कर्नाटक में धर्म से संबंधित अपराधों में तीव्र वृद्धि: चार वर्षों में ६५ प्रतिशत की वृद्धि
बेंगलूरु/शुभ लाभ ब्यूरो| कभी ’सभी समुदायों के लिए शांति का बगीचा’ कहे जाने वाले कर्नाटक में अब धर्म से जुड़े अपराधों में चिंताजनक वृद्धि देखी जा रही है| हाल के वर्षों में धर्म के नाम पर हत्या, हमला और हिंसा जैसे अपराधों में लगातार वृद्धि देखी गई है| २०२१ में जहाँ ऐसी २०८ घटनाएँ हुईं, वहीं २०२४ में यह संख्या बढ़कर ३४५ हो गई, जो ६४.८७ प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है| राज्य अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, इस साल मई तक राज्य भर में कुल १२३ ऐसे मामले दर्ज किए गए| सांप्रदायिक और धार्मिक झड़पों में १३३.३१ प्रतिशत की वृद्धि हुई है| २०२१ में, सांप्रदायिक दंगों के केवल नौ मामले थे, जो २०२४ में बढ़कर २१ हो गए|
विशेषज्ञ इस वृद्धि का श्रेय सोशल मीडिया पर गलत सूचना, राजनीतिक रूप से ध्रुवीकृत माहौल और कुछ जिलों में लंबे समय से चले आ रहे धार्मिक या जाति-आधारित तनाव जैसे कारकों को देते हैं| धर्म से जुड़े अपराधों पर कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया जा रहा है और उन्हें जाति, सांप्रदायिक, भाषाई, क्षेत्रीय और धार्मिक मुद्दों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा रहा है| एक पुलिस आयुक्त ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सोशल मीडिया पर गलत सूचना, राजनीतिक विभाजन और ऐतिहासिक जाति-धार्मिक अशांति इसके प्रमुख कारण हैं| भड़काऊ सोशल मीडिया पोस्टों से धार्मिक हिंसा को बढ़ावा मिल रहा है| कुछ मामलों में लोगों को तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाता है, लेकिन अगर संबंधित व्यक्ति का राजनीतिक समर्थन होता है तो कार्रवाई में अक्सर देरी होती है|
अधिकारी ने कहा जब भी ऐसे मुद्दे उठते हैं, तो आरोपियों को राजनीतिक समर्थन मिलना कोई असामान्य बात नहीं है, चाहे सत्ता में कोई भी पार्टी हो| प्रभावी खुफिया जानकारी दंगों और संबंधित मुद्दों को रोक सकती है, लेकिन राज्य और स्थानीय खुफिया इकाइयाँ कमजोर बताई जा रही हैं| जिला और तालुका पंचायत चुनाव नजदीक आने के साथ, राजनीतिक गतिविधियाँ बढ़ रही हैं| एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ने कहा कि हालाँकि सरकार ने कागज पर कई उपायों की घोषणा की है - जैसे सांप्रदायिकता विरोधी दस्ते और विशेष कार्रवाई बल - लेकिन वे अक्सर प्रतिक्रियात्मक होते हैं और शायद ही कभी लागू होते हैं| एक अन्य आईपीएस अधिकारी, जो वर्तमान में एसपी के रूप में कार्यरत हैं, ने कहा कि सांप्रदायिक विद्वेष समाज में गहरी जड़ें जमा चुका है|
उन्होंने कहा लोग अब दूसरे समुदायों के सदस्यों की छोटी-मोटी गलतियों या शरारतों को भी बर्दाश्त नहीं करते| धार्मिक जुलूस, जो मामूली असुविधा का कारण बनते हैं, अक्सर बड़े दंगों का कारण बनते हैं, खासकर उन जिलों में जहाँ ऐतिहासिक रूप से तनाव रहा है| उनके अनुसार, अपराधियों को अक्सर बढ़ावा दिया जाता है और उन्हें शायद ही कभी सजा मिलती है, और दोषसिद्धि की दर भी कम है| एक तीसरे आईपीएस अधिकारी ने कहा कि जहाँ पहले अशांति कुछ खास इलाकों तक ही सीमित थी, वहीं सोशल मीडिया ने अब इसे राज्यव्यापी मुद्दा बना दिया है| उन्होंने आगे कहा पुलिस ऐसे पोस्ट पर नजर रख रही है और जरूरत पड़ने पर कार्रवाई कर रही है|
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