इस साल भारत आया 135.46 बिलियन डॉलर
प्रवासी भारतीयों द्वारा भारत भेजे जाने वाले धन का बज रहा डंका
धन-प्रेषण मामले में भारत विश्व में सर्वोच्च स्थान पर कायम
प्रवासी भारतीयों की आर्थिक ताकत में सेंध लगाने की कोशिश
अमेरिका ने विदेशी धन हस्तांतरण पर लगाया 1 प्रतिशत कर
अमेरिका की देखादेखी कई अन्य देश भी बाधा डालने में लगे
शुभ-लाभ सरोकार
विभिन्न देशों में रहने वाले भारतीय नागरिकों द्वारा अपने घर भेजे जाने वाला धन पूरी दुनिया में धूम मचा रहा है। धन प्रेषण के मामले में भारत दुनिया में शीर्ष स्थान पर कायम है। वित्त वर्ष 2024-25 में यह रिकॉर्ड 135.46 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया है। यह आंकड़ा पिछले वर्ष की तुलना में 14 प्रतिशत की वृद्धि दिखा रहा है और दुनियाभर में भारतीय प्रवासियों की बढ़ती आर्थिक ताकत को भी दिखाता है। प्रवासी भारतीयों की इस आर्थिक ताकत में सेंध लगाने की साजिशें हो रही हैं। इसमें वही देश शामिल हैं, जिन देशों में भारतीय अपना श्रम और अपनी बुद्धि लगाकर पैसे कमाते हैं और उस देश को भी समृद्ध बनाते हैं। खास तौर पर अमेरिका में हो रहा नासमझ बदलाव इस महत्वपूर्ण आर्थिक जीवनरेखा के लिए संभावित खतरा पैदा कर रहा है।
आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि विदेशों से आया 135.46 बिलियन डॉलर का धन भारत के कुल चालू खाता (करंट एकाउंट) में आए कुल 1 ट्रिलियन डॉलर धन का 10 प्रतिशत से अधिक है। इन प्रेषणों को भारत के चालू खाते में निजी हस्तांतरण के अंतर्गत वर्गीकृत किया जाता है। यह पारंपरिक रूप से देश की बाहरी वित्तीय शक्ति को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की रिपोर्ट बताती है कि प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजा जाने वाला धन आम तौर पर भारत के कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह से अधिक है। एफडीआई अस्थिर और वैश्विक पूंजी प्रवृत्तियों (ग्लोबल कैपिटल ट्रेंड) के प्रति अधिक संवेदनशील बना हुआ है, लेकिन प्रवासी भारतीयों द्वा भेजा गया धन विदेशी मुद्रा का अधिक सुसंगत और विश्वसनीय स्रोत साबित हो रहा है।
भारतीय प्रवासी 100 से अधिक देशों में फैले हुए हैं, लेकिन कुछ मुट्ठी भर देशों से ही ज्यादातर धन आता है। अमेरिका इस मामले में सबसे आगे है, जिसने 2024-25 में भारत को भेजे जाने वाले कुल धन में 27.7 प्रतिशत का योगदान दिया। संयुक्त अरब अमीरात 19.2 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर है, जबकि यूनाइटेड किंगडम और सऊदी अरब ने क्रमशः 10.8 प्रतिशत और 6.7 प्रतिशत का योगदान दिया।
यह आंकड़ा धन प्रेषण की गतिशीलता में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है। ऐतिहासिक रूप से, यूएई और सऊदी अरब जैसे खाड़ी देशों से आने वाले धन का वर्चस्व रहा है। यह धन मुख्य रूप से निर्माण और सेवा क्षेत्रों में काम करने वाले भारतीयों के जरिए आता रहा है। पश्चिमी अर्थव्यवस्था खास तौर पर प्रौद्योगिकी, वित्त और स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में भारतीयों की बढ़ती पेशेवर हिस्सेदारी के कारण खाड़ी देशों से होने वाले धन प्रेषण के ट्रेंड को प्रभावित किया है। विश्व बैंक ने 2024 कैलेंडर वर्ष के लिए भारत को शीर्ष धन-प्रेषण प्राप्त करने वाले देश के रूप में स्थान दिया है। विश्व बैंक का अनुमान है कि भारत में विदेशों से 129 बिलियन डॉलर धन भेजा गया। भारत के बाद मेक्सिको (डॉलर 68 बिलियन), चीन (डॉलर 48 बिलियन), फिलीपींस (डॉलर 40 बिलियन) और पाकिस्तान (डॉलर 33 बिलियन) का स्थान है। यानि, भारत का परफॉर्मेंस कहीं ऊपर और कहीं अधिक है।
धन प्रेषण केवल एक आर्थिक आंकड़ा नहीं है, बल्कि एक सामाजिक और विकासात्मक जीवन रेखा भी है। वे खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी भारत में घरेलू आय, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और छोटे पैमाने के निवेश में महत्वपूर्ण रूप से योगदान करते हैं। आरबीआई और विश्व बैंक के अध्ययनों के अनुसार, प्रवासी भारतीयों द्वारा भारत भेजा जाने वाला धन प्राप्तकर्ता परिवारों को बेहतर जीवन स्तर, उच्च स्तर का वित्तीय समावेशन और अधिक स्थिर उपभोग संतुलन की स्थितियां देता है।
धन प्रेषण में वृद्धि का एक मुख्य कारण अत्यधिक कुशल श्रमिकों का विकसित अर्थव्यवस्थाओं की ओर पलायन है। आईडीएफसी फर्स्ट बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री गौरा सेनगुप्ता का कहना है कि कच्चे तेल की कीमतों में कमजोरी के बावजूद धन प्रेषण में मजबूत वृद्धि जारी रही है। तेल की कीमतों के रुझान ने पहले खाड़ी-आधारित धन प्रेषण को प्रभावित किया था। लेकिन बाद में कुशल श्रमिकों की अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और सिंगापुर जैसे देशों में बढ़ी हिस्सेदारी के कारण यह उधर शिफ्ट हुआ है। यह प्रवृत्ति भारत की विस्तारित उच्च शिक्षा प्रणाली और आईटी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा और शिक्षा जगत में भारतीय पेशेवरों की बढ़ती मांग से प्रेरित है। भारतीय मूल के कामगारों को उच्च वेतन वाली भूमिकाओं में रोजगार मिल रहा है, जिसका अर्थ है कि उनके देश यानि भारत में धन का प्रवाह अधिक और नियमित हो रहा है।
अमेरिका जैसे देशों में हो रहा नीतिगत बदलाव भारत में होने वाले धन प्रेषण के उछाल में ब्रेक लगा सकता है। यह बदलाव भविष्य में होने वाले धन-प्रवाह को कम कर सकता है। 1 जुलाई को अमेरिकी सीनेट ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के वन बिग ब्यूटीफुल बिल एक्ट को पारित कर दिया, जो एक व्यापक राजकोषीय और कराधान पैकेज है। इसके कई प्रावधानों में गैर-नागरिकों द्वारा किए गए सभी विदेशी धन हस्तांतरण पर एक विवादास्पद नया 1 प्रतिशत कर शामिल है। यह धन-प्रेषण कर नकद, मनीऑर्डर और कैशियर चेक के माध्यम से किए गए हस्तांतरण पर लागू होगा, जिससे लाखों अप्रवासी श्रमिकों पर लागत का बोझ बढ़ सकता है। यह कर कम और मध्यम आय वाले लोगों को अनुचित रूप से दंडित करेगा, है जिनके परिवार मूल देशों में रहते हैं और वे बाहर से आने वाले धन पर ही निर्भर हैं।
नया कर भारतीय प्रवासियों को, खास तौर पर एच-1-बी या छात्र/कार्य परमिट जैसे अस्थायी वीजा पर अमेरिका में काम करने वाले लोगों को, असंगत रूप से प्रभावित कर सकता है। मामूली कर भी धन प्रेषण की मात्रा में महत्वपूर्ण कमी ला सकता है। यह हवाला जैसे अनौपचारिक और गैरकानूनी चैनलों को बढ़ावा देने वाला भी साबित हो सकता है। अमेरिका के अलावा, अन्य देश भी अपनी आव्रजन और राजकोषीय नीतियों का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं, जो धन प्रेषण प्रवाह को प्रभावित कर सकता है। ब्रिटेन ने परिवार के पुनर्मिलन के लिए नए वीजा प्रतिबंध लागू किए हैं, जबकि सिंगापुर विदेशी पेशेवरों के लिए नियमों को सख्त कर रहा है। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक अनिश्चितताएं मुद्रास्फीति, भू-राजनीतिक तनाव और धीमी वृद्धि प्रवासी समुदायों की आय को और कम कर सकती हैं।
आरबीआई ने इन जोखिमों को स्वीकार करते हुए कहा है कि धन प्रेषण प्रवाह बाहरी देशों की रोजगार स्थितियों, विनिमय दर में उतार-चढ़ाव और विनियामक परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील है। वैश्विक मंदी या आव्रजन नीति में बड़ा बदलाव भारत की धन प्रेषण प्राप्तियों में लगातार वृद्धि को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। भविष्य में होने वाली बाधाओं से निपटने के लिए, भारतीय नीति निर्माता अब धन प्रेषण पारिस्थितिकी तंत्र को औपचारिक और मजबूत बनाने पर विचार कर रहे हैं। इन पहलों में लेनदेन लागत को कम करना, डिजिटल मनी ट्रांसफर इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार करना और भारतीय प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए विदेशी सरकारों के साथ साझेदारी करना शामिल है।
विदेश मंत्रालय और वित्त मंत्रालय भी हाल ही में हुए नियामकीय बदलावों पर चिंताओं को दूर करने के लिए अमेरिका और खाड़ी देशों के साथ बातचीत कर रहे हैं। इसके अलावा, यूरोप, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका में उभरते गलियारों को लक्षित करते हुए धन प्रेषण प्रवाह विविधीकरण पर रणनीतिक बचाव के रूप में चर्चा की जा रही है। भारत में प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी गई 135.46 बिलियन डॉलर की रिकॉर्ड तोड़ रकम भारतीय प्रवासी कार्यबल की आर्थिक मजबूती और विदेशों में कुशल श्रमिकों के बढ़ते मूल्य को दर्शाती है।
हालांकि, मेजबान देशों में प्रतिबंधात्मक राजकोषीय नीतियों की बढ़ती लहर एक वास्तविक और आसन्न चुनौती पेश करती है। चूंकि भारत इस महत्वपूर्ण राजस्व धारा को बनाए रखने और बढ़ाने का प्रयास कर रहा है, इसलिए उसे रणनीतिक दूरदर्शिता, मजबूत कूटनीति और सक्रिय नीति सुधारों के साथ बदलते वैश्विक परिदृश्य को नेविगेट करना होगा। धन प्रेषण में उछाल, प्रभावशाली है, लेकिन इसे दीर्घजीवी बनाने की दिशा में भारत सरकार को प्रभावी योजना पर काम करना चाहिए।
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