बेतुका बोले, विदेश घूमे, आरोप लगाए... और क्या!
नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के योगदान का लेखा जोखा
संसद में औसत से भी कम रही उपस्थिति
नई दिल्ली, 04 जुलाई (एजेंसियां)। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता के बतौर पिछले एक साल में भारतीय राजनीति और समाज को क्या-क्या योगदान दिए, उसे लेकर समीक्षा हो रही है। इस समीक्षा में यह भी शामिल है कि पहलगाम हमले के बाद भारत द्वारा पाकिस्तान पर की गई ऑपरेशन सिंदूर की कार्रवाई पर राहुल गांधी ने कितने फूहड़ और देश विरोधी बयान दिए। ऑपरेशन सिंदूर के बाद विदेशों में भारत का पक्ष रखने गए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों को लेकर भी राहुल गांधी के बयान देश के लोगों को अत्यंत नागवार लगा। राहुल गांधी का अपनी ही पार्टी के सांसद शशि थरूर के खिलाफ बोलना मजाकिया तरीके से सुर्खियां बना रहा। थरूर ने दुनियाभर में भारत का मान बढ़ाया तो राहुल गांधी शशि थरूर का मान घटाने में लगे रहे। पूरे देश ने इसे देखा।
इस दौरान में संसद में राहुल गांधी की उपस्थिति औसत से भी कम रही। इस अनुपस्थिति का कारण राहुल गांधी का जमीनी जन-सम्पर्क नहीं रहा, बल्कि कुछ अन्य एजेंडे में उनकी व्यस्तता रही। इसी दरम्यान राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी हरियाणा, दिल्ली और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारी। राहुल गांधी ने यह अवधि भारत सरकार और चुनाव आयोग को गरियाने, बदनाम करने और आरोप लगाने में ही गंवाई। लिहाजा राहुल गांधी का नेता प्रतिपक्ष का अब तक का कार्यकाल ही बेमानी विवादों, नाकामियों और कांग्रेस की पराजय से भरा रहा। 40 से भी अधिक दिन विदेश में बिताने, तथ्यहीन और जहरीले बयानों और संसद में औसत से कम उपस्थिति ने उनके नेतृत्व पर गंभीर सवाल खड़े किए। दिल्ली, हरियाणा और महाराष्ट्र में हार ने साबित किया कि राहुल का चेहरा अब कांग्रेस के लिए बोझ बन चुका है। उनके नासमझ बयानों ने न सिर्फ पार्टी की साख को ठेस पहुंचाई, बल्कि भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी नुकसान पहुंचाया।
पिछले एक साल में राहुल गांधी ने 40 से अधिक दिन विदेश में बिताए। ये वो नेता हैं, जिन्हें कांग्रेस ने विपक्ष का चेहरा बनाया, लेकिन वे बार-बार देश छोड़कर विदेश सैर-सपाटे पर निकल पड़ते हैं। इसीलिए उन्हें पार्ट-टाइम पॉलिटिशियन भी कहा जाता है। जून 2024 में राहुल गांधी लंदन गए। कांग्रेस ने दावा किया कि वो अपनी भतीजी मिराया वाड्रा के ग्रेजुएशन समारोह में शामिल होने गए थे। चर्चा हुई कि राहुल बहरीन भी गए थे, लेकिन कांग्रेस ने स्पष्ट किया कि उनकी फ्लाइट का रूट दिल्ली-बहरीन-लंदन था। यह यात्रा तब हुई जब कांग्रेस गोवा में दलबदल की घटनाओं से जूझ रही थी। ऐसे वक्त में राहुल की विदेश यात्रा ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया।
मार्च 2025 में होली के दौरान राहुल गांधी वियतनाम में थे। यह राहुल गांधी की गुप्त यात्रा थी। इस तरह की गुप्त यात्राएं राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानी जाती हैं। कांग्रेस ने कहा कि राहुल गांधी वियतनाम के आर्थिक मॉडल का अध्ययन करने गए थे। राहुल ने वियतनाम में 22 दिन बिताए, जबकि अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली से वे परहेज करते हैं। राहुल गांधी की सितंबर 2024 की अमेरिका यात्रा तो सबसे अधिक विवादों में रही। टेक्सास, वर्जीनिया और वाशिंगटन में राहुल ने भाजपा, आरएसएस और पीएम मोदी पर तीखे और अनपेक्षित हमले किए। उनके बयानों ने कांग्रेस को मुश्किल में डाल दिया। उन्होंने भारत के लोकतंत्र को सीरिया और इराक जैसे युद्धग्रस्त देशों से जोड़ा, जिस पर भाजपा ने उन्हें देशद्रोही तक करार दिया। राहुल गांधी अमेरिकी सांसद इल्हान उमर से भी मिले, जो भारत विरोधी के रूप में कुख्यात है। इस मुलाकात ने सियासी हंगामा मचा दिया। राहुल ने सिख समुदाय और आरक्षण पर भी बयान दिए, जिन्हें सिख संगठनों और मायावती ने अपमानजनक बताया। इस यात्रा ने कांग्रेस की छवि को भारी नुकसान पहुंचाया।
40 से अधिक दिनों तक भारत के नेता प्रतिपक्ष के विदेश में रहने से भारत को क्या हासिल हुआ? क्या कोई नीति बनी? क्या कांग्रेस को नया रास्ता दिखाया? इसका जवाब है क्या है, सब जानते हैं। राहुल गांधी की विदेश यात्राएं भारत विरोधी बयानबाजियों, निजी वजहों, समारोहों और विवादित मुलाकातों में ही सीमित रहीं। देश की जनता को जवाब देने के बजाय राहुल गांधी विदेशी मंचों पर भारत की छवि खराब करने में व्यस्त रहे।
राहुल गांधी के बयानों ने पिछले एक साल में कांग्रेस को बार-बार अजीबोगरीब स्थिति में फंसाया है। उनके बयान न सिर्फ तथ्यहीन पाए गए, बल्कि देश के खिलाफ जहर उगलने वाले भी साबित हुए। सितंबर 2024 में अमेरिका में राहुल ने कहा कि भारत का मैनुफैक्चरिंग सेक्टर कमजोर है और मेक इन इंडिया बुरी तरह से हो चुका है। जबकि तथ्य यह है कि भारत का रक्षा निर्यात 19 लाख करोड़ से बढ़कर 75 लाख करोड़ रुपए हो गया है। 2024 में भारत ने 4.5 मिलियन गाड़ियों की बिक्री की, जो वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा बाजार है। राहुल का यह बयान झूठा था और भारत की प्रगति को कमतर दिखाने की साजिश था। राहुल ने यह भी दावा किया कि भारत में ऑटोमोबाइल सेक्टर ठप्प है। लेकिन हकीकत यह है कि 2024 में भारत में कारों की बिक्री 4.5 मिलियन यूनिट्स यानी 45 लाख से अधिक गाड़ियों की बिक्री की संख्या को पार कर गई। राहुल के इतने गैर जिम्मेदारी से भरे बयान ने उनकी आर्थिक समझ की भी पोल खोल कर रख दी।
राहुल गांधी ने अमेरिका में कहा कि भारत में आरक्षण खत्म हो सकता है। इस बयान पर बसपा सुप्रीमो मायावती भड़क गईं और कांग्रेस पर आरक्षण विरोधी होने का आरोप लगाया। राहुल ने बाद में सफाई दी कि वो जातिगत जनगणना की बात कर रहे थे, लेकिन तब तक तो पार्टी का नुकसान हो चुका था। लोगों ने इसे दलित-विरोधी बयान करार दिया। सितंबर 2024 में अमेरिका में राहुल गांधी ने भारत के लोकतंत्र को सीरिया और इराक जैसे युद्धग्रस्त देशों से जोड़ा। यह बयान देशद्रोह की श्रेणी में आता है कि नहीं? कोई सामान्य नागरिक ऐसी बात बोले तो क्या उसे छोड़ दिया जाएगा? लोग पूछते हैं कि क्या कोई जिम्मेदार नेता अपने देश की तुलना ऐसे देशों से करेगा?
अमेरिका में ही राहुल ने सिखों के अधिकारों पर बयान दिया, जिसे सिख संगठनों ने अपमानजनक माना। इस बयान ने पंजाब में कांग्रेस की स्थिति को और कमजोर कर दिया। मई 2025 में राहुल गांधी ने भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर पर निशाना साधते हुए कहा कि भारत की विदेश नीति ध्वस्त हो चुकी है। यह बयान राहुल गांधी की अंतरराष्ट्रीय मामलों में अज्ञानता और कूटनीतिक नासमझी को उजागर करने वाला साबित हुआ। बोस्टन में राहुल गांधी ने महाराष्ट्र चुनावों में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग पर सवाल उठाए। महाराष्ट्र चुनाव में हारने की खीझ राहुल गांधी बोस्टन में उतार रहे थे। चुनाव आयोग ने उनके दावों को तथ्य और आंकड़े प्रस्तुत कर खारिज कर दिया।
2024 के लोकसभा चुनाव के बाद भी राहुल गांधी ने अमेरिका के नेशनल प्रेस क्लब में कहा था कि भारत में लोकतंत्र पिछले 10 सालों से टूटा (ब्रोकेन) हुआ था, अब यह लड़ रहा है। दरअसल, इन चुनावों में 10 साल बाद कांग्रेस को लोकसभा चुनावों में विपक्ष के नेता का पद हासिल हो पाया था, क्योंकि वह 99 सीटों पर पहुंची थी। ऐसे में राहुल पर यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या 2014 और 2019 में देश में जो चुनाव हुए, उसमें देश की जनता ने वोट नहीं डाला था? इन बयानों से साफ है कि राहुल गांधी न तो तथ्यों की परवाह करते हैं, न ही देश की छवि की। उनके बयान कांग्रेस को बार-बार मुश्किल में डालते हैं और विपक्ष की एकता को कमजोर करते हैं। विदेशी मंचों पर भारत को बदनाम करने की उनकी आदत ने कांग्रेस की बची खुची साख को तार-तार कर दिया है।
राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने पिछले एक साल में कई महत्वपूर्ण चुनावों में करारी हार झेली। दिल्ली, हरियाणा, और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन इतना खराब रहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट गया। हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी। राहुल गांधी ने कई रैलियां कीं, लेकिन उनकी सिखों और आरक्षण पर टिप्पणियों ने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया। भाजपा ने 48 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस 37 पर सिमट गई। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल ने हरियाणा की 12 विधानसभाओं को कवर किया था, लेकिन इनमें से सिर्फ 4 पर जीत मिली।
2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव कांग्रेस इंडी गठबंधन का हिस्सा थी, लेकिन राहुल की अगुवाई में गठबंधन बुरी तरह हारा। भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने 230 से अधिक सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस को 40 से भी कम सीटें मिलीं। राहुल की रणनीति और बयानबाजी ने गठबंधन को कमजोर किया। उनकी अनुपस्थिति और विवादित बयानों ने कार्यकर्ताओं का जोश ठंडा कर दिया। इस हार को स्वीकार करने के बजाय राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर अनर्गल आरोप लगा कर अपना नाबालिगपन फिर से जगजाहिर किया। दिल्ली में कांग्रेस का प्रदर्शन एमसीडी चुनावों में भी निराशाजनक रहा। 2022 में ही पार्टी का सबसे खराब प्रदर्शन दर्ज हुआ था और 2024 में भी स्थिति नहीं सुधरी। राहुल की अनुपस्थिति और कमजोर नेतृत्व ने कांग्रेस को आम आदमी पार्टी और भाजपा के सामने बौना बना दिया। दिल्ली में कांग्रेस का संगठन पूरी तरह बिखर चुका है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 2023 के चुनावों में कांग्रेस की हार से भी राहुल गांधी नेतृत्व और उनकी रणनीति पर सवाल उठा चुके हैं।
नेता प्रतिपक्ष के तौर पर राहुल गांधी की संसद में उपस्थिति इतनी कम रही कि ये किसी मजाक से कम नहीं। जब देश के गंभीर मुद्दों पर चर्चा हो रही थी, राहुल गांधी या तो विदेश में थे या संसद से गायब। यही नहीं, संसद में राहुल गांधी ने सिर्फ 8 बहसों में हिस्सा लिया, जबकि राष्ट्रीय औसत 15 बहसों का है। वहीं, एक भी प्राइवेट मेंबर बिल तक नहीं ला सके। इसके अलावा सवाल पूछने के मामले में भी राहुल गांधी औसत से बहुत पीछे रहे। संसद के मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र में राहुल की उपस्थिति 50 प्रतिशत से भी कम रही। रक्षा, विदेश नीति, और आर्थिक मुद्दों पर बहस के दौरान राहुल गांधी संसद से अक्सर गायब रहे। जब वो आए, तो उनके बयान तथ्यहीन और विवादित ही रहे। यहां तक कि राहुल गांधी ने उपराष्ट्रपति की नकल उतारते हुए टीएमसी सांसद की भौंडी हरकतों का वीडियो बना कर उसे सोशल मीडिया पर साझा करने की ओछी हरकत की। इस हरकत ने राहुल गांधी को देश के सामने मजाकिया बना कर रख दिया।
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