विश्व को कच्चे तेल की सप्लाई में आएगी बड़ी बाधा
ईरान की संसद ने होर्मुज स्ट्रेट बंद करने का फैसला लिया
रूस ने ईरान का समर्थन देने का किया खुला ऐलान
भारत में तेल-गैस के दाम बढ़ने का अंदेशा गहराया
तेहरान, 23 जून (एजेंसियां)। ईरान की संसद ने होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इस पर अंतिम फैसला अब ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद द्वारा लिया जाएगा। ईरान की संसद ने अमेरिका द्वारा ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर हमला किए जाने के बाद होर्मुज स्ट्रेट बंद करने का फैसला लिया। ईरानी संसद के इस फैसले से पश्चिम एशिया में तनाव काफी बढ़ गया है और दुनियाभर में तेल आपूर्ति को लेकर चिंता बढ़ गई है। ईरान के विदेश मंत्री सईद अब्बास अरागची ने कहा है कि ईरान के पास और भी कई विकल्प हैं। होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करना इनमें सबसे प्रभावशाली और खतरनाक विकल्प माना जा रहा है।
होर्मुज जलडमरूमध्य फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी से जोड़ता है और यह दुनिया का सबसे अहम तेल व्यापार मार्ग है। इस संकीर्ण समुद्री रास्ते से सऊदी अरब, ईरान, यूएई जैसे देशों का तेल और गैस दुनियाभर में जाता है। इसकी चौड़ाई सबसे संकरे हिस्से में सिर्फ 33 किलोमीटर है, जिससे इसे रोकना या बाधित करना आसान हो जाता है। अमेरिकी ऊर्जा सूचना प्रशासन (ईआईए) के अनुसार वर्ष 2024 में दुनिया के समुद्री तेल व्यापार का 25 प्रतिशत और लिक्विड नैचुरल गैस (एलएनजी) का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा इसी जलडमरूमध्य से होकर गुजरा। अगर ईरान इस जलमार्ग को बंद करता है तो इससे वैश्विक तेल आपूर्ति बाधित होगी और कीमतों में भारी उछाल आ सकता है।
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है और इसका एक बड़ा हिस्सा मध्य पूर्व से आता है। ईआईए की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2024 में होर्मुज जलडमरूमध्य से गुजरने वाले तेल का 69 प्रतिशत हिस्सा चीन, भारत, जापान और दक्षिण कोरिया को गया। अगर यह रास्ता बाधित होता है तो भारत को तेल मिलना मुश्किल नहीं होगा, लेकिन दाम जरूर बढ़ सकते हैं। भारत रूस, अमेरिका और अफ्रीका जैसे विकल्पों से भी तेल खरीदता है, लेकिन कीमतों में उतार-चढ़ाव का असर पेट्रोल-डीजल से लेकर अन्य उत्पादों पर भी पड़ेगा। इस स्थिति से निपटने के लिए भारत सरकार ने तैयारी शुरू कर दी है। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने कहा है कि भारत फारस की खाड़ी के बाहर से तेल मंगाने की योजना बना रहा है और रिफाइन्ड प्रोडक्टस (जैसे पेट्रोल-डीजल) के निर्यात में कटौती करेगा।
अमेरिका द्वारा ईरान पर सैन्य हमले के जवाब में ईरान की संसद ने दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण तेल मार्गों में से एक होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने के पक्ष में मतदान किया। इस कदम ने वैश्विक बाजारों में बेचैनी बढ़ा दी है और कच्चे तेल की कीमतों में तेज उछाल की आशंका गहरा गई है। ईरानी संसद से पारित होने के बाद इस पर आखिरी निर्णय ईरान की सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल द्वारा लिया जाएगा। लेकिन यह संकेत मिल रहा है कि तेहरान अपने जवाबी कदमों पर नरमी बरतने वाला नहीं है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका और इजराइल द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमलों के बाद पैदा हुआ तनाव अब वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा को सीधे चुनौती दे रहा है। उस पर ईरानी सासंद के फैसले ने कच्चे तेल की कीमतों में 5 डॉलर तक की तत्काल वृद्धि की संभावना बढ़ा दी है। ऐसे में अगर यह समुद्री मार्ग बंद होता है, तो तेल कीमतों में बेतहाशा वृद्धि से दुनियाभर में महंगाई और आर्थिक अस्थिरता फैल सकती है। यह हालात वैश्विक मंदी की ओर ले जा सकते हैं। ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत पहले ही शुक्रवार तक 77 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच चुकी थी, जो कि जून के मध्य से अब तक 10 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। जानकारों का कहना है कि रविवार देर रात (यूके समयानुसार) जब वैश्विक बाजार खुलेंगे, तब इसमें और उछाल आ सकता है।
बीते कुछ वर्षों में भारत ने खाड़ी के देशों से तेल की निर्भरता काफी कम कर दी है। भारत ने तेल आपूर्ति के स्रोतों में विविधता लाई है। रूस, अमेरिका, ब्राजील, और पश्चिम अफ्रीका जैसे देशों से तेल आयात किया जाता है, जो होर्मुज जलडमरूमध्य पर निर्भर नहीं हैं। उदाहरण के लिए, रूस से तेल स्वेज नहर, केप ऑफ गुड होप या प्रशांत महासागर के रास्ते आता है। इसके अलावा भारत सरकार इसी माह से हर दिन रूस से 20-22 लाख बैरल प्रतिदिन तेल का आयात कर रहा है। हाल ही में केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने कहा था कि भारत के पास 74 दिनों का तेल का स्टोरेज है। ऐसे में अगर आपातकाल की स्थिति आती भी है तो भारत इस हालात को संभाल लेगा।
भारत ने तेल आयात के लिए 40 देशों से स्रोत विकसित किए हैं, जो पहले 27 थे। सरकार तेल की कीमतें 105 डॉलर प्रति बैरल से अधिक होने पर ईंधन पर उत्पाद शुल्क की समीक्षा कर सकती है, ताकि जनता को राहत दी जा सके। भारत ने 2019 में होर्मुज में टैंकरों पर हमले के बाद नौसेना तैनात की थी और कूटनीतिक रास्ते अपनाए थे, जो संकट के समय फिर से उपयोग में लाए जा सकते हैं।
ईरान पर हुए अमेरिकी हमले के बाद रूस ईरान के समर्थन में खुल कर आ गया है। रूस ने अमेरिकी हमले की कड़ी निंदा की है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराघची से मुलाकात के बाद कहा कि रूस ईरान को हरसंभव मदद देगा। इसके बाद क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने कहा कि इस तनावपूर्ण स्थिति में तेहरान जो भी मदद मांगेगा, रूस देने को तैयार है। उन्होंने कहा कि ईरान को किस तरह की मदद चाहिए, यह फैसला तेहरान को करना है। पेसकोव ने कहा कि हमने ईरान को मध्यस्थता की पेशकश की है। यह हमारी तरफ से एक ठोस मदद है। ईरान को जो भी जरूरत होगी, हम उसके अनुसार मदद करने को तैयार हैं।
इस तरह रूस ने ईरान और इजराइल के बीच चल रहे तनाव को लेकर अपना पक्ष बिल्कुल साफ कर दिया है। पेसकोव ने कहा कि रूस का यह रुख भी ईरान के लिए समर्थन का एक अहम तरीका है। हमने इस मुद्दे पर खुलकर अपना पक्ष दुनिया के सामने रखा है। यह भी ईरान के प्रति हमारे समर्थन का संकेत है। पेसकोव ने यह भी बताया कि हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच हुई बातचीत में ईरान का मुद्दा कई बार उठा है।
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