आत्मनिर्भर बनने तक सुरक्षित रहना भी जरूरी

लगातार क्रैश होते लड़ाकू विमानों से वायुसेना चिंतित

आत्मनिर्भर बनने तक सुरक्षित रहना भी जरूरी

डिग्रेडेड लड़ाकू विमान ले रहे हैं पायलटों की कुर्बानी

नई दिल्ली, 11 जुलाई (एजेंसियां)। लगातार क्रैश होते लड़ाकू विमानों से भारतीय वायुसेना अत्यंत चिंतित है। पुराने और डिग्रेडेड लड़ाकू विमान लगातार पायलटों की कुर्बानी ले रहे हैं। भारत सरकार यह तय ही नहीं कर पा रही है कि वह पहले आत्मनिर्भर बने या पहले सुरक्षित बने। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि पायलटों की सुरक्षा प्राथमिक है, भारत सरकार को इस प्राथमिकता का ध्यान रखना चाहिए। आत्मनिर्भर बनने तक पायलटों का सुरक्षित रहना भी जरूरी है। आत्मनिर्भर बनने के लिए वायुसैनिकों की कुर्बानी जरूरी नहीं है।

भारतीय वायुसेना के सामने पुराने होते विमानों का समय पर अपग्रेड न होने की भारी चुनौती है और देश उसका खामियाजा भुगत रहा है। लड़ाकू विमान लगातार हादसे का शिकार हो रहे हैं और हम बेशकीमती पायलटों को बलीवेदी पर चढ़ा रहे हैं। भारतीय वायुसेना ने अपने कई विमान इस वजह से गंवाए हैंकुछ दिन पहले राजस्थान में फिर एक जेट क्रैश हुआ। इस बीच बेहतर तकनीक वाले इंजन की जरूरत महसूस होने लगी है। सरकार भी अब बड़े कदम उठाने को लेकर गंभीर है। भारत सरकार को फैसला करना है कि भारत अपना खास इंजन ब्रिटेन की कंपनी रॉल्स-रॉयस के साथ मिलकर बनाएगा या फिर वो फ्रांस की सैफरन की मदद लेगा।

एक वरिष्ठ वायुसेना अधिकारी ने कहा, इंजन को लेकर जरूर चुनौती है। रणनीतिक लिहाज से भारत सरकार को जरूरी फैसला लेना ही होगा। इस समय हमें जो फिफ्थ जेनरेशन एडवांस मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट की जरूरत हैउसमें दोनों रॉल्स-रॉयस और सैफरन के साथ हाथ मिलाने पर विचार किया जा रहा है। बड़ी बात यह है कि दोनों ही कंपनियों ने डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) के साथ काम करने में दिलचस्पी दिखाई हैउनका बेंगलुरु में जो गैस टरबाइन शोध प्रतिष्ठान हैवहां पर प्रोजेक्ट शुरू किया जा सकता है।

एक तरफ भारत फिफ्थ जेनरेशन एयरक्राफ्ट चाहता हैउसे इंजन के मामले में आत्मनिर्भर भी बनना हैतकनीक अगर भारत में ही विकसित हो जाए तो सप्लाई चेन की एक बड़ी चुनौती से पार पाया जा सकता है। असल में भारत को इस समय अपने तेजस एयरक्राफ्ट के लिए भी इंजन चाहिएलेकिन अमेरिकी कंपनी जीई की तरफ से लगातार देरी हो रही है। कोरोना के बाद से जो सप्लाई चेन टूटी हैउसे अभी तक फिर शुरू नहीं किया जा सका है। अब इस बीच भारत क्योंकि अपने ट्विन इंजन 5.5 जनरेशन स्टील्थ फाइटर जेट एएमसीए को बनाने की तैयारी कर रहा हैउसमें दोनों ब्रिटेन और फ्रांस से मदद मिल सकती है।

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वर्तमान में काफी कम भारतीय कंपनियां अपनी खुद की इंजन टेक्नोलॉजी रखती हैं। इस समय भी एयरक्राफ्टशिप या फिर ऑटोमोबाइल के लिए हमारे पास खुद की इंजन टेक्नोलॉजी नहीं है। इंजन बाहर से बनकर आ रहे हैं। भारत का जो मरीन इंजन वाला किर्लोस्कर प्रोजेक्ट हैवो जरूर एक शुरुआत है जिसके जरिए हम आत्मनिर्भर बनेंगे। अब एयरक्राफ्ट में भी ऐसा ही कुछ करने की जरूरत है। वैसे, जिस नए इंजन की बात हो रही हैवह 110-130 केएन थ्रस्ट वाला है। अगर सभी चीजें समय अनुसार चलीं तो पहली फ्लाइट 2029-2030 चल सकती हैवहीं उसे 2035 तक शामिल किया जा सकता है। बताया जा रहा है कि एएमसीए के लिए एमके-2 वेरिएंट की जरूरत पड़ेगीउसे भारत में ही बनाने की तैयारी है। अब इसी चीज के लिए यूके की कंपनी रॉल्स-रॉयस का भारत के लिए एक प्रस्ताव है।

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उस प्रस्ताव के मुताबिक रॉल्स-रॉयस भारत के लिए हाई थ्रस्ट वाले टरबोफैन इंजन तैयार करेगाबाद में उसका इस्तेमाल ट्रांसपोर्ट और नागरिक विमानन (सिविलियन एयरक्राफ्ट) में किया जा सकता है। वहीं फ्रांस की सैफरन कंपनी का प्रस्ताव भी सामने आया है। उसका जो प्रोटोटाइप रहने वाला हैवह राफेल में इस्तेमाल हुए एम-88 इंजन से ही प्रभावित रहेगा। वैसे अब भारत जिस आत्मनिर्भर अभियान की ओर बढ़ चला हैउसे पूरी तरह सक्रिय होने में कुछ समय लगेगाऐसे में तब तक की जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ और प्रस्तावों पर भी विचार किया जा रहा है। खबर है कि भारत में रूस के एसयू-57 और अमेरिका के एफ-35 लेने पर भी विचार चल रहा हैये दोनों ही फिफ्थ जेनरेशन एयरक्राफ्ट हैं। इनकी जरूरत इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि पाकिस्तान भी चीन से फिफ्थ जनरेशन एयरक्राफ्ट लेने की तैयारी कर रहा है।

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