमित नहीं है। हाईकोर्ट ने माना कि इस शब्द का दायरा व्यापक है और इसमें पुलिस अधिकारी जैसे लोग भी शामिल हो सकते हैंजो सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए कार्रवाई करते हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि अगर इस शब्द को संकीर्ण अर्थ में लिया जाएतो यह कानून अपने मकसद को पूरा करने में नाकाम हो जाएगाखासकर तब जब बात सामूहिक धर्म परिवर्तन की होजो आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को निशाना बनाता हो।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि गैरकानूनी धर्म परिवर्तन न केवल व्यक्ति या उनके परिवार के खिलाफ अपराध हैबल्कि यह समाज और सामाजिक व्यवस्था के लिए भी खतरा है। खासकर तबजब सामूहिक धर्म परिवर्तन धोखाधड़ीजबरदस्तीप्रलोभन या गलत तरीकों से किया जाए। हाईकोर्ट ने कहाऐसे मामलों में राज्य मूकदर्शक नहीं रह सकता। हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 25 का हवाला देते हुए कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं है कि कोई भी व्यक्ति जबरदस्तीधोखे या लालच से धर्म परिवर्तन करा सकता है। कोर्ट ने कहा कि यह कानून सार्वजनिक व्यवस्थानैतिकता और स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए बनाया गया हैजो संविधान के अनुच्छेद 25 के अनुरूप है।