कश्मीर जाकर बहा रहे घड़ियाली आंसू
प. बंगाल में हिंदुओं को मारे जाने पर चुप रहने वाले
मुस्लिम तुष्टिकरण का भद्दा उदाहरण है टीएमसी
श्रीनगर, 23 मई (एजेंसियां)। पश्चिम बंगाल में हिंदुओं को चुन-चुन मारे जाने पर चुप रहने वाले शातिर सियासतदान कश्मीर में पाकिस्तानी गोलाबारी में एलओसी पर मारे गए मुस्लिम परिवारों की मातमपुर्सी के लिए कश्मीर पहुंच गए हैं। पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेता कश्मीर जाकर घरियाली आंसू बहा रहे हैं, लेकिन उन्हें अपने ही राज्य के मुर्शिदाबाद में हुई हालिया हिंसा के बाद वहां के हिंदुओं की फिक्र करने की जरूरत महसूस नहीं हुई। मुस्लिम तुष्टिकरण का इससे भद्दा उदाहरण और क्या हो सकता है। तृणमूल कांग्रेस उसी भद्दे उदाहरण की वाहक पार्टी है।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान की पोल खोलने विदेशों में जाने वाले सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में यूसुफ पठान को शामिल होने से ममता बनर्जी ने रोक दिया और उसी ऑपरेशन सिंदूर के बाद प्रभावित इलाकों में जाकर मुस्लिमों के प्रति सहानुभूति दिखाने की कोशिश कर रही है। यह साफ तौर पर तृणमूल कांग्रेस का दोहरा चरित्र है। पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल जम्मू-कश्मीर में है। टीएमसी का दावा है कि उसके नेता पाकिस्तानी गोलीबारी से पीड़ित लोगों का दर्द बांट रहे हैं। यह राजनीतिक पाखंड से अधिक कुछ नहीं है, क्योंकि जिस राज्य के लोगों ने टीएमसी को चुना है, वहां संदेशखाली से लेकर मुर्शिदाबाद तक हिंदुओं के खिलाफ हिंसा को लेकर न सिर्फ टीएमसी चुप रही, बल्कि हिंसा की इन घटनाओं में टीएमसी नेताओं का हाथ भी सामने आया।
टीएमसी का जो पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल 21 मई से 23 मई तक जम्मू-कश्मीर के दौरे पर रहा, उसमें डेरेक ओब्रायन, सागरिका घोष, नदीमुल हक, ममता ठाकुर और पश्चिम बंगाल के मंत्री मानस रंजन भुइंया शामिल थे। डेरेक ओब्रायन ने पुंछ में कहा, हम यहां इन परिवारों को यह बताने आए हैं कि हम उनके साथ हैं। यही बात मुर्शिदाबाद के पीड़ितों के बीच जाकर क्यों नहीं कही थी? मुस्लिम परस्त डेरेक के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है। सागरिका घोष ने भी कहा कि जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती गांवों ने सबसे ज्यादा दुख झेला है और वे यह बताने आए हैं कि वे अकेले नहीं हैं। यह सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है, लेकिन सवाल यह है कि क्या टीएमसी वाकई में इतनी संवेदनशील है, जितना वह दिखाने की कोशिश कर रही है?
अब जरा पश्चिम बंगाल की तरफ नजर डालें। मुर्शिदाबाद में हाल ही में वक्फ (संशोधन) बिल के विरोध की आड़ में जो हिंसा हुई, उसने हिंदुओं को निशाना बनाया। कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा गठित एक जांच समिति की रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि यह हिंसा टीएमसी नेताओं की शह पर हुई। धुलियन शहर में टीएमसी के स्थानीय पार्षद मेहबूब आलम ने हमलों का नेतृत्व किया। मेहबूब आलम हमलावरों के साथ समसेरगंज, हिजलतला, शिउलीतला और डिगरी से आए नकाबपोश मुस्लिमों के साथ मौके पर मौजूद था। हमलावरों ने हिंदुओं के घरों, दुकानों और मंदिरों को निशाना बनाया। इसके बाद स्थानीय विधायक अमीरुल इस्लाम भी वहां पहुंचा। उसने उन घरों की पहचान की जो अभी तक नहीं जले थे, और हमलावरों ने उन घरों में भी आग लगा दी। अमीरुल इस्लाम ने हिंसा को रोकने की कोई कोशिश नहीं की, बल्कि चुपचाप वहां से खिसक गया। यही नहीं, उसने मीडिया में बयान में कहा कि हिंसा में बाहरी लोग शामिल थे, जबकि वो खुद हिंसा में शामिल था।
जांच समिति ने यह भी बताया कि स्थानीय पुलिस पूरी तरह निष्क्रिय रही। जब पीड़ितों ने मदद के लिए पुलिस को फोन किया, तो कोई जवाब नहीं मिला। यह सब स्थानीय पुलिस स्टेशन से महज 300 मीटर की दूरी पर हुआ। पुलिस पूरी तरह से निष्क्रिय और अनुपस्थित रही। भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने पूछा भी कि ममता बनर्जी इन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई कब करेंगी? क्या वे मृतकों के बारे में अपनी पार्टी के नेताओं की अपमानजनक टिप्पणियों के लिए माफी मांगेंगीं?
मुर्शिदाबाद में हिंदुओं के घर जलाए गए, उनकी पानी की पाइपलाइन काट दी गई ताकि आग बुझाई न जा सके, महिलाओं के कपड़े जला दिए गए ताकि वे अपने तन को न ढक सकें। कई लोगों को कुल्हाड़ी से काट डाला गया। कलकत्ता हाई कोर्ट की कमेटी की रिपोर्ट साफ लिखा है कि मुर्शिदाबाद हिंसा में हिंदुओं को अपने घर छोड़कर भागना पड़ा। ऐसे में सवाल तो पूछा ही जाएगा कि क्या टीएमसी का कोई प्रतिनिधिमंडल वहां गया? क्या ममता बनर्जी ने इस हिंसा की निंदा की? नहीं, बल्कि उनकी पार्टी के ही सांसद ने यह कहकर मामले को हल्का करने की कोशिश की कि इसमें बाहरी लोग शामिल थे।
संदेशखाली का मामला भी इससे अलग नहीं है। वहां टीएमसी के स्थानीय नेता शेख शाहजहां और उसके गुर्गों ने स्थानीय हिंदुओं, खासकर महिलाओं के साथ जो अत्याचार किए, वो किसी से छिपे नहीं हैं। जमीन हड़पने से लेकर यौन शोषण तक के आरोप लगे, लेकिन ममता बनर्जी ने शुरू में इसे भाजपा की साजिश करार दे दिया। बाद में जब जांच हुई तो शाहजहां को गिरफ्तार करना पड़ा, लेकिन टीएमसी ने इस मामले में भी कोई संवेदनशीलता नहीं दिखाई। फिर आरजे कर अस्पताल में महिला डॉक्टर की रेप-हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तक हैरानी जताई, लेकिन ममता सरकार को इससे भी फर्क नहीं पड़ा।
ऑपरेशन सिंदूर भारत की तरफ से 7 मई 2025 को शुरू किया गया एक सैन्य अभियान है, जो 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले का जवाब था। इस हमले में आतंकियों पूछ-पूछ कर हिंदुओं को मारा। भारत ने इसके जवाब में पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया, जिसमें 100 से ज्यादा आतंकी मारे गए। इसके बाद पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई की और सीमा पर गोलीबारी शुरू कर दी, जिसमें पुंछ, राजौरी और बारामूला जैसे इलाकों में 15 से ज्यादा नागरिक मारे गए और दर्जनों घायल हुए।
इसके बाद भारत सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर दुनिया भर में अपनी बात रखने के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने का फैसला किया। इसमें टीएमसी के सांसद यूसुफ पठान का नाम भी शामिल था। लेकिन टीएमसी ने इसे लेकर हंगामा खड़ा कर दिया। ममता बनर्जी ने कहा कि केंद्र सरकार यह तय नहीं कर सकती कि टीएमसी की तरफ से कौन प्रतिनिधि जाएगा। यूसुफ पठान ने प्रतिनिधिमंडल में जाने से इनकार कर दिया। बाद में जब विवाद बढ़ा तो अभिषेक बनर्जी को भेजा गया, जिस पर भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी ने सवाल भी उठाए। इन सबके बीच अब उसी ऑपरेशन सिंदूर के बाद प्रभावित इलाकों में जाकर टीएमसी सहानुभूति दिखाने की कोशिश कर रही है। यह साफ तौर पर दोहरा चरित्र है।
ममता बनर्जी और उनकी पार्टी की राजनीति हमेशा से तुष्टिकरण पर आधारित रही है। पश्चिम बंगाल में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के कई मामले सामने आए हैं, लेकिन ममता बनर्जी ने कभी भी इसकी खुलकर निंदा नहीं की। मुर्शिदाबाद में हिंदुओं पर हमले के बाद ममता बनर्जी से कार्रवाई की मांग की गई, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। उलटे टीएमसी के कुछ नेताओं ने इसे बाहरी लोगों की साजिश बताकर पल्ला झाड़ लिया। संदेशखाली में भी ममता बनर्जी ने शुरू में पीड़ितों की बजाय अपने नेताओं का बचाव किया। यहां शेख शाहजहां के गुंडे खुलेआम हथियार लेकर घूम रहे हैं और अब भी हिंदुओं को आतंकित कर रहे हैं। यही नहीं, टीएमसी ने जिस महिला को लोकसभा चुनाव का टिकट दिया, उसने तो यहां तक कह दिया कि संदेशखाली की महिलाएं पीड़ित ही हैं, ये हम कैसे मान लें।
पश्चिम बंगाल में इतना सब कुछ होने के बाद भी टीएमसी ने प्रतिनिधिमंडल भेजना जैसा कदम नहीं उठाया, बल्कि महिला आयोग, मानवाधिकार आयोग, एससी आयोग तक को पीड़ितों तक पहुंचने से रोका। दूसरी तरफ युद्ध के समय पाकिस्तानी गोलाबारी में घायल हुए लोगों से मुलाकात के लिए अपना प्रतिनिधिमंडल भेज दिया। ऐसे में भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी ने इस दौरे को निजी यात्रा करार दिया और कहा, पश्चिम बंगाल में गर्मी ज्यादा है, इसलिए ये लोग कश्मीर चले गए, जहां मौसम सुहाना है। ये लोग पश्चिम बंगाल और हिंदू विरोधी हैं। इन्हें अपने राज्य में कोई दिलचस्पी नहीं है। सुवेंदु का यह बयान भले ही तीखा लगे, लेकिन इसमें सच्चाई है। टीएमसी ने अपने राज्य के मुर्शिदाबाद और संदेशखाली जैसे इलाकों में पीड़ितों की सुध लेने के बजाय कश्मीर में जाकर सहानुभूति दिखाने का नाटक किया।
टीएमसी का यह कश्मीर दौरा राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि चमकाने की कोशिश है। ममता बनर्जी हमेशा से खुद को एक राष्ट्रीय नेता के तौर पर पेश करने की कोशिश करती रही हैं। लेकिन उनकी यह कोशिश तब हास्यास्पद लगती है, जब उनके अपने राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। मुर्शिदाबाद में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा और संदेशखाली में महिलाओं के साथ अत्याचार के बाद भी टीएमसी ने कोई संवेदनशीलता नहीं दिखाई। लेकिन कश्मीर में जाकर वे सहानुभूति का ढोंग कर रहे हैं। सागरिका घोष ने कहा कि वे अपने अनुभव को पार्टी नेतृत्व के सामने रखेंगी ताकि सीमा क्षेत्रों की समस्याएं राष्ट्रीय स्तर पर उजागर हो सकें। लेकिन सवाल यह है कि क्या वे मुर्शिदाबाद और संदेशखाली की समस्याओं को भी राष्ट्रीय स्तर पर उठाएंगी? क्या वे अपनी ही पार्टी के उन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करेंगी, जिनके खिलाफ हिंसा में शामिल होने के सबूत हैं? जवाब है, नहीं। क्योंकि ममता बनर्जी और उनकी पार्टी की राजनीति वोट बैंक पर टिकी है, और वे अपने इस वोट बैंक को नाराज नहीं करना चाहतीं। ममता बनर्जी को चाहिए कि वे पहले अपने राज्य में कानून-व्यवस्था को दुरुस्त करें। मुर्शिदाबाद में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। संदेशखाली में पीड़ित महिलाओं को इंसाफ दिलाएं। अगर वे ऐसा नहीं करतीं, तो कश्मीर में उनकी यह सहानुभूति यात्रा सिर्फ एक नौटंकी ही कहलाएगी। पश्चिम बंगाल की जनता यह सब देख रही है और आने वाले दिनों में वह इसका जवाब जरूर देगी।