यूपी में बिजली निजीकरण के खिलाफ देशभर में हुए प्रदर्शन
9 जुलाई को राष्ट्रव्यापी हड़ताल का ऐलान
लखनऊ, 02 जुलाई (ब्यूरो)। नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्प्लाइज एंड इंजीनियर्स के आह्वान पर बुधवार को देश भर में विरोध-प्रदर्शन हुआ। निजीकरण के विरोध में हुए प्रदर्शन में बिजली कर्मचारियों, अभियंताओं के साथ ही किसान संगठनों और उपभोक्ता संगठनों ने भी हिस्सा लिया। सभी ने नौ जुलाई को राष्ट्रव्यापी हड़ताल में हिस्सा लेने का संकल्प लिया।
इस दौरान पूर्वांचल और दक्षिणांचल का निजीकरण प्रस्ताव रद्द करने की मांग की गई। विभिन्न राज्यों में विरोध प्रदर्शन में संबंधित राज्यों की बिजली समस्या के साथ ही पूर्वांचल और दक्षिणांचल का मुद्दा उठा। उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों और परियोजना कार्यालयों पर हुए प्रदर्शन में निजीकरण को भ्रष्टाचार की उपज बताया गया।
राजधानी लखनऊ में रेजिडेंसी पर हुए विरोध-प्रदर्शन में काफी संख्या में संयुक्त किसान मोर्चा का बैनर लेकर किसान शामिल हुए। रेजिडेंसी और मध्यांचल मुख्यालय पर प्रदर्शन के बाद सभा हुई। इस दौरान पदाधिकारियों ने आरोप लगाया कि प्रदेश सरकार ने विद्युत वितरण निगमों में घाटे के भ्रामक आंकड़ों देकर पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का निर्णय लिया है, जिससे प्रदेश के बिजली कर्मियों में काफी गुस्सा है। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदेश में गलत पावर परचेज एग्रीमेंट के चलते विद्युत वितरण निगमों को निजी बिजली उत्पादन कंपनियों को बिना एक भी यूनिट बिजली खरीदे 6761 करोड़ का सालाना भुगतान करना पड़ रहा है। इसके अतिरिक्त निजी घरानों से बहुत महंगी दरों पर बिजली खरीदने के कारण लगभग 10000 करोड़ सालाना का अतिरिक्त भार आ रहा है।
उत्तर प्रदेश में सरकारी विभागों पर 14400 करोड़ का बिजली राजस्व का बकाया है। प्रदेश सरकार की नीति के अनुसार किसानों को मुफ्त बिजली दी जाती है, गरीबी रेखा से नीचे के बिजली उपभोक्ताओं को 03 रुपए प्रति यूनिट की दर पर बिजली दी जाती है। जबकि बिजली की लागत 07.85 रुपए पैसे प्रति यूनिट है। बुनकरों आदि को भी सब्सिडी दी जाती है। सब्सिडी की धनराशि ही लगभग 22000 करोड़ रुपए है। प्रदेश सरकार इन सबको घाटा बताती है और इसी आधार पर निजीकरण का निर्णय लिया गया है।
प्रदर्शन के दौरान केंद्रीय नेताओं ने आरोप लगाया कि पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड और शासन के कुछ बड़े अधिकारियों की कुछ चुनिंदा निजी घरानों के साथ मिलीभगत है। वे लाखों करोड़ रुपए की बिजली की परिसंपत्तियों को कौड़ियों के मोल निजी घरानों को बेचना चाहते हैं। पूर्वांचल में प्रदेश की सबसे गरीब जनता रहती है। दक्षिणांचल में बुंदेलखंड के क्षेत्र में बेहद गरीब लोग रहते हैं जहां पीने के पानी की भी समस्या है। निजीकरण होने के बाद यहां के उपभोक्ताओं की सब्सिडी समाप्त होने का अर्थ होगा कि उपभोक्ताओं को 10 से 12 रुपए प्रति यूनिट की दर पर बिजली खरीदनी पड़ेगी जो वे नहीं कर पाएंगे। इस प्रकार उत्तर प्रदेश की गरीब जनता को लालटेन युग में धकेला जा रहा है। बिजली कर्मचारियों ने चेतावनी दी है कि यदि उत्पीड़न करने की कोशिश की गई तो देश के 27 लाख बिजली कर्मी मूक दर्शन नहीं रहेंगे। वे सड़क पर उतर कर आंदोलन करने के लिए बाध्य होंगे। जिसकी सारी जिम्मेदारी प्रदेश सरकार की होगी। नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज एंड इंजीनियर्स का दावा है कि बुधवार को हैदराबाद, त्रिवेंद्रम, विजयवा
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